कोसी-मेची लिंक परियोजना: सीमांचल में दिखेगा पुराना भूगोल, नहरें होंगी जीवित; कृषि विकास को मिलेगा बढ़ावा
कोसी-मेची लिंक परियोजना से सीमांचल क्षेत्र में पुराने भूगोल की झलक दिखेगी और नहरें पुनर्जीवित होंगी। इस परियोजना से कृषि विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे ...और पढ़ें
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कोंसी-मेंची लिंक से सीमांचल में दिखेगा पुराना भूगोल। फोटो जागरण
प्रकाश वत्स, पूर्णिया। कभी सीमांचल में नहर ही बड़ी डगर थी। नहरें बाढ़ के प्रकोप को भी कम करती थीं और बाढ़ में फंसे लोगों का सहारा व बसेरा तक बनती थीं। प्रोजेक्ट का कार्यालय पूर्णत: जागा रहता था। कहां नहर की बांध टूट जाए, कहां पानी ओवर फ्लो करने लगे, इसके लिए कार्यालय पूरी तरह तैयार रहता था।
बड़ी नहरों से लेकर छोटी नहरों में भी पानी दौड़ता रहता था। गर्मी में लोगों के लिए स्नान का पसंदीदा स्थल होता था। फसलों की सिंचाई के चलते नहर पर किसानों की नजर टिकी रहती थी। नहरों की यह श्रृंखला यहां के भूगोल को भी सुंदर बना दिया था। कोसी-मेंची लिंक संबंधी ऐतिहासिक परियोजना उस भूगोल को भी जिंदा करने वाला है।
मक्का उत्पादन क्षेत्र में बढ़ी हुई है उत्सुकता
कोसी-मेंची नदी लिंक परियोजना को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दे दी है। यह बड़ी सौगात इलाके को मिली है। उग्र नदी माने वाली कोसी को पहले की तरह वरदान बनाने की यह बड़ी परियोजना है। कोसी को नियंत्रित रखने व उसके पानी से कृषि विकास की अवधारणा वाली इस परियोजना पर नदी के विशेषज्ञों का अपना तर्क भी है। कोसी को नेपाल से जुड़ती व किशनगंज से गुजरी मेची नदी से लिंक करने की इस परियोजना में नहर प्रणाली को भी जीवित करना है।
पूर्व में नहरों को संचालित व नियंत्रित करने वाला विभाग कोसी प्रोजेक्ट का अपना जलवा था। नहरें यहां के आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण को समृद्ध भी बनाने में सहयोगी थीं। सन 2007 के सैलाब में यह लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो गया। रही सही कसर अतिक्रमण व विभाग की डूबती स्थिति ने पूरी कर दी। इस इलाके में मक्का का उत्पादन मुख्य नकदी फसल के रूप में होता है।
सीमांचल में इसका रकवा साढ़े तीन लाख हेक्टेयर के पार है। इसमें औसतन चार बार सिंचाई की जरूरत होती है। अब बहियारों में बिजली भी लगभग पहुंच गई है। ट्रांसफार्मर अपेक्षित संख्या में नहीं रहने से खतरों से खेल भी किसान सिंचाई कर रहे हैं। अगर ऐसे में नहरें जीवित होती हैं तो सिंचाई और सहज हो जाएगी।
कई नहरें बन चुकी हैं सड़क
सीमांचल में पांच सौ से अधिक छोटी नहरों का अस्तित्व अब समाप्त हो चुका है। कहीं सड़कें बन चुकी हैं तो कहीं नहरें मानव बसेरा बन चुकी हैं। ऐसे इलाकों में कई में अब खेती योग्य भूमि भी नहीं बची है। ऐसे में खेतों तक सिंचाई पहुंचाने के लिए छोटी नहरों का निर्माण भी होगा।

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