रोहतास का 'राइस मिल हब' हुआ कंगाल, सरकारी नीतियों से उसना चावल मिल खंडहर में तब्दील
रोहतास जिले के नटवार में उसना चावल मिलें सरकारी नीतियों के कारण बंद हो रही हैं, जिससे यह क्षेत्र कंगाल हो गया है। 2008 से पहले यह इलाका राइस मिलों का हब था, लेकिन अब मिलें खंडहर में तब्दील हो रही हैं। मिल संचालकों का कहना है कि सरकार की गलत नीतियों के कारण मजदूरों और छोटे व्यापारियों के सामने भुखमरी की समस्या आ गई है। अब उसना चावल मिलों की जगह अरवा चावल मिलों ने ले ली है, लेकिन हालात पहले जैसे नहीं रहे।

रोहतास का 'राइस मिल हब' हुआ कंगाल
संवाद सूत्र, दिनारा (रोहतास)। सरकार की बदलते नीतियों के कारण सभी बड़े बड़े राइस मिल बंद पड़ गये। जिसका परिणाम यह हुआ कि उसना चावल का मांग कम हो गया और 2008 के पूर्व तक कभी बिहार का उसना चावल राइस मिल का हब कहा जाने वाला नटवार कंगाल होने लगा और धीरे-धीरे सभी उसना चावल राइस मिल बंद होने लगे।
नटवार में नौ बड़ी राइस मिल चल रहे थे साथ ही इस क्षेत्र के लगभग हर गांव में उसना चावल के छोटे मिल कार्यरत थे लेकिन सरकार के बदली नीति के कारण आज सभी राइस मिल खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।
राइस बनाने में डेढ़ करोड़ खर्च
पार्वती जी राइस मिल के संचालक सत्येन्द्र ओझा,गोवर्धन राइस मिल संचालक संजय जायसवाल, मारुति राइस मिल संचालक अनिल सिंह, दुर्गा जी राइस मिल संचालक मुन्ना राय सहित कई अन्य राइस मिल संचालकों की माने तो प्रत्येक राइस मिल तीन से चार एकड़ जमीन में बने हैं जिनका लागत खर्च डेढ़ करोड़ बताया जाता है।
आज यह मिल खंडहर में तब्दील हो चुका है। कुछ राइस मिल संचालक द्वारा छोटे छोटे दुकानदारों को रेंट पर एक दो कमरों को गोदाम के रूप में दे रखें है। इन मिलों में कार्य करने वाले भारी संख्या में मजदूर मिस्त्री के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में धान खरीदने वाले छोटे छोटे व्यवसाई एवं मिल के आसपास अन्य तरह के व्यवसाय कर अपने परिवार का जीविकापार्जन करने वाले लोगों के समक्ष बहुत बड़ी भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई।
उसना चावल मिल अब अरवा में बदला
धीरे धीरे उसना चावल मिल का स्थान अरवा चावल मिल लेने लगा और सरकार ने भी पैक्सों में भी अनुदानित अरवा चावल मिल लगाने का प्रोत्साहन भी दे दिया।बाजार की नई चुनौतियों को देखते हुए विगत दो तीन वर्षों में इस क्षेत्र में सिल्की तथा सोलटेक्स जैसे आधुनिक मशीनों से सुसज्जित होकर कई बड़ी चावल मिल लगने लगे हैं।
पूर्व में अवस्थित उसना चावल मिल प्रतिवर्ष दो से चार लाख क्विंटल उसना चावल का उत्पादन करता था। साथ ही प्रत्येक राइस मिलों में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग आठ माह तक 100 लोगों का रोजी-रोटी चलता था।
यहां से उसना चावल खरीद कर उतरी बिहार, झारखंड, बंगाल भूटान तथा हिल्ली सहित अन्य राज्यों में जाता था। मिल संचालकों ने आरोप लगाया कि सरकार ने अपनी नीति में बदलाव किया जिसके कारण उसना राइस प्लांट बंदी के कगार पर पहुंच गए।
कहते हैं राइस मिल संचालक
सत्येन्द्र ओझा कहते हैं कि 2008 से पहले नटवार एवं नोखा राइस मिलों का केंद्र था । नटवार में लगभग छोटे-बड़े 10 राइस मिल चलता था लेकिन सरकार के बदले नीतियों के कारण सभी राइस मिल बंद पड़ गया।
केवल दो राइस मिल चल रहे हैं एक अरवा है तो एक उसना दोनों राइस मिलों में लगभग 100 मजदूरों का रोजगार दिया गया है । बंद पड़े राइस मिलों के गोदाम को स्थानीय लोगों को भाड़े पर दिया गया है तो कुछ खंडहर में तब्दील हो गया है।
राइस मिल संचालक संजय जायसवाल कहते हैं कि सरकार की गलत नीतियों के कारण राइस मिल बंद हो गया। जिसके बाद पुरा मिल परिसर खंडहर में तब्दील हो गया है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है। आने वाले समय में अगर सरकार अपने नियम में संशोधन नहीं किया तो भुखमरी की स्थिति और भयावह हो जाएगा।
मारुति राइस मिल संचालक अनिल सिंह कहते हैं कि सरकार के बदले गलत नियमों के कारण उसना चावल की मांग कम होने लगा जिसके चलते बड़े बड़े राइस मिल बंद हो गये।
यहां से चावल खरीद कर उतरी बिहार, झारखंड, बंगाल, भूटान तथा हिल्ली सहित अन्य राज्यों में जाता था। राइस मिल चलने के समय में पलामू से लगभग चार हजार मजदूर नटवार में रहकर काम करते थे। आज के समय मिल में काम करने वाले मजदूरों का भी पलायन हो गया।

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