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    Bihar Politics: राहुल ने ऐसा क्या कर दिया... कांग्रेसियों का बढ़ा 'कॉन्फिडेंस'; RJD को हुआ 'कन्फ्यूजन'

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 07:47 PM (IST)

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा से महागठबंधन दलों में एनडीए के खिलाफ मिलकर लड़ने की सहमति बनी। यात्रा में राजद कांग्रेस भाकपा माले समेत कई दलों के नेता शामिल हुए। राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया और उन्हें 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में बेहतर परिणाम की उम्मीद है। यात्रा के दौरान राजद कार्यकर्ताओं का सहज सहयोग रहा।

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    राहुल की यात्रा ने महागठबंधन के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को एकजुट कर दिया

    अरुण अशेष, पटना। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में चली 16 दिन की वोटर अधिकार यात्रा का ठोस लाभ विपक्ष को कितना मिला, इसका सही-सही हिसाब नवंबर में विधानसभा चुनाव परिणाम के समय मिलेगा। तत्काल हासिल यह हुआ कि महागठबंधन के दलों के बीच जमीनी स्तर पर सहमति बन गई कि एनडीए के विरूद्ध राजनीतिक लड़ाई में हम सब साथ हैं।

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    यह नया हासिल इसलिए है कि पहले गठबंधन के दलों के शीर्ष नेतृत्व में तो एकता बन जाती थी, मतदान केंद्र पर दलों का भेद कायम रहता था। यात्रा के पहले दिन से लेकर सोमवार को पटना में आयोजित समापन मार्च तक में कहीं उल्लेख करने लायक मतभेद नजर नहीं आया। यहां तक कि कार्यकर्ताओं ने दूसरे दलों का झंडा थामने से भी परहेज नहीं किया गया।

    महागठबंधन में अभी छह दल हैं- राजद, कांग्रेस, भाकपा माले, भाकपा, माकपा और विकासशील इंसान पार्टी। इन दलों के नेता लगातार साथ चले। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, दीपांकर भट्टाचार्या और मुकेश सहनी स्थायी थे। भाकपा और माकपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता बदलते रहते थे। जिलों से यात्रा निकलती थी तो उस जिले के सभी दलों के नेता-कार्यकर्ता सीमा तक यात्रा को पहुंचा कर लौटते थे।

    पटना के मार्च में भी राज्य के सभी जिलों का प्रभावशाली या सांकेतिक प्रतिनिधित्व रहा। आइएनडीआइए के गठन के समय देश के अन्य राज्यों के जिन क्षेत्रीय दलों की भागीदारी थी, उन दलों के नेता या प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हुए। यह बड़ी उपलब्धि इसलिए कही जा सकती है, क्योंकि माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव के साथ ही आइएनडीआइए का अस्तित्व समाप्त हो गया।

    यात्रा से कांग्रेस को तत्काल शुद्ध लाभ मिलता दिखाई दे रहा है। 1990 में अपनी सत्ता से विदा होने के बाद कांग्रेसी लगातारअसहाय मुद्रा में दिखते थे। हर चुनाव में अपेक्षा से कम सीट मिलने के कारण उनका आत्मविश्वास पूरी तरह डगमगा गया था। राहुल ने इन कांग्रेसियों को जीने का उत्साह दिया। उन्हें उम्मीद है कि 2025 के विधानसभा चुनाव का परिणाम 2020 से अच्छा होगा।

    यात्रा ने राजद, लालू प्रसाद और जंगलराज के उस डर को बहुत हद तक कम किया, एनडीए जिसे अपनी मूल पूंजी मानता है। राहुल ने पूरी यात्रा में कहीं यह नहीं कहा कि महागठबंधन की सरकार बनी तो तेजस्वी ही मुख्यमंत्री होंगे। यात्रा के अंतिम पड़ाव में तेजस्वी ने स्वयं इसकी घोषणा की। समग्रता में यह संदेश नहीं गया कि यात्रा का उद्देश्य तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना है। राजद के कार्यकर्ताओं ने भी कहीं उत्तेजना का प्रदर्शन नहीं किया।

    उन्हें पता है कि महागठबंधन को बहुमत मिलता है, विधायक दल के बहुमत से नेता चयन की स्थिति बनती है तो तेजस्वी ही नेता होंगे। एक और खूबी नोट करने लायक है- 16 दिनों में 13 सौ किलोमीटर से अधिक की यात्रा में भारी भीड़ जुटी। कहीं वह हुड़दंग नहीं हुआ, जिसके लिए राजद के लोग बदनाम रहे हैं। राजद के लोगों का यात्रा में सहज सहयोग भी उपलब्धि ही मानी जाएगी। बेशक, पूरी यात्रा जिस वोटर लिस्ट में फर्जीवाड़े को प्रकट करने के नाम हुई, समापन तक उसका ठाेस प्रमाण नहीं मिल पाया।

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