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30 रुपए प्रति किलो कच्चा मखाना खरीद बाजार में बेच रहे 500 की दर से, किसानों की मेहनत पर मुनाफा कमा रहे बिचौलिए

Makhana Price कोसी-पूर्णिया-मिथिलांचल में देश का 80 फीसद मखाना उत्पादन होता है लेकिन बाजार पर नियंत्रण के अभाव में किसानों को उसका लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। इससे किसानों का हौसला तो पस्त हो ही रहा है साथ ही उनका रूझान भी कम होने लगा है।

By Manoj KumarEdited By: Ashish PandeyPublished: Mon, 06 Feb 2023 01:01 PM (IST)Updated: Mon, 06 Feb 2023 01:01 PM (IST)
30 रुपए प्रति किलो कच्चा मखाना खरीद बाजार में बेच रहे 500 की दर से, किसानों की मेहनत पर मुनाफा कमा रहे बिचौलिए
मखाना फोड़ रहीं महिला किसान, सही दाम न मिलने से मखाना खेती में घट रहा रूझान l फोटो- जागरण

मनोज कुमार, जागरण संवाददाता, पूर्णिया: सीमांचल-मिथिलांचल की प्रमुख व्यवसायिक फसल मखाना किसानों को समृद्धि बनाने के बजाए अब उसे कमजोर करने लगी है। किसान मेहनत कर कीचड़ से उजला सोना उगाते हैं, लेकिन उसका मुनाफा व्यापारी और बिचौलिए उठा रहे हैं। कोसी-पूर्णिया-मिथिलांचल में देश का 80 फीसद मखाना उत्पादन होता है, लेकिन बाजार पर नियंत्रण के अभाव में उसका लागत मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इससे किसानों का हौसला तो पस्त हो ही रहा है, साथ ही इस फसल से उनका रूझान भी अब कम होने लगा है।

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किसानों से 30 रु/किलो खरीद बाजार में बिक रहा 500 रु/किलो

इस सीजन में मखाना किसानों को उनकी उपज का औसतन 300 रुपये प्रति क्विंटल रेट मिला, जबकि व्यापारी बाजार में पांच हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से मखाना बेच कर भारी मुनाफा कमा रहे हैं। मखाना किसान और नव-उद्यमी मनीष कुमार कहते हैं कि जब तक सरकार बाजार नीति नहीं बनाती है, तब तक मखाना किसानों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाएगा। वह बताते हैं कि बाजार पर कुछ स्टॉकिस्ट और बिचौलिए इतने हावी हैं कि किसानों का मखाना खेतों से निकलते समय उसका रेट घटा देते हैं और जब किसानों के हाथों से कच्चा मखाना निकल जाता है तो मनमाने ढंग से उसका रेट बढ़ा देते हैं। सरकार को मखाना का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना चाहिए और साथ ही इसे आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत लाना भी जरूरी है।

एक बीघे में 20 से 25 हजार की लागत

मखाने की खेती और उसकी प्रोसेसिंग काफी जटिल काम है। एक तरह से यह कीचड़ में कमल खिलाने जैसा ही है। मखाने की फसल पूरी तरह पानी के अंदर होती है। फसल लगाने से लेकर उसे निकालने तक किसानों व मजदूरों को कीचड़ से गुजरना पड़ता है। बड़ी उम्मीद के साथ किसान यह फसल लगाते हैं, लेकिन इसके बावजूद किसानों को उनके पसीने का मोल नहीं मिल पाता है। इस साल किसानों को मखाने की फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल पाया है। दरअसल एक बीघा मखाना की खेती में कड़ी मेहनत के साथ बीज, मजदूरी, खाद आदि मिलाकर लगभग 20 से 25 हजार रुपये लागत आती है।

दो माह बाद ही बढ़ गई 15 से 20 प्रतिशत कीमत

कच्चे मखाने को भूनने-फोड़ने के बाद उसका लावा तैयार होता है। इस बार जब खेतों से मखाना निकालने का समय आया तो स्टॉकिस्ट व बिचौलियों ने ऐसा कुचक्र रचा कि किसान अपनी कच्ची फसल 30 रुपये प्रति किलो की दर से बेचने को विवश हो गए। उस वक्त स्टॉकिस्ट-बिचौलियों ने मिलकर अचानक से मखाना का रेट गिरा दिया और कोई भी व्यापारी 300 रुपये प्रति किलो से अधिक रेट से मखाना लेने को तैयार नहीं था। किसानों को उस वक्त दूसरी फसल लगाने के लिए पूंजी की दरकार थी जिस कारण वे उसे औने-पौने दाम में बेचने को तैयार हो गए। लेकिन दुर्भाग्यजनक है कि जैसे ही किसानों के यहां से मखाना निकला इसके दो माह बाद ही उसकी कीमत 15 से 20 प्रतिशत बढ़ गई।

क्या कहते हैं किसान

केस स्टडी-1

जिले के केनगर प्रखंड अंतर्गत रहुआ पंचायत के किसान मनाेरंजन यादव कहते हैं कि प्रचार-प्रसार देख उन्होंने इस बार मखाना की खेती की थी। उन्होंने बताया कि धान के खेत को और गहरा कर तथा मेढ़ को ऊंचा कर करीब ढाई बीघा में मखाना लगाया। कुल 12.5 क्विंटल का उत्पादन हुआ जिस पर करीब 47 हजार की लागत आई, लेकिन जब गुर्री (कच्चा मखाना) निकाला तो उसकी कीमत 3000 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल पाई। इस तरह उन्हें करीब 10 हजार का नुकसान झेलना पड़ा। इसलिए इस बार मखाना छोड़ वह उसमें धान की खेती की तैयारी कर रहे हैं।

केस स्टडी-2

पूर्णिया पूर्व प्रखंड के रानीपतरा के किसान अनिल ठाकुर कहते हैं कि उन्होंने लगभग दो एकड़ में मखाना की खेती की थी, लेकिन उसके लागत मूल्य से ऊपर भी नहीं मिल पाया। उन्होंने बताया कि जैसे पहले जूट को लेकर बाजार में व्यापारी मनमानी करते थे, अब उसी तरह मखाने के साथ भी होने लगा है। ऐसे में जूट की तरह वे लोग मखाना को भी बाय-बाय कर अब दूसरी फसल लगाएंगे।


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