स्वतंत्रता संग्राम में कलाकारों का योगदान याद करेगा रंगदूत
पूर्णिया। भारत की आजादी की लड़ाई में सभी का योगदान है। इस आंदोलन में किसान से लेकर साधु संन्यासी तक न
पूर्णिया। भारत की आजादी की लड़ाई में सभी का योगदान है। इस आंदोलन में किसान से लेकर साधु संन्यासी तक ने अपना-अपना योगदान दिया था। साधु संन्यासी के योगदान पर बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा आनंदमठ की रचना की गयी थी जिसमें साधु और संन्यासियों के स्वतंत्रता संघर्ष की गाथा थी। उसी तरह पूर्णिया के टीकापट्टी में श्री कालिका हिन्दी नाट्य समिति के कलाकारों के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को लेकर रंगकर्मी डॉ अखिलेश कुमार जायसवाल ने रंगदूत की रचना की है। बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के सहयोग से इस पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा।
14 नवम्बर 1915 को स्थापित श्री कालिका हिन्दी नाट्य समिति के रंगकर्मियों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अद्वितीय भूमिका निभायी थी। देश को 1947 में आजादी मिली, उसके बाद 70 वर्षों में रंगकर्मियों के इस योगदान को ना ही याद किया गया और ना ही उसे सहेजने की कोशिश की गयी है। अब लोग उनके योगदान को भूलते जा रहे हैं। इस पर शोध कर पुस्तक में समेटने का भागीरथी प्रयास रंगकर्मी डॉ जायसवाल ने किया है। इस पर शोध के लिए बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग ने शोध एवं चित्रांकन के लिए सहयोग राशि भी दी गयी है। डॉ जायसवाल बताते हैं कि रंगकर्मियों के योगदान को पुस्तक में चित्र के साथ संजोया जा रहा है जिसका नाम रंगदूत है। शोध और चित्राकंन का काम पूरा कर लिया गया है और अब यह प्रकाशन के लिए जा रहा है, जल्द ही यह पाठकों के बीच होगा। इसमें नील आंदोलन से लेकर नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन और देश की आजादी तक के कालक्रम में खासकर टीकापट्टी के कालिका नाट्य समिति के रंगकर्मियों के योगदान और इस दौरान घटी घटनाओं को समेटा गया है। इस दौरान यहां पर देश के बड़े - बड़े नेताओं का आगमन हुआ और उन्होंने रंगकर्मियों से मुलाकात कर उनके योगदान की सराहना की थी। उसमें महात्मा गांधी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे नेता शामिल हैं। महर्षी मेंही भी यहां पहुंचे और एक आश्रम की भी स्थापना की। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शात्री ने बतौर कलाकार पंद्रह साल तक इस मंच से जुड़े थे। इस सभी घटनाओं के चित्राकांन का काम किशोर उर्फ गुल्लु दा ने किया है इसके पीछे का ¨चतन डॉ जायसवाल का है। शोध कार्य डॉ जायसवाल की सहयोगी की भूमिका में रंजू कुमारी हैं। रंगकर्मी रंगकर्म करते हुए जेल गये। वहां उन्होंने कविता लिखी, नाटक लिखे, रंगकर्म के इतिहास में यह सबसे बड़ी घटना है। रंगकर्मी सूर्यनारायण मंडल को स्थानीय दारोगा द्वारा इतनी बेरहमी से पीटा गया था उनकी जेल से छूटने के बाद मौत हो गयी थी। ऐसे ही कई दास्तान हैं जिसे कहने वाले मर चुके हैं या काफी बुजुर्ग हो चुके हैं। कलाकारों के उन दास्तान को रंगदूत किताब के माध्यम से लोगों के समक्ष लाया जाएगा। जल्द ही पुस्तक का प्रकाशन होगा।
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