Karva Chauth 2025: करवा चौथ के व्रत का मगरमच्छ से है कनेक्शन, आचार्य ब्रज किशोर ने बताई पौराणिक कथा
करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत मनाया जाता है, जिसमें सोलह श्रृंगार करके करवा माता की पूजा की जाती है। यह व्रत पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है, जिससे वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

संवाद सूत्र, सूर्यपुरा (रोहतास)। अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु की कामना के लिए शुक्रवार को महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखेंगी। यह व्रत न सिर्फ पति-पत्नी के रिश्ते को गहरा बनाता है, बल्कि परिवारिक स्नेह और सौहार्द का भी प्रतीक माना जाता है।
आचार्य ब्रज किशोर चंद शास्त्री ने बताया कि करवा चौथ का संबंध पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि प्राचीन काल में करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे रहती थी। एक दिन जब उसका निर्बल पति नदी में स्नान कर रहा था तभी मगरमच्छ ने उसके पैर पकड़ लिए।
पति की पुकार सुनकर करवा ने यमराज से प्रार्थना की कि उसके पति को जीवनदान मिले और मगरमच्छ को मृत्यु दंड दिया जाए।
यमराज ने पहले मना किया, लेकिन करवा के साहस और पतिव्रता धर्म के बल पर अंततः मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और उसके पति को दीर्घायु का वरदान दिया। तभी से करवा चौथ व्रत का प्रचलन शुरू हुआ।
आचार्य शंभूजी पांडेय ने कहा कि करवा चौथ केवल पति-पत्नी के रिश्ते को ही नहीं, बल्कि सास-बहू के रिश्ते को भी मजबूत करता है। व्रत की परंपरा के तहत सास अपनी बहू को सरगी स्वरूप फल, मिठाई और श्रृंगार का सामान देती हैं। इससे आपसी प्रेम और आदर की भावना का विकास होता है।
आधुनिक युग में भी महिलाएं पूरे उत्साह और आस्था के साथ यह व्रत करती हैं। सूर्योदय से चंद्रमा उदय तक चलने वाला यह निर्जला व्रत पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है।
करवा चौथ को लेकर गुरुवार को बाजारों में खासा उत्साह देखा गया। महिलाओं ने पूजन सामग्री, करवा, छलनी, शृंगार के सामान और मिठाइयां जमकर खरीदीं। मेहंदी की मांग भी खूब रही। वहीं, कपड़े और गहनों की दुकानों पर भी भीड़ रही। घर-घर में महिलाएं उत्साह के साथ व्रत और पूजा की तैयारी में जुटी रहीं।
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