सरकारी उदासीनता के कारण गांधी सदन नहीं बन सका पर्यटन स्थल
पूर्णिया। उत्तर बिहार का एकमात्र क्रांतिकारियों की शरणस्थली टीकापट्टी, जहां स्वराज आश्रम
पूर्णिया। उत्तर बिहार का एकमात्र क्रांतिकारियों की शरणस्थली टीकापट्टी, जहां स्वराज आश्रम भी था, सरकारी उपेक्षा के कारण पर्यटन स्थल नहीं बन सका। यहां महात्मा गांधी, प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद आदि के चरण पड़े थे। टीकापट्टी को वैसे ही क्रांतिकारियों एवं कला की धरती कही जाती है। यहां एक से एक क्रांतिकारी ठीठरू मंडल, दशरथ चौधरी, तारिणी निर्झर, धनिकलाल प्रेमी, पृथ्वीचंद केशरी जैसे महान क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के छक्के-छुड़ा दिए थे। यहां के जमींदार ठीठरू मंडल को 1921 में जेल में भारी यातनाएं दी गई थी। 1931 में जब टीकापट्टी उत्तर बिहार क्रांतिकारियों एवं स्वराज आश्रम का केंद्र बना तब ठीठरू मंडल के द्वारा 5 एकड़ जमीन डा. राजेंद्र प्रसाद के आने पर सौंपी थी तथा उसी जमीन पर उन्होंने स्वराज आश्रम को स्थापित करवाया। इसी से क्रुद्ध अंग्रेजों ने ठीठरू मंडल के घर पर हमला करके लाखों की संपत्ति 50 बैलगाड़ियों में भरकर रूपौली थाना लेकर चले गए थे तथा उनके पुत्र शेर सूर्यनारायण मंडल को इतनी यातना दी थी कि वे 1934 में शहीद हो गए थे। यहां के क्रांतिकारियों की ख्याति सुनकर 12 अप्रैल 1934 को महात्मा गांधी यहां बैलगाड़ी पर चढ़कर आए थे तथा हौसला आफजाई किए थे। इस स्वराज आश्रम में रहने वाले सभी क्रांतिकारियों के खाने की व्यवस्था यहां के हर परिवार के द्वारा निकाले गए एक-एक मुट्ठी अनाज से होता था। महात्मा गांधी ने कहा था कि ऐसी जगह कम मिलते हैं। आज गांधी सदन अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। पर्यटन स्थल बनने से बेरोजगारों को भी रोजगार मिलता। यहां के सामाजिक कार्यकर्ता जय नारायण कौशिक कहते हैं कि टीकापट्टी को जान बूझकर उपेक्षित किया गया। अब गांधी सदन को यहां के सरकारी पेंशनधारियों ने गोद ले लिया है तथा इसे सजाने-संवारने की कोशिश कर रहे हैं। पेंशनधारी संघ के अध्यक्ष दिनेश मंडल कहते हैं कि पेंशनधारियों द्वारा इसे सजाने-संवारने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए।
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