Bihar News: लांघ गए सात समंदर मगर सिर से नहीं फिसला पाग, ये है मिथिला के 400 परिवार का अनोखा कुनबा
इंग्लैंड के लंदन शहर में 400 मिथिला भाषी परिवारों का एक समुदाय अपनी संस्कृति को संजोए हुए है। मिथिला कल्चरल सोसायटी यूके के माध्यम से वे सेमा चकेवा जैसे त्योहार मनाते हैं विद्यापति के गीत गाते हैं और पारंपरिक परिधान पहनते हैं। यह पहल पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का एक प्रयास है जिससे विदेश में भी मिथिला की संस्कृति जीवित है।
प्रकाश वत्स, पूर्णिया। इंग्लैंड की राजधानी लंदन और इसके आसापास के शहरों में चार सौ परिवारों का एक अनोखा कुनबा पल रहा है। जीवन में उंची उड़ान भर चुके ऐसे परिवारों ने अपनी संस्कृति की डोर थाम रखी है। सात समंदर लांघ जाने के बाद भी उनके सिर पर पाग कायम है।
मिथिलांचल, सीमांचल, कोसी के साथ-साथ सूबे के मुंगेर, भागलपुर के इन परिवारों द्वारा लंदन में मिथिला की संस्कृति का रंग जमाया जा रहा है। जतन अपनी अगली पीढ़ी को भी संस्कृति से जोड़ कर रखने की है।
अगली पीढ़ी अब अपनी माटी पर वापस आना पसंद करेंगे या नहीं, इसकी गारंटी नहीं है। वापस नहीं आने की स्थिति में भी वे अगर अपनी संस्कृति को जीते रहे।
मिथिला कल्चरल सोसायटी यूके की रखी नींव
वर्ष 2009 में करियर यात्रा में लंदन गए और उन्होंने अपने सफर की शुरुआत अपनी संस्कृति के साथ की। कम ही परिवारों से मिथिला कल्चरल सोसायटी यूके नामक संस्था की नींव रखी गई।
इन परिवारों के महिला व पुरुष संस्था के स्थापना दिवस पांच जुलाई को एक जगह जमा होने लगे और फिर मिथिला की संस्कृति रंग लंदन में भी जमने लगी। महिलाएं साथ होकर सेमा चकेवा व वट सावित्री जैसी मिथिला की संस्कृति की खूबसूरती से जुड़ी रहीं।
- रोटी के लिए लंदन में रह रहे चार सौ परिवारों के घर पल रही मिथिला
- घरों में मनता है सेमा-चकेवा, गूंजते हैं विद्यापति के गीत
- कोसी, सीमांचल, मिथिलांचल के साथ गंगा पार मुंगेर व भागलपुर के भी हैं कई परिवार
- मिथिला के रंग में लिया जा रहा है कथाशिल्पी रेणु के पंचलाइट का आनंद
लंदन में रंग जिंदा
गांवों में भले अब सेमा चकेवा जैसे पर्व अंधेरे में डूबने लगी है, लेकिन लंदन में उसका रंग जिंदा है। अब यह कुनबा चार सौ परिवारों का हो चुका है और इसका स्थापना दिवस समारोह एक बड़ा उत्सव बन चुका है। वे जब एक साथ होते हैं तो खानपान भी पूरी तरह मिथिला के रंग जैसा रहता है।
उस मीट में यह संस्कार भी बंटता है कि घरों में विद्यापति की गीत गूंजनी चाहिए। सुबह-शाम की आरती होनी चाहिए। मिथिला के पर्व-त्योहार को भी हमें हर हाल में जीना है। महिलाओं को उनसे जुड़े खास पर्व मनाने की आजादी है। इन परिवारों के बीच बस रहे कलाकारों को प्रोत्साहन भी दिया जाता है।
कुनबे के लोग कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कहानी पंचलाइट के मैथिली रुपांतर पर नाटक का मंचन कर रहे हैं। हरिमोहन मिश्रा की अमर कृति खट्टर काका के तरंग को भी लोग जी रहे हैं। महिलाएं मिथिला की परिधान साड़ी की लाज भी रख रही हैं।
संस्कृति बचाने का बड़ा मिशन
यह संस्कृति के बचाव का बड़ा मिशन हैं। यह पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़कर रखने की बड़ी पहल है। 16 साल पूर्व कैरियर यात्रा में लंदन पहुंचे ने अपनी मिथिला संस्कृति को साथ रखने का संकल्प लिया और वह संकल्प मिथिला कल्चरल सोसायटी यूके के रूप में दिख रहा है। इस सोसायटी के जरिए वहां रह रहे चार सौ परिवार मिथिला की संस्कृति के साथ जी रहे हैं। - अजय कुमार झा, सदस्य, मिथिला कल्चरल सोसायटी, यूके।
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