कहीं विवशता तो कहीं फरेब से पल रही गुलामी की नयी कहानी, देह व्यापार में धकेली जा रहीं नाबालिग बच्चियां
नेपाल व बांग्लादेश की सीमा पर बसे सीमांचल इलाके में अब दासता की नयी कहानी पल रही है। इस नयी कहानी में बच्चे व बच्चियों की डरावनी तस्वीर भी झांकती है। बाल श्रम, ट्रैफिकिंग व देह मंडियों तक नाबालिग बच्चियों के पहुंचने की दास्तां इसका साक्ष्य है। इसी तरह विवशता व जागरुकता के अभाव में यहां पैसे के बल बाल विवाह का दस्तूर कायम है।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
जागरण संवाददाता, पूर्णिया। नेपाल व बांग्लादेश की सीमा पर बसे सीमांचल इलाके में अब दासता की नयी कहानी पल रही है।
इस नयी कहानी में बच्चे व बच्चियों की डरावनी तस्वीर भी झांकती है। बाल श्रम, ट्रैफिकिंग व देह मंडियों तक नाबालिग बच्चियों के पहुंचने की दास्तां इसका साक्ष्य है। इसी तरह विवशता व जागरुकता के अभाव में यहां पैसे के बल बाल विवाह का दस्तूर कायम है।
इन पर अंकुश के लिए सरकारी विभाग भी कार्यरत है। इसके तहत कार्य भी हो रहे हैं, लेकिन तस्वीर अब भी भयावह है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सीमांचल के चारों जिलों पूर्णिया, कटिहार, अररिया व किशनगंज में हर माह में औसत 20 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराए जा रहे हैं।
इसमें गरीबी व कुछ अन्य कारणों से बच्चों को एक तरह से प्रतिष्ठान के मालिक के पास गिरवी रख दिया जाता है। मखाना फोड़ी का कार्य भी यहां बाल श्रम पर टिका हुआ है। इधर इंटरनेट मीडिया व अन्य माध्यमों से नाबालिग बच्चियों को प्रेम जाल व शादी का प्रलोभन देकर देह मंडियों में झोंकने की अलग कहानी है।
चंद माह पूर्व ही पूर्णिया की दो अलग-अलग देह मंडियों से ऐसी 15 बच्चियों को मुक्त कराया गया था। यह क्रम लगातार जारी रहता है। इसी तरह छद्म शादी के जरिए बच्चियों की ट्रैफिकिंग के आंकड़े अलग हैं।
इस मामले में काफी समय से कार्यरत भूमिका विहार नामक संस्था की निदेशक शिल्पी सिंह का कहना है कि लगातार नये तरीकों से बच्चियों की ट्रैफिकिंग की जा रही है और इसके आंकड़े भी उनके पास उपलब्ध हैं।
सरकार की नयी व्यवस्था के तहत सामाजिक कल्याण विभाग के अंतर्गत कार्यरत बाल कल्याण समिति व बाल संरक्षण इकाई के तत्वावधान में बाल श्रमिकों व अलग-अलग कारणों से देह मंडियों में पहुंचायी गई बच्चियों के लिए बेहतर कार्य हो रहे हैं। फिलहाल ऐसे 306 बच्चों को जो माता-पिता या फिर माता या पिता के निधन से श्रम करने को मजबूर थे, उन्हें इससे मुक्त कराने के बाद चार हजार रुपये प्रति माह मदद दी जा रही है। देह मंडियों से मुक्त करायी बच्चियों के आवासन, पुनर्वास व विधि सहायता के साथ उनकी काउसिलिंग कर नव जीवन प्रदान किया जा रहा है।
-सुमित प्रकाश, चेयर पर्सन, बाल कल्याण समिति, पूर्णिया।

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