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विद्यापति पर्व विशेष: महाकवि की रचनाअों में जीवन का मर्म और सार

मैथिली के सर्वोपरि कवि विद्यापति का अवसान आज ही के दिन हुआ था। इस दिन देश भर में विद्यापति पर्व मनाया जाता है। आइए इस दिन जानें महाकवि के बारे में कुछ खास।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 08:19 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 08:25 PM (IST)
विद्यापति पर्व विशेष: महाकवि की रचनाअों में जीवन का मर्म और सार
विद्यापति पर्व विशेष: महाकवि की रचनाअों में जीवन का मर्म और सार

पटना [कुमार रजत]। सामाजिक समरसता के प्रतीक बहुभाषाविज्ञ महाकवि विद्यापति को याद करना जरूरी हो जाता है। उन विद्यापति को जिनकी लेखनी में श्रृंगार और भक्ति रस ही नहीं, जीवन का मर्म और सार भी है। उन विद्यापति को जिन्‍होंने आज से करीब 600 साल पहले मातृभाषा के महत्व को समझा और लिखा- 'देसल बयना सब जन मिट्ठा', यानी अपनी भाषा सबको प्रिय होती है। 

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साहित्य को लोकभाषा से मिलाया

याद करना जरूरी है, उन विद्यापति को जिन्होंने साहित्य को लोकभाषा से मिलाया। जिन्होंने संस्कृत में तो रचनाएं लिखीं ही, अवहट्ठ और मैथिली में लिखकर जन-जन के प्रिय बन गए। यही कारण है कि आज वे बंगाल, असम और ओडिशा में भी उतने ही लोकप्रिय हैं, जितने बिहार में।

हर जगह गए विद्यापति के गीत व संस्कार

और बिहार-बंगाल ही क्यों, मिथिला के लोग जहां-जहां गए, उनके साथ विद्यापति के गीत और संस्कार भी गए। बंगाल में चैतन्ये महाप्रभु और ओडिशा में रामानंद राय विद्यापति से गहरे प्रभावित थे। उनका समाज सुधारक रूप उतना ही प्रखर है, जितना सांस्कृ तिक जागरण के पुरोधा पुरुष का व्ययक्तित्व, समन्वकयवादी स्वखरूप भी बहुत समादृत है।

शिव, विष्णु और शक्ति तीनों की आराधना करते थे महाकवि
चूंकि उनके समय में बहुत सारे संप्रदाय और मत थे। कोई वैष्णपव था, कोई शैव तो कोई शाक्त । लेकिन महाकवि शिव, विष्णु और शक्ति तीनों की आराधना करते थे। मैथिल कवि और लेखक अजीत आजाद कहते हैं, भारत में कभी सात हजार से अधिक भाषाएं थीं जो अब सिमट कर 400 तक आ गईं हैं। क्षेत्रीय भाषाओं को प्रतीक पुरुष की जरूरत है, विद्यापति उसके ही ध्वजवाहक हैं।

मैथिली में पदावली लिखी
विद्यापति ने जब मैथिली में पदावली लिखी तो उस समय संस्कृत के विद्वानों ने खूब आलोचना की मगर विद्यापति ने अपना काम जारी रखा। वे मिथिला संस्कृति में लोकदेवता की तरह है। यही कारण है कि उनके मृत्यु दिवस यानी बरसी पर देश भर में विद्यापति पर्व मनाया जा रहा है।

लेखनी में जीवन का मर्म और सार
अजीत आजाद कहते हैं, विद्यापति ने सिर्फ श्रृंगार और भक्ति रस की रचनाएं ही नहीं लिखीं, उनकी लेखनी में जीवन का मर्म और सार है। जिस तरह कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र’ और मार्क्‍स ने 'दास कैपिटल’ लिखा, उसी तरह विद्यापति ने 'पुरुष परीक्षा’ लिखी। इसमें लोक को बताया कि पुरुष या मनुष्य कैसा होना चाहिए? उसकी

कसौटी निर्धारित की। 'लिखनावली’ में उन्होंने बताया कि देश का शासन तंत्र कैसा होना चाहिए? राजा को कैसा होना चाहिए? वे नाटककार भी थे। उन्होंने उस काल में मणि मंजरा और गोरक्ष विजय जैसे बेहतरीन नाटकों की भी रचना की।

विद्यापति की भाषा में राग-लाय-तल सब

विद्यापति की प्रासंगिकता के सवाल पर मगध महिला कॉलेज की मैथिली विभाग की अध्यक्ष डॉ. अरुणा चौधरी कहती हैं, विद्यापति की भाषा आम, सहज, सरल होने के साथ गेय धर्मिता वाली है। इसमें राग-लाय-तल सब है। उनका लिखा गीत 'जय-जय भैरवी असुर भयाउनी' के बिना शायद ही मिथिला का कोई आयोजन, कोई समारोह होता है। आज भी मिथिला में देवी वंदना हो, शादी-विवाह हो, पर्व-त्योहार हो, मधुश्रावणी हो, विद्यापति के गीत ही जुबान पर होते हैं।

विद्यापति के बारे में...

विद्यापति का जन्म बिहार के मधुबनी जिले के विस्फी गांव में हुआ था। उनके जन्म और मृत्यु दोनों के ही वर्षों को लेकर मतभेद है, मगर माना जाता है कि उनका कालखंड 1350-1450 ई: के आसपास था। वे शतायु थे। वे मैथिली के सर्वोपरि कवि माने जाते हैं। उन्होंने संस्कृत और अवहट्ठ में भी रचनाएं लिखीं। कार्तिक त्रयोदशी

को उनका अवसान हुआ, जिस दिन देश भर में विद्यापति पर्व मनाया जाता है। 


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