पूर्णिया में नारियल की खेती को दिया जाएगा बढ़ावा
पूर्णिया,जागरण संवाददाता : नारियल सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ इसका आर्थिक महत्व भी है। नारियल का फल
पूर्णिया,जागरण संवाददाता : नारियल सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ इसका आर्थिक महत्व भी है। नारियल का फल प्राकृतिक पेय के रूप में, गरी खाने एवं तेल के लिए फल का छिलका व रेशा विभिन्न औद्योगिक कार्यो में तथा पत्ते जलावन, झाडू, छप्पर एवं खाद बनाने के उपयोग में आते है जबकि लकड़ी का उपयोग फर्नीचर के उपयोग में आते है। इसके उपयोगिता को देखकर इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है।
इसकी उपयोगिता को देख बिहार में नारियल की खेती के लिए सरकार ने नारियल विकास बोर्ड को अधिकृत किया है। इसके तहत पूर्णिया के किसानों को नारियल की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए किसानों को बोर्ड द्वारा नारियल वृक्ष 30 रुपये में उपलब्ध कराएगा। नारियल के पौधों मे अच्छी वृद्धि एवं फसल के लिए उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु आवश्यक है। साल भर समानुपाती रुप से वर्षा उपयुक्त माना गया है। असमानुपाती वर्षा की स्थिति में सिंचाई आवश्यक है।
मिट्टी का चयन : नारियल की खेती के लिए अच्छी जलवायु के साथ नि:सारण (जलविकास) क्षमता वाली कोई भी मिट्टी उपयुक्त है। बलुई अथवा दोमट मिट्टी नारियल फसल के लिए काफी उपयोगी है। पूर्णिया एवं कोसी क्षेत्र में प्रचूर मात्रा में जमीन उपलब्ध है।
नारियल की किस्म : नारियल की खेती करने में इनके दो प्रकार के किस्म में बांटे गये है एक लम्बी व दूसरी बौनी है। लम्बी व बौनी किस्मों के संकरण से तैयार किस्म को संकर किस्म के नाम से जाना जाता है। बिहार के लिए लम्बी व संकर किस्म अनुशंसित है। पर्याप्त सिंचाई सुविधा नही होने पर लम्बी किस्म ही ज्यादा उपयोगी है।
नारियल रोपन की विधि: नारियल के पौधा गुणवत्ता युक्त ही रोपन करना चाहिए। रोपन के समय बिचरा 9 से 18 माह के बीच का होना चाहिए। जिसमें कम से कम 5 से 7 हरे पत्ते अवश्य हो। पौधा रोग ग्रस्त नही होना चाहिए। अप्रैल से मई माह के बीच 25X25 फीट की दूरी पर 1X1X1 आकार के गढे़ बनाया जाता है। गढ़ा में 30 किलो गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट एवं सतही मिट्टी को मिलकर इस तरह भरें कि उपर से 20 सेमी गड्डा खाली हो। इसके बाद नारियल लगाने का उपयुक्त समय जून से सितंबर माह के बीच का है। बारिश व ठंडा के मौसम छोड़ कभी भी पौधा लगाया जा सकता है।
कैसे करे पौधों की देखभाल
नवरोपित बिचरों को अत्यधिक ठंडक एवं गर्म हवा से बचाव के लिए समुचित छाया एवं सिंचाई की व्यवस्था करना हितकर है। रोपन के बाद दो वर्ष तक तने व बीच का भाग खुला अवश्य रखना चाहिए। तीन से चार दिनों के अंतराल पर सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए।
क्या कहते है अधिकारी
बागवानी मिशन अन्तर्गत नारियल को जिले में नही लिया गया है। इसके बावजूद नारियल विकास बोर्ड द्वारा किसानों को नारियल की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इच्छुक किसानों को विभाग नारियल का पौधा नारियल विकास बोर्ड के सहयोग से उपलब्ध कराएगा। तकनीकी जानकारी भी बोर्ड द्वारा किसानों को दी जाएगी।
डॉ. राकेश कुमार
सहायक निदेशक
जिला उद्यान विभाग, पूर्णिया
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