रोहतास: जीआइ टैग के साथ धान के कटोरे में उत्पादित खुशबूदार सोनाचूर चावल अब विदेशों में बिखेरेगा सुगंध
धान के कटोरे में उत्पादित खुशबूदार सोनाचूर चावल की महक विदेशों में भी बिखेरने की तैयारी है। सोनाचूर को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए जिला प्रशासन ने जीआइ टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस) दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं।

आदर्श कुमार तिवारी, सासाराम : रोहतास। धान के कटोरे में उत्पादित खुशबूदार सोनाचूर चावल की महक विदेशों में भी बिखेरने की तैयारी है। सोनाचूर को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए जिला प्रशासन ने जीआइ टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस) दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं। जीआइ टैग मिलने के साथ ही इस उत्पाद को विदेश का बेहतर बाजार मिलेेगा। इसके साथ ही उत्पादकता बढ़ाने के प्रति किसानों के झुकाव से उनकी आय में भी वृद्धि होगी।
कुल 13 लाख मीट्रिक टन चावल का उत्पादन :
जिला कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार राय ने बताया कि सबसे अधिक चावल की उत्पादकता के साथ जिला राज्य भर में हर बार पहले पायदान पर रहता है। यहां के दो लाख 65 हजार 533 किसान हर वर्ष औसतन औसतन 12 से 13 लाख मीट्रिक टन चावल का उत्पादन करते हैं। इनमें धान की प्रमुख किस्में नाटी मंसूरी, कतरनी तथा सोनाचूर है। किसान बेचने के लिए नाटी मंसूरी व कतरनी की खेती करते हैं साथ ही सोनाचूर चावल को खुद के उपयोग के लिए रखते हैं। जिले में दो लाख 31 हेक्टेयर सिंचित भूमि में हर वर्ष धान का उत्पादन होता है। जिसमें लगभग 45 हजार हेक्टेयर में सोनाचूर धान की खेती हर वर्ष होती है।
सोनाचूर में कम लागत के साथ अधिक मुनाफा :
कोचस प्रखंड के किसान श्रीनाथ सिंह के मुताबिक सोनाचूर धान की खेती में अन्य धान की फसल के अनुपात में काफी कम खर्च आता है। एक बीघे में सोनाचूर धान लगभग 10-12 क्विंटल हो जाता है। इसके अलावे इसका बाजार भाव भी अन्य चावलों से कहीं अधिक है। मंसूरी व कतरनी चावल का अधिकतम बाजार मूल्य 25 सौ से तीन हजार होता है, जबकि सोनाचुर चावल का रेट औसतन 65 सौ से सात हजार है। इस चावल की सबसे बड़ी खासियत इसका सुगंध है जो लोगों को काफी आकर्षित करता है। इस चावल का प्रयोग लोग शादी, ब्याह या अन्य किसी आयोजन में लोग अत्यधिक करते हैं। हालांकि यह फसल पक कर तैयार होने में अन्य धानों की अपेक्षा दस से पंद्रह दिन अधिक समय लेता है। इस वजह से रबी की खेती प्रभावित होने के डर से किसान इसकी कम मात्रा में ही खेती करते हैं। इस उत्पाद को जीआई टैग मिलाने के बाद बेहतर बाजार मिलाने से उत्पादन दर में भी काफी वृद्धि होगी।
इन बातों का रखना होता है ख्याल :
डीएओ ने बताया कि जीआइ टैग अप्लाई करने से पूर्व यह प्रमाणित करना आवश्यक होता है कि संबंधित उत्पाद के लिए टैग क्यों दिया जाए। उत्पाद की यूनिकनेस, उसके ऐतिहासिक विरासत के बारे में तथ्य के साथ दावा करना पड़ता है। उसी उत्पाद पर यदि कोई दूसरा दावा करता है तो आप कैसे मौलिक हैं यह साबित करना होगा। जिसके बाद संस्था साक्ष्यों और संबंधित तर्कों का परीक्षण करती हैं, मानकों पर खरा उतरने वाले को जीआइ टैग मिलता है। कहा कि रोहतास का सोनाचूर चावल मौलिकता और ऐतिहासिकता के मानकों पर खरा उतरने के साथ ही यह उत्पाद सभी अहर्ताएं पूरी करती है। बताया कि सोनाचूर को जीआई टैग मिलने के बाद यह बिहार का छठवां कृषि उत्पाद होगा। इससे पहले मखाना, कतरनी चावल, जर्दालू आम, शाही लीची और मगही पान को जीआइ टैग मिल चुका है।
प्रशासनिक स्तर पर काफी तेजी से प्रयास
रोहतास डीएम धर्मेंद्र कुमार ने कहा कि सोनाचूर चावल को जीआइ टैग दिलाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर काफी तेजी से प्रयास किया जा रहा है। इस संबंध में डीएओ को साक्ष्य के साथ सभी रिपोर्ट को तैयार कर उसे जमा करने को कहा गया है। उम्मीद है कि जिले की विशेष पहचान वाले सोनाचूर चावल को जल्द ही वैश्विक पहचान मिलेगी। इससे किसानों को बेहतर बाजार मिलने के साथ ही आय में भी बढ़ोत्तरी होगी। टैग मिल जाने के बाद जिले का किसान ही उस ब्रांड का वास्तविक दावेदार हो जाएगा।
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