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    बेटियों की पहली विदाई होते ही बदल जाता है गांव का पता, बिहार के इन 500 गांवों के दामाद ढूंढते फिरते हैं ससुराल

    By Prakash VatsaEdited By: Shivam Bajpai
    Updated: Mon, 14 Nov 2022 07:41 PM (IST)

    अनोखी शादियों की कई खबरें सुनने और पढ़ने को मिलती हैं लेकिन शादी के बाद की लाइफस्टाइल में कुछ अनोखा हुआ हो- ये कमतर ही होता है। बिहार के 500 गांवों में शादी के बाद ऐसी ही रोचक और अनोखी हकीकत दस सालों से घटित हो रही है।

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    बिहार के गांवों का बदल जाता है पता...

    जागरण संवाददाता, पूर्णिया: बिटिया की डोली ससुराल पहुंचती है और इसके बाद ससुराल से बिटिया की पहली विदाई लौटती नहीं कि यहां गांव का पता बदल जाता है। हर बार दामाद को अपना ससुराल ढूंढना पड़ता है। यह कहानी नहीं हकीकत है। सीमांचल के इलाके में नदियों के चलते गांव का पता बदलता रहता है। पूर्णिया जिले के अमौर प्रखंड के मूल ग्राम ताराबाड़ी वर्तमान पता रंगामाटी (अस्पताल परिसर) के पशुपति विश्वास कहते हैं कि यहां कई लोग हैं जिसने बिटिया की शादी किसी और जगह से की और उसकी पहली विदाई किसी और जगह आई। बारात लेकर दूल्हे जिस जगह आते हैं और सात फेरे लेते हैं, दूसरी बार आने पर वहां ससुराल मिलता ही नहीं है। परमान नदी के कटान के कारण उनके गांव का पता गत दस साल में तीन बार बदल चुका है। यह इस इलाके की एक बानगी भर है।

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    • - बिटिया की पहली विदाई से पहले बदल जाता है गांव का पता
    • - एक दशक में सीमांचल के पांच सौ गांवों को तीन-तीन बार बदल चुका है पता

    यहां के पांच सौ ऐसे गांव हैं, जिनका गंगा, कोसी, महानंदा, परमान, कनकई आदि नदियों के कटाव के कारण गत दस साल में दो से तीन बार पता बदल चुका है। इसमें कई ऐसे गांव हैं तो बस नाम के हैं और ऐसे लोग सड़कों व बांधों के किनारे खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं। उन्हें स्थाई बसेरे की तलाश है। उनकी जिंदगी पूरी तरह बेरंग हो गई है। अस्थाई ठिकाना नहीं होने के कारण वे सरकार की मूलभूत सुविधाओं का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं।

    अमौर प्रखंड के ही रसेली, कदगामा, बनगामा, कोचका, सिंघिया के साथ-साथ कटिहार जिले के अमदाबाद प्रखंड के बबलाबन्ना, गोलाघाट, खट्ठी जैसे गांवों की कतार यहां काफी लंबी है। बबलाबन्ना, गोलाघाट आदि के लोग तो अब गंगा तटबंध पर झोपड़ी डाल समय गुजार रहे हैं। गोलाघाट के अशोक चौधरी कहते हैं कि गांव ही मिट गया तो फिर पता की क्या बात है। अब तो बिटिया की शादी का मंडप भी वे लोग विरले ही सजाते हैं। खुद का बसेरा बांध पर है, यहां कोई सुविधा नहीं है। ऐसे में वे लोग मंदिर आदि में ही बिटिया की शादी रचाते हैं।

    बड़े रोचक और अनोखे हैं ये मामले

    केस स्टडी-1: अमौर के कोचका निवासी धनवीर मंडल ने जिस वर्ष अपनी बिटिया की शादी की, उसी साल परमान के कटान में उनका गांव ही कट गया। बाद में उन लोगों ने काफी दिनों तक बगल के सड़क पर बसेरा रखा, बाद में सड़क निर्माण के दौरान वहां से विस्थापित होकर मूल बस्ती से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर पर बसे हैं।

    केस स्टडी- 2: कटिहार के बबलबन्ना निवासी मोतिउर रहमान ने बताया कि उन लोगों के गांव का पता चार-चार बार बदल चुका है। गंगा के कटाव के कारण वे लोग चार-चार बार विस्थापित हो चुके हैं। जिन्हें अपनी जमीन अब नहीं बची वे सड़क व बांध किनारे समय बीता रहे हैं।

    विधानसभा में गूंजता रहा है मामला

    विस्थापितों के इस दर्द का मामला विधानसभा में भी गूंजता रहा है। पूर्णिया जिले के बायसी के विधायक सैयद रुकनुद्दीन के साथ-साथ मनिहारी के विधायक मनोहर प्रसाद सिंह कई बाद यह मामला विधानसभा में उठा चुके हैं। कटाव को रोकने व विस्थापितों को बसाने की दिशा में सरकार के स्तर से पहल भी हुई है लेकिन इस विकाराल समस्या के परिप्रेक्ष्य में सरकारी पहल नाकाफी है।