वर्ल्ड हेल्थ डे: डिप्रेशन से डरिए नहीं लडि़ए, जानिए इससे मुक्ति के मंत्र
विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर इस बार का थीम है- डिप्रेशन। मानसिक अवसाद एक एेसी समस्या है जिसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। जरूरत है इच्छा शक्ति और पारिवारिक सहयोग की। पढिए..
पटना [काजल]।भारत में लोग मानसिक बीमारियों के बारे में ज्यादा बात नहीं करते। आम धारणा है कि अगर किसी को कोई मानसिक बीमारी है तो ऐसा जरूर उसकी खुद की गलतियों की वजह से हुआ होगा। भारत में मानसिक रोगियों का इलाज कराने की बजाय लोग उन्हें ताने मारते हैं.. उनका मज़ाक उड़ाते हैं।
ऐसे रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हो सकता है कि आपके घर में भी कोई ऐसा सदस्य हो, जो डिप्रेशन के दौर से गुजर रहा हो। इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल स्वास्थ्य दिवस के लिए 'डिप्रेशन' या 'अवसाद' को थीम चुना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 30 करोड़ से अधिक लोग डिप्रेशन से ग्रस्त हैं और इनमें से 50 फीसद भारत और चीन में रहते हैं। बिहार की बात करें तो यहां की 20 फीसद आबादी डिप्रेशन की शिकार है, जिसमें सर्वाधिक संख्या 15 से 25 वर्ष के युवाओं की है।
महिलाओं में यह पांच तो पुरुषों में चार फीसद की दर से बढ़ रहा है। हालांकि, राहत की बात यह है कि डिप्रेशन से आत्महत्या की दर देश में सबसे कम है।
डॉक्टरों का कहना है कि प्रत्येक 10 में से आठ लोग इसके मरीज हैं, भले ही उन्हें खुद इसका पता नहीं हो। बिहार में भी डिप्रेशन के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर उम्र, हर तबके के लोग इसमें शामिल हैं। खास बात यह है कि मरीज को नहीं लगता कि वह बीमार है। ऐसे में परिवार वालों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
ये हैं बीमारी के कारण
दिल्ली के मैक्स हॉ्स्पीटल में विजिटिंग फैकल्टी न्यूरो फिजिशियन डॉ. समर्थ सिंह कहते हैं कि आज की जीवनशैली, संयुक्त परिवार का विघटन, बहुत जल्दी सबकुछ पा लेने की इच्छा, बेरोजगारी, प्रतिद्वंद्विता, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, घर का माहौल आदि ऐसे तमाम कारण है जो डिप्रेशन को जन्म दे रहे हैं।
इस बारे में योग विद्या संवर्धक मंडल के संस्थापक योगाचार्य प्रो. प्रभाकर भट्ट ने कहा कि डिप्रेशन का मुख्य कारण है-जीवन के प्रति अनुशासनहीनता और आधुनिक जीवन शैली। बच्चा गर्भ में रहने के दौरान भी मां के डिप्रेशन से प्रभावित होता है।
पहले कहा जाता था कि बच्चा जब गर्भ में हो तो रामायण-गीता सुनना चाहिए। अच्छी सोच रखनी चाहिए इससे शिशु में सकारात्मकता आती है। लेकिन आधुनिक समय में गर्भवती मां रोज एक नया टेंशन झेलती है जिसका असर होने वाले शिशु पर भी पड़ता है।
समय पर इलाज से हुआ सुधार
बीमारी का इलाज समय पर हो तो यह ठीक हो जाता है। डीप डिप्रेशन से ग्रस्त पटना के बोरिंग रोड के अश्विनी कुमार सिंह का कहना है कि वे बेरोजगार थे और लोगों की बातें सुनकर बुरा लगता था। निराशा के कारण धीरे-धीरे लोगों से कटने लगा, जीवन कठिन लगने लगा।
उन्होंने कहा कि एक दिन आत्महत्या तक करने की बात सोची। लेकिन, ऐन वक्त पर बेटा आकर गोद में बैठ गया और मासूमियत से मेरी ओर देखने लगा। इसके बाद आत्महत्या करने की हिम्मत भी जाती रही। अश्विनी कुमार सिंह को परिजनों ने इलाज दिल्ली के डॉ. संदीप बोहरा को दिखाया। इलाज श्ुारू हुआ तो अब धीरे-धीरे वे ठीक हो रहे हैं।
लाइलाज नहीं बीमारी
सबसे बड़ी बात यह है कि यह बीमारी लाइलाज नहीं है। जरूरत है बस आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच की। आत्मानुशासन से डिप्रेशन की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। प्रो. प्रभाकर भट्ट कहते हैं कि योगा व मेडिटेशन इसमें रामबाण की तरह सहायक है।
उन्होंने कहा कि योग को स्कूलों सिलेबस में शामिल करना चाहिए। पढ़ाई के साथ योगा के क्लासेज भी होने चाहिए। इससे मन शांत रहेगा और ऊर्जा मिलेगी।
मनोचिकित्सक डॉ. बिंदा सिंह ने कहा, 'आजकल बच्चों पर पढ़ाई का दबाव अधिक है। उनसे हम बहुत अधिक अपेक्षाएं पाल लेते हैं। जब बच्चा माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता तो उसमें अपराध की भावना आती है। वह डिप्रेशन में चला जाता है।
डॉ. बिंदा सिंह ने कहा कि बच्चों को बड़ी अपेक्षाएं पूरी न करने पर डांटना या नीचा दिखाना गलत है। उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करना चाहिए कि जीवन बहुत लंबा है, कोशिश करने से ही सफलता मिलती है।
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पटना के जिम ट्रेनर अरूण कहते हैं कि उनके जिम में माइल्ड डिप्रेशन की शिकार कई महिलाएं आती हैं। उन्हें एरोबिक्स, एक्सरसाइज के साथ ही योगा के कुछ आसन करवाए जाते हैं। उन्हें जल्द से जल्द फिट होना होता है। उन्हें हम पहले कुछ योगा और मेडिटेशन करवाते हैं फिर धीरे-धीरे वर्क आउट करवाते हैं, उनमें आत्मविश्वास भरने की कोशिश करते हैं कि वो फिट हैं।
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डिप्रेशन के लक्षण
- एक ही बात को बार-बार बोलना, कभी हंसना-कभी रोना।
- याद नहीं कि आखिरी बार खुश कब थे।
- अंधेरे और एकांत में रहना।
- बिस्तर से उठने या नहाने जैसी बातें भी कठिन लगना।
- धीरे-धीरे लोगों से कटने लगना।
- कुछ भी अच्छा नहीं लगना, आप खुद से नफरत करना।
- अपने आप को खत्म कर लेने की इच्छा।
- हर बात में निगेटिविटी तलाशना।
डिप्रेशन के कारण
- सिनेमा कल्चर।
- घरेलू हिंसा।
- सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक समस्या।
- अधिक पाने की चाहत।
- बच्चों पर पढ़ाई का दबाव।
- युवाओं में बेरोजगारी।
- टूटती सामाजिक वर्जनाएं।
- संयुक्त परिवार का विघटन।
- हम किसी से कम नहीं वाली सोच।
ऐसे करें डिप्रेशन से बचाव
- सोच को रखें सकारात्मक, जीवन से कभी निराश ना हों।
- हर हाल में खुश रहने की कोशिश करें।
- लोगों से मिलें, उनसे परेशानियां शेयर करें, बात करें।
- क्रियेटिव रहें, कुछ-न-कुछ करते रहें। खुद को व्यस्त रखें।
- प्यार में धोखा मिले तो उसे भी स्वीकार करें। ब्रेक अप का भी जश्न मनाएं, उसे निगेटिव ना लें।
- भावनाओं को खुद पर हावी ना होने दें।
- कोई काम मुश्किल नहीं होता, ऐसी सोच रखें।
कहते हैं युवा
- घरवाले पूरा सपोर्ट करते हैं। कभी किसी बात के लिए दबाव नहीं डालते। मैं पूरी मेहनत कर रहा हूं, अब जो होना होगा, वही होगा।
- जीत कुमार (बीपीएससी परीक्षार्थी)
- मैंने प्लस टू कंप्लीट किया है। इंजीनियरिंग मे अच्छा रैंक नहीं मिला तो अब इस साल भी परीक्षा दे रहा हूं। सेल्फ स्टडी करता हूं। मेरे माता-पिता मुझपर भरोसा करते हैं, वे किसी बात का दबाव नहीं देते।
- कुमार सत्यम
- मैं गवर्नमेंट जॉब पाना चाहती हूं, उसके लिए प्रयास कर रही हूं। होना ना होना तो भाग्य की बात है, लेकिन मैं इमानदारी से अपनी पढ़ाई कर रही हूं। पटना में हॉस्टल में रहती हूं। कभी भी गलत सोच या गलत ख्याल अपने उपर हावी नहीं होने देती।
- स्वाति
मुझे आइएएस बनना है। शुरु से मेरा यह सपना है। इसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। मैं मेहनत करती हूं और एक दिन सफलता मिलेगी।
- दिव्या
मैं बी.कॉम. की पढ़ाई के साथ ही हेल्थ कंसल्टेंट का काम भी करती हूं और अपनी पॉकेट मनी के लिए पैसे निकाल लेती हूं। आगे बहुत कुछ करना है। हमेशा खुश रहती हूं और अपने क्लाइंट को भी खुश और हेल्दी रहने की सलाह देती हूं।
- मृणाल राज
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