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    बिहार में बुलडोजर एक्शन पर फूटा पप्पू यादव का गुस्सा, बोले- सरकार तुंरत करे हस्तक्षेप

    Updated: Fri, 05 Dec 2025 01:18 PM (IST)

    लोकसभा में सांसद पप्पू यादव (Pappu Yadav) ने बिहार के कई जिलों में गरीबों के घर-दुकान उजाड़ने का मुद्दा उठाया। उन्होंने अरोरा गुहा में दलित परिवारों क ...और पढ़ें

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    सांसद पप्पू यावद ने उठाया सवाल। (जागरण)

    जागरण संवाददाता, पूर्णिया। लोकसभा में सांसद पप्पू यादव जमकर दहाड़े हैं। पप्पू यादव ने बिहार के कई जिलों-पूर्णिया के नगर निगम, पूर्णिया पूर्व हरदा, मझैली धमदाह, रुपौली बरहरा हमारे लोकसभा के सभी प्रखंड, नगर परिषद, नगर पंचायत बसे छोटे-छोटे दुकानदारों, नालंदा, बेगूसराय, पटना, पाटलीपुत्रा, डुमरांव, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और दरभंगा-में लगातार हो रहे गरीबों, दलितों और छोटे व्यवसायियों के घर-दुकान उजाड़ने के मामलों को लेकर जोरदार आवाज उठाई।

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    पप्पू यादव ने विशेष रूप से अरोरा गुहा का जिक्र किया, जहां लगभग 150 दलित परिवार पीढ़ियों से बसे हुए हैं। उन्होंने बताया कि उस बस्ती में पहले से एमएलए फंड से सड़क बनी है, बिजली का बिल भी उनकी तरफ से वहन किया जाता रहा है और कई परिवारों को इंदिरा आवास भी आवंटित है।

    बावजूद इसके, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया, नोटिस या पुनर्वास की व्यवस्था किए पूरे गांव को उजाड़ दिया गया। सांसद ने कहा कि राज्य के विभिन्न इलाकों में एक संगठित पैटर्न के तहत गरीब परिवारों, ठेला-पटरी वालों, फल-सब्जी कारोबारियों और छोटे दुकानदारों को हटाया जा रहा है।

    उन्होंने बेगूसराय की हालिया घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि वहां महादलित बस्ती को बेरहमी से ढहा दिया गया, लाठीचार्ज किया गया और महिलाओं-बुजुर्गों पर अत्याचार हुए।

    लोकसभा में अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराते हुए पप्पू यादव ने कहा- “छह-छह पुश्तों से रहने वाले लोगों को अवैध बताकर उजाड़ देना न्याय नहीं, बल्कि अत्याचार है। सरकार बताए कि गरीब कहां जाएं जब तक उन्हें पांच डिस्मिल जमीन उस पंचायत में नहीं दी जाती, शहरों में दुकानें आवंटित नहीं की जातीं, तब तक किसी भी गरीब, दलित, बेरोजगार या छोटे दुकानदार को उजाड़ना बंद किया जाए।

    उन्होंने केंद्र और बिहार सरकार, विशेषकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग की कि गरीबों के पुनर्वास की स्पष्ट नीति बनाई जाए और हर जिले की ऐसी घटनाओं की जांच कराई जाए।

    पप्पू यादव की इस मांग के बाद सदन में गरीब-दलित समुदाय पर हो रहे अन्याय और राज्य प्रशासन की कार्यशैली को लेकर व्यापक चर्चा शुरू हो गई है।