Bihar Politics: 'हम' के भी बगावती तेवर, इस सीट पर बढ़ेगी NDA की मुश्किल; चिराग उठा पाएंगे फायदा?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही, कसबा सीट पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। सीट बंटवारे से नाराज 'हम' जिलाध्यक्ष राजेंद्र यादव और भाजपा के पूर्व विधायक प्रदीप कुमार दास ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान किया है। राजग के वोट बंटने से कांग्रेस के अफाक आलम के लिए अपनी सीट बचाना एक बड़ी चुनौती होगी, वहीं लोजपा (आर) को फायदा मिल सकता है। मुस्लिम वोटों का बिखराव भी परिणाम पर असर डालेगा।

जीतन राम मांझी, नरेंद्र मोदी और चिराग पासवान।
मनोज कुमार, पूर्णिया। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) की घोषणा के साथ ही एनडीए और महागठबंधन के घटक दलों में उठा तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। सीट शेयरिंग पर छनकर आ रही सूचना के साथ यह तूफान और तेज होने लगा है। जिले के कसबा विधानसभा सीट का भी कमोबेश यही हाल है।
सीट शेयरिंग की घोषणा बाद कसबा सीट पर घमासान मचा है। सीट शेयरिंग में कसबा सीट हम के बदले लोजपा-आर के खाते में जाने से हम के जिलाध्यक्ष सह पूर्व प्रत्याशी राजेंद्र यादव बगावत की राह पर हैं। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक के बाद निर्दलीय मैदान में उतरने की घोषणा कर दी है।
उन्होंने अपना नामांकन दाखिल करने के लिए स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में एनआर भी कटा लिया है। वहां से भाजपा के पूर्व विधायक प्रदीप कुमार दास पहले ही निर्दल मैदान में उतरने की घोषणा कर चुके हैं। दोनों ही उम्मीदवार राजग खेमे के लिए मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।
जिला मुख्यालय से सटे कसबा विधानसभा क्षेत्र की मिट्टी उर्वर होने के साथ राजनीतिक रूप से भी यह काफी सजग रहा है। यही वजह है कि आजादी के बाद से अब तक हुए चुनाव में यहां की जनता ने सभी ध्रुवीय राजनीतिक धारा को यहां से प्रतिनिधित्व का मौका दिया है।
यहां से कांग्रेस, भाजपा, लोजपा व समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधियों को समय-समय पर जीत मिल चुकी है, लेकिन कांग्रेस का पलड़ा थोड़ा भारी रहा है। 1967 से यहां 2020 तक 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें आठ बार कांग्रेस ने परचम लहराया है।
1967 से 1985 तक इस सीट पर लगातार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के शिवचरण मेहता ने कांग्रेस का किला तोड़ा।लेकिन उसके बाद लगातार तीन बार यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। 1995, 2000 और अक्टूबर 2005 में भाजपा ने यहां से जीत दर्ज की। इस बीच फरवरी 2005 में समाजवादी पार्टी को यहां जीत मिली थी।
मु. अफाक आलम ने उस वक्त वहां से जीत दर्ज की थी, जो अब कांग्रेस के नेता हैं। अफाक आलम 2010, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार विधायक चुने गए। 2020 के चुनाव में उन्होंने लोजपा-आर के प्रदीप कुमार दास को हराया, जो भाजपा से तीन बार विधायक रह चुके हैं और अब भी स्थानीय राजनीति में सक्रिय हैं।
वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अफाक आलम मैदान में थे। एनडीए ने यह सीट अपने सहयोगी हम के खाते में दे दी। हम ने यहां से अपने जिलाध्यक्ष राजेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया। परंतु भाजपा के पूर्व विधायक प्रदीप दास ने बागी रुख अख्तियार कर लिया और वहां से लोजपा-आर से मैदान में उतर गए। परिणाम हुआ कि एनडीए के वोट में बिखराव हुआ और हम उम्मीदवार को मुंह की खानी पड़ी।
2025 में हो रहे चुनाव में भी एक बार फिर वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है। एनडीए ने इस बार वहां से हम को रिप्लेस कर यह सीट लोजपा (आर) की झोली में डाल दी है। पार्टी ने अभी तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है लेकिन माना जा रहा है कि लोजपा नेता व पूर्व सांसद प्रत्याशी रहे शंकर झा बाबा के पुत्र यहां से उम्मीदवार हो सकते हैं। उससे पूर्व यहां से एनडीए के दो प्रमुख घटक दलों ने बागी तेवर दिखाना शुरू कर दिया है।
भाजपा के पूर्व विधायक प्रदीप दास और हम के पूर्व प्रत्याशी राजेंद्र यादव ने स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। अगर दोनों उम्मीदवार मैदान में आते हैं तो एक बार फिर राजग वोट का बिखराव तय माना जा रहा है। यद्यपि मुस्लिम बहुल इस विधानसभा क्षेत्र से जन सुराज ने इत्तेफाक आलम उर्फ मुन्ना को अपना प्रत्याशी बनाया है।
पूर्व प्रमुख इरफान कामिल ने भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की है। ऐसे में मुस्लिम व हिंदू वोटों की एकजुटता व बिखराव पर यहां के उम्मीदवारों की हार-जीत निर्भर करेगी। अगर यहां मुस्लिम वोट बैंक में दरार आई या संख्या घटी, तो लोजपा को बढ़त मिल सकती है, जबकि अफाक आलम के सामने अपना मजबूत गढ़ बचाने की बड़ी चुनौती होगी।
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