Chhath Puja 2025: इस बार बेहद खास होगी छठ पूजा, बन रहा ये दुर्लभ संयोग
लोक आस्था का महापर्व डाला छठ इस बार 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस अवसर पर रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से होगी। व्रती 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे और 28 अक्टूबर को अरुणोदय काल में अर्घ्य के साथ पर्व का समापन होगा। यह पर्व स्वच्छता और श्रद्धा का प्रतीक है।
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संवाद सहयोगी, डेहरी आनसोन (रोहतास)। भगवान भास्कर की आराधना का महापर्व डाला छठ अर्थात सूर्य षष्ठी पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस बार लोक आस्था से जुड़ा सूर्य षष्ठी पर्व 27 अक्टूबर को व्रत व अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य के साथ मनाया जाएगा। इस बार सूर्य आराधना के महापर्व पर रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है।
ज्योतिषाचार्य पं. अनुज मिश्र के अनुसार सूर्य षष्ठी पर्व की शुरूआत नहाय-खाय के साथ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से हो जाती है। त्रिदिवसीय व्रत के बाद चौथे दिन अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पारन किया जाता है। इस तरह लोकपर्व आरंभ 25 अक्टूबर से हो रहा जो 28 अक्टूबर को अरुणोदयकाल में अर्घ्य के साथ समाप्त होगा।
चार दिन का त्योहार:
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि में 25 अक्टूबर को नहाय खाय से प्रारंभ होगा। इस पर्व में स्वच्छता का विशेष महत्व होता है। पहले दिन घर की सफाई कर स्नानादि करें। लहसुन-प्याज समेत तामसिक भोज्य पदार्थों का त्याग कर दिन में एक बार भात व लौकी की सब्जी ग्रहण कर जमीन पर शयन किया जाता है। उसके अगले दिन खरना होता है, जो इस वर्ष 26 अक्टूबर को पंचमी तिथि में किया जाना है।
दिन भर उपवास कर सायंकाल गुड़ से बनी खीर का भोजन किया जाता है। तीसरे दिन षष्ठी तिथि में 27 अक्टूबर को निराहार रह कर बांस के सूप डालियों में विभिन्न प्रकार के ऋतुफल, मिष्ठान, नारियल, ईख आदि रख कर किसी नहर, नदी, तालाब या पोखरा तट पर दूध व जल से अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। रात्रि जागरण कर दूसरे दिन सुबह अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य दिया जाता है।
वैदिक परंपरा है डाला छठ पर्व:
यह पर्व व्रतियों को चतुर्दिक सुख देने वाला माना जाता है। भगवान भास्कर समस्त व्रत संतान सुख प्राप्ति के लिए होते हैं। इसमें प्रत्यक्ष सूर्य देव का पूजन-वंदन किया जाता है, लेकिन डाला छठ पर भगवान भास्कर की दोनों पत्नियों उषा-प्रत्युषा व छठी मइया की भी पूजा होती है। सूर्योपासना की परंपरा वैदिक कालीन है। इसका वर्णन वेद पुराणों में है।
यह धार्मिक आस्था का पर्व ऋतु संधिकाल में आता है। चूंकि समस्त ब्रह्मांड में ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र सूर्यदेव हैं। इनसे ही ब्रह्मांड प्रकाशित है। बिना इनके जीवन, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, पेड़-पौधों की परिकल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए सनातन धर्म में प्रत्यक्ष देव स्वरूप इनका पूजन होता है।
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