Bihar Politics: बायसी में महागठबंधन तो कसबा में राजग की बढ़ गई उलझन, बगावत के मिल रहे संकेत!
बिहार की राजनीति में बायसी और कसबा में महागठबंधन और राजग की मुश्किलें बढ़ रही हैं। दोनों गठबंधनों को बगावत का डर सता रहा है, क्योंकि टिकट वितरण से कई नेता और कार्यकर्ता नाखुश हैं। अगर बगावत होती है, तो इसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है और किसी भी गठबंधन के लिए जीत मुश्किल हो जाएगी।

प्रकाश वत्स, पूर्णिया। जिले के सात विधानसभा क्षेत्रों के लिए 13 अक्टूबर से नामांकन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। इस चलते राजग व महागठबंधन दोनों में सीट शेयरिंग व उम्मीदवारों को लेकर अंतिम निर्णय का दौर चल रहा है। सात में से पांच सीटों का गणित लगभग सुलझा हुआ है, और सस्पेंस बस चेहरे को लेकर है।
इसके विपरीत बायसी सीट पर जहां महागठबंधन तो कसबा सीट पर राजग की उलझन अलग तरीके की है। बगावत के बड़े खतरे यहां दहलीज पर हैं और निर्णय की छोटी सी चूक चुनावी नैया को डूबो सकती है। सीट शेयरिंग के नए फार्मूले से भी इस भंवर को पार करना दोनों ही गठबंधन के लिए टेढ़ी खीर होगी।
बायसी में दोहरी उलझन, हाजी सुबहान व सैयद रुकनुद्दीन का अलग फेरा:
बायसी विधानसभा सीट को लेकर महागठबंधन में दोहरी उलझन है। लंबे समय यह सीट राजद के हिस्से में रही है और गत चुनाव में भी राजद यहां से चुनाव लड़ा है। इस बार कांग्रेस इस सीट पर दावा ठोक रही है। यद्यपि सीट शेयरिंग का यह मामला सुलझ भी गया तो राजद के लिए प्रत्याशियों का चयन आसान नहीं है।
गत चुनाव में राजद प्रत्याशी के रूप में पूर्व मंत्री हाजी अब्दुस सुबहान मैदान में थे। उक्त चुनाव में इस सीट से एआइएमआइएम ने सैयद रुकनुद्दीन को मैदान में उतारा था और उन्होंने बाजी मार ली थी। बाद में वे राजद में शामिल हो गए और उन्हें इस चुनाव में पार्टी प्रत्याशी बनाने का भरोसा भी मिला था।
इधर, हाजी सुबहान राजद के एक आधार स्तंभ रहे हैं। वर्ष 1985 में इस सीट से पहली जीत दर्ज करने वाले हाजी सुबहान की निष्ठा सदैव पार्टी के प्रति बनी रही। पांच-पांच जीत उनके नाम दर्ज हैं और वे राजद के शासन काल में मंत्री तक बनाए गए हैं। ऐसे पार्टी के लिए उन्हें दरकिनार करना मुश्किल हो रहा है, वह भी उस स्थिति में जब वे बेटिकट होने पर भी मैदान में उतरने का एलान कर चुके हैं।
इधर, सैयद रुकनुद्दीन से वादाखिलाफी के बाद भी मैदान मारना राजद के लिए कठिन होगा, क्योंकि बगावत का झंडा लिए उनका मैदान में उतरना तय हो जाएगा।
कसबा में दावा हम का मगर भाजपा के पूर्व विधायक निकाल सकते हैं दम
जिले का कसबा विधानसभा क्षेत्र इस बार राजग के निशाने पर है। इसका अहम कारण इस क्षेत्र से कांग्रेस की लगातार जीत है। कसबा से अफाक आलम जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं और इस बार भी वे जंग के लिए पहले से तैयार हैं। यहां से जीत-हार में वोटों का समीकरण अहम है। इसमें सेंध से राजग की नैया पूर्व की तरह डूब सकती है।
इस चलते कसबा सीट पर लगातार माथापच्ची होती रही है। गत चुनाव में इस सीट पर हम ने दावा ठोक दिया था और अंतत: गठबंधन को बचाने के लिए हम को यह सीट देनी पड़ी थी। ऐसे में पूर्व में तीन बार विधायक चुने गए भाजपा के पूर्व विधायक प्रदीप कुमार दास बेटिकट होने पर बागी हो गए थे और लोजपा-आर से मैदान में उतर गए थे।
स्थिति यह रही थी कि वे दूसरे स्थान पर रहे थे और हम के उम्मीदवार राजेंद्र यादव काफी अंतर से तीसरे स्थान पर चले गए थे। बाद में प्रदीप दास की वापसी भाजपा में हो गई थी और उन्हें भी इस बार मैदान में उतारने का भरोसा मिला था।
इधर, हम की दावेदारी इस बार भी कायम है और प्रदीप दास भी चुनाव लड़ने के प्रति आश्वस्त हैं। हम के राजेंद्र यादव भी अगले पांच साल के इंतजार के मूड में नहीं हैं। ऐसे में इस पेंच ने राजग की नैया को भंवर में खड़ा कर दिया है।
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