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    09 या 10 अक्टूबर...कब है करवा चौथ व्रत और चलनी से पति को क्यों निहारती हैं सुहागिनें? जानें पंडित जी के जवाब

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 02:15 PM (IST)

    रोहतास जिले के काराकाट में करवा चौथ का व्रत सुहागिनों द्वारा हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शिव परिवार की आराधना करती हैं। चंद्रमा के उदय के बाद उसे अर्घ्य देकर छलनी से पति का चेहरा देखती हैं जिससे पति की आयु बढ़ने की मान्यता है।

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    करवा चौथ पर पति की लंबी उम्र के लिए पत्नी रखती हैं व्रत। (जागरण)

    मुक्ति नाथ पांडेय, रोहतास। काराकाट प्रतिवर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुहागिनों द्वारा करवा चौथ का व्रत रखने की पुरानी परंपरा रही है।

    हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष यह व्रत दस अक्टूबर शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिनें अपने पति की सलामती और दीर्घायु होने की कामना के साथ दिन भर निर्जला उपवास रखती हैं।

    सनातन धर्म में सुहागिनों द्वारा रखे जाने वाला यह व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सुहागिनें माता पार्वती सहित पूरे शिव परिवार की आराधना करती हैं। कहीं-कहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना को लेकर करवा चौथ का व्रत रखती हैं।

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    करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा का विशेष महत्व होता है। चंद्रोदय के पश्चात ही रात्रि के समय करवा चौथ का व्रत तोड़ा जाता है। व्रती पहले चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करती हैं। तत्पश्चात चलनी से चन्द्रमा के साथ अपने पति का चेहरा निहारती हैं।

    माना जाता है कि चलनी के माध्यम से पति का चेहरा देखने से पति की आयु बढ़ जाती है।उसके बाद पति द्वारा पत्नी को जल पिला कर व्रत तोड़वाने की परंपरा है।

    कब है करवा चौथ

    पंडित ललन त्रिपाठी व एमएन पांडेय के अनुसार इस वर्ष करवा चौथ का व्रत दस अक्टूबर को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि का आगमन नौ अक्टूबर गुरुवार की रात 2.49 बजे हो रहा है जो 10 अक्टूबर शुक्रवार की रात 12.24 बजे तक रहेगा। इस व्रत में चंद्रमा का विशेष महत्व होता है।

    10 अक्टूबर की रात 7.58 बजे के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। महिलाएं इस दिन कठिन व्रत का पालन करती हैं और विधिवत पूजा-अर्चना कर पति की लंबी आयु, सौभाग्य व सलामती की कामना करती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से घर में समृद्धि आती है।

    चलनी से पति को निहारती हैं पत्नी

    चलनी से करती हैं चन्द्रमा और पति का दर्शन: इस व्रत के अंत में महिलाएं चन्द्रमा और अपने पति का प्रत्यक्ष दर्शन न कर चलनी से दर्शन करती हैं।

    मान्यता है कि चलनी में हजारों छेद होते हैं, जिससे चांद के दर्शन करने से छेदों की संख्या जितनी प्रतिबिंब दिखते हैं।अब चलनी से पति को देखते है तो पति की आयु भी उतनी गुना बढ़ जाती है। चलनी के प्रयोग बिना करवा चौथ अधूरा माना जाता है।

    पहली बार माता पार्वती ने किया था करवा चौथ: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पहली बार माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए यह व्रत रखा था। माता सीता ने भी भगवान श्रीराम के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। तब से सुहागिनें अखण्ड सौभाग्य हेतु इस व्रत का पालन करती हैं।

    चांद देख कर व्रत खोलने की है परम्परा

    करवा चौथ के दिन माता पार्वती की पूजा आराधना कर महिलाएं अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन शिव, भगवान गणेश और कार्तिकेय की भी पूजा होती है, लड़की प्रधानता चन्द्रमा की होती है।

    चन्द्रमा को पुरुष रूपी ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। चन्द्रमा के पास रूप, शीतलता, प्रेम और प्रसिद्धि होती है। साथ ही उन्हें लंबी आयु का वरदान भी प्राप्त है। ऐसे में महिलाएं चन्द्रमा की पूजा कर सभी गुण अपने पति में समाहित करने की प्रार्थना करती हैं।