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    जब टिकट होने के बावजूद रेलवे ने लिया जुर्माना तो क्या हुआ? बीमा कंपनियों की होशियारी से सावधान; जानिए अपने हक

    By Jagran NewsEdited By: Aysha Sheikh
    Updated: Mon, 16 Oct 2023 11:55 AM (IST)

    Jago Grahak Jago आज भी कई लोग अपने हक से वाकिफ नहीं हैं। शायद यही वजह है कि लोगों को अक्सर मुर्ख बनाकर ठग लिया जाता है। हालांकि कई लोग अपने अधिकारों को बखूबी इस्तेमाल करना जानते हैं। ऐसे ही दो किस्से आज हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। पहला मामला रेलवे से जुड़ा है और दूसरा बीमा कंपनी से।

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    जब टिकट होने के बावजूद रेलवे ने लिया जुर्माना तो क्या हुआ?

    राज्य ब्यूरो, पटना। मैसूर एक्सप्रेस से यात्रा के लिए पटना में अनिसाबाद के जितेंद्र प्रसाद ने बर्थ का आरक्षण करा रखा था। वर्ष 2013 में 29 दिसंबर को उन्हें सपरिवार त्रिचिरापल्ली से बेंगलुरु जाना था। उनके पास 1120 रुपये का वैध टिकट था, फिर भी टीटीई ने उनसे जुर्माने की वसूली की।

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    टीटीई का कहना था कि आरक्षण चार्ट में उनके पीएनआर नंबर से संबंधित ब्योरा ही नहीं है। 1120 रुपये जुर्माना देकर वे ट्रेन से गंतव्य तक पहुंचे। पटना वापस आकर उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत की।

    70 हजार रुपये हर्जाने का दावा

    18 प्रतिशत ब्याज के साथ जुर्माने की राशि के अतिरिक्त उन्होंने रेलवे पर 70 हजार रुपये हर्जाने का दावा किया। इसके अलावा न्यायिक खर्च के 10 हजार रुपये की अतिरिक्त मांग की।

    रेलवे का कहना था कि संचार तंत्र व कंप्यूटर का लिंक फेल हो जाने के कारण आरक्षण चार्ट अधूरा रह गया। टिकट के 1120 रुपये वापस कर दिए जाएंगे। आयोग के अध्यक्ष विधु भूषण पाठक व सदस्य रजनीश कुमार ने दोनों पक्षों के तर्कों-तथ्यों का आकलन कर पाया कि यह सेवा में त्रुटि है।

    निर्णयकर्ताओं ने क्या आदेश दिया?

    सोचिए कि अगर जितेंद्र के पास उस समय नकदी नहीं होती तो सपरिवार उनकी क्या स्थिति होती! निर्णयकर्ताओं ने आदेश दिया कि छह प्रतिशत ब्याज के साथ टिकट के 1120 रुपये दो माह के भीतर रेलवे वापस करे। इसके अलावा हर्जाना व न्यायिक खर्च के बतौर पांच-पांच हजार रुपये अतिरिक्त दे।

    ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी को करना पड़ा भुगतान

    बिग्रहपुर के जितेंद्र प्रसाद ने पत्नी सबिता कुमारी के नाम से 2012 में लगभग 12 लाख रुपये की एसयूवी खरीदी। ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उन्होंने एक वर्ष (17 सितंबर, 2012 से 16 सितंबर, 2012 तक) के लिए उस वाहन का बीमा कराया।

    वाहन का मूल्य 1133137 रुपये आंकते हुए बीमा कंपनी ने 33173 रुपये का प्रीमियम भी ले लिया। दुर्भाग्य से उसी वर्ष 28 सितंबर की रात में वाहन की चोरी हो गई। उसके भीतर बैग में वाहन के कागजात, एक चाबी व दूसरे दस्तावेज भी थे। अगले दिन प्राथमिकी हुई और जितेंद्र ने जिला परिवहन पदाधिकारी को वाहन चोरी की सूचना भी दे दी।

    उसके बाद वे बीमा की राशि के लिए दावा किया। वाहन की दूसरी चाबी लेने के बाद इंश्योरेंस कंपनी आनाकानी करने लगी। मामला उपभोक्ता आयोग तक पहुंचा। विधु भूषण पाठक व रजनीश कुमार ने ओरिएंटल इंश्योरेंस को निर्देश दिया कि वह छह प्रतिशत ब्याज के साथ बीमा मूल्य की 75 प्रतिशत राशि का भुगतान तीन माह के भीतर करे।

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