प्रत्याशी पार्टी के कैडर वोट पर कम, जाति पर हैं ज्यादा निर्भर
करगहर विधानसभा जातीय समीकरण से नहीं निकल पा रहा है। ...और पढ़ें

संवाद सूत्र, परसथुआ: करगहर विधानसभा जातीय समीकरण से नहीं निकल पा रहा है। प्रत्याशी पार्टी के कैडर वोट पर कम अपनी-अपनी जाति पर ज्यादा निर्भर हैं। 2010 में नए परिसीमन के बाद तीन प्रखंड करगहर के 20, कोचस के 15 व शिवसागर के पांच पंचायतों को मिलाकर अस्तित्व में आए करगहर विधानसभा की सीट पर अभी तक जदयू का कब्जा रहा है। 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह ने राजद लोजपा के प्रत्याशी रहे शिवशंकर कुशवाहा को लगभग 12 हजार वोटों से पराजित किया था। 2015 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन बना। वर्तमान विधायक सह स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह का टिकट काटकर युवा चेहरा वशिष्ठ सिंह को टिकट दिया गया, जिन्होंने राजग प्रत्याशी रहे विरेंद्र कुशवाहा को लगभग 14 हजार वोटों से हरा दिया। इस बार रामधनी सिंह समाजवादी पार्टी से मैदान में उतरे, पर उन्हें बुरी तरह से शिकस्त खानी पड़ी। उनकों महज छह हजार वोट ही मिल पाए ।
2020 का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर आ गया है। दोनों गठबंधन का पारंपरिक वोट टूटता नजर आ रहा है। वर्तमान विधायक वशिष्ठ सिंह की अबकी बार लड़ाई आसान नहीं है। उन्हें अपनी ही जाति के पूर्व मंत्री के पुत्र बसपा एवं रालोसपा गठबंधन के उम्मीदवार से टक्कर है । वहीं महागठबंधन के उम्मीदवार अपने पारंपरिक वोट माय समीकरण के साथ-साथ सवर्ण वोटों के सहारे लड़ाई को धारदार बना दिए हैं। जबकि लोजपा प्रत्याशी मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने में जुटे हैं ।बता दें कि भाजपा के पारंपरिक वोटर वैश्य समाज से शाहाबाद प्रक्षेत्र में एनडीए द्वारा एक भी प्रत्याशी नहीं बनाए जाने पर काफी नाराजगी जताई जा रही है। विश्लेषकों की मानें तो इस विधानसभा में सबसे अधिक कुर्मी, ब्राह्मण, अनुसूचित जाति व वैश्य समाज का वोट है । हालांकि यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।

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