Pitru Paksha: पिताजी की मृत्यु तिथि याद नहीं तो कब करें तर्पण? आपके सवाल और पंडित जी के जवाब
इस वर्ष पितृपक्ष 7 सितंबर से शुरू हो रहा है जिसमें पितरों को तर्पण और दान से प्रसन्न किया जाता है। आचार्य मुन्ना पांडेय के अनुसार यह पितृदोष निवारण और सुख-समृद्धि का अवसर है। 21 सितंबर को अमावस्या श्राद्ध में अज्ञात पितरों का तर्पण किया जाएगा। जीवित्पुत्रिका व्रत भी पितरों की प्रसन्नता के लिए महत्वपूर्ण है।

संवाद सहयोगी, डेहरी आनसोन ( रोहतास )। पितरों को खुश रखने व पितृ दोष से मुक्ति पाने वाला 15 दिवसीय पितृपक्ष इस बार सात सितंबर से शुरू हो रहा है। जातक सर्वप्रथम अगस्त्य ऋषि का तर्पण करते हैं।
पितृपक्ष पितरों को खुश व संतुष्ट करने का पक्ष है। पितृपक्ष में माता पिता व पितरों को तर्पण करने से जीवन में चल रहे पितृ दोष या कुंडली में स्थित पितृ दोष के कारण उत्पन्न या संभावित पारिवारिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक परेशानियों का दोष निवारण होता है।
इसलिए पितृदोष दोष निवारण, उत्तम नौकरी आजीविका, रोजी रोजगार, सुख सौभाग्य, संतति संतान आदि तमाम विषमताओं से मुक्ति के लिए प्रत्येक जातक को पितृ तर्पण, पितृ दान, पितृ भोजन अवश्य कराना चाहिए। इससे पितर खुश व आनंदित होते हैं तथा उनके शुभ आशीर्वाद से सर्व सफलता प्राप्त होती है।
सात सितंबर को अगस्त ऋषि तर्पण के साथ पितृ पक्ष की शुरुआत
बारह पत्थर निवासी आचार्य मुन्ना पांडेय ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा को दोपहर बाद ऋषि तर्पण किया जाएगा। इस बार सात सितंबर को अगस्त ऋषि तर्पण के साथ पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है जो 21 सितंबर रविवार तक चलेगी।
बारह पत्थर निवासी आचार्य मुन्ना पांडेय।
पहले दिन अगस्त ऋषि को तर्पण किया जाएगा। दूसरे दिन यानी आठ सितंबर से पितृ तिथियों पर तर्पण, दान आदि करते हुए सभी जातक अपने अपने पिता कि पुण्य तिथि को उनकी तिथि मनाएंगे। लेकिन वैसे जातक जिनको पिता के मृत्यु की तिथि याद नहीं है या उनकी मृत्यु को लेकर किसी प्रकार का संशय है तो 21 सितंबर रविवार को अमावस्या श्राद्ध में भूले-बिसरे व अज्ञात तिथि वाले सभी पितरों का तर्पण व दान करेंगे।
पितृपक्ष का यह समय न केवल पितरों को संतुष्ट करने का है, बल्कि यह जातकों के लिए जीवन में सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त करने का भी एक महत्वपूर्ण अवसर है।
पितृपक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत
पितृपक्ष के दौरान ही सभी पितरों की प्रसन्नता के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत भी किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत में मातृ पक्ष के पितरों को पानी दिया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को किया जाता है।
इस वर्ष 13 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत का नहाय खाय व 14 को जीमूतवाहन पूजन (जितिया) व्रत किया जाएगा। 15 सितंबर नवमी तिथि को प्रातः 5:27 बजे से 6:27 बजे के बीच ओरी (चौखट) टिक कर व्रत का पारण कर लेना व्रतियों के लिए श्रेयस्कर होगा।
- 8 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध
- 9 सितंबर द्वितीया श्राद्ध
- 10 सितंबर तृतीया श्राद्ध
- 11 सितंबर चतुर्थी श्राद्ध
- 12 सितंबर पंचमी श्राद्ध
- 13 सितंबर षष्ठी व सप्तमी श्राद्ध
- 14 सितंबर अष्टमी का तर्पण
- 15 सितंबर मातृ नवमी श्राद्ध
- 16 सितंबर दशमी
- 17 सितंबर एकादशी
- 18 सितंबर द्वादशी
- 19 सितंबर त्रयोदशी
- 20 सितंबर चतुर्दशी
- 21 सितंबर पितृ विसर्जन व अमावस्या श्राद्ध
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