दशरथ मांझी से प्रेरणा ले चीर डाला पहाड़ का सीना, ऐसे निकाल दी आस्था की राह
बिहार के सासाराम में एक पहाड़ी पर मां तुतलेश्वरी भवानी स्थान तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी। ग्रामीणों ने ढाई किलोमीटर की लंबाई में पहाड़ काटकर अपने बूते सड़क बना दी।
सासाराम [ब्रजेश पाठक]। देवी मां के दरबार तक पहुंचने के लिए पहले छह किलोमीटर पहाड़ी रास्ता तय करना पड़ता था। इस क्रम में तीन नदियों को भी पार करना पड़ता था। मार्ग दुर्गम था और सफर में असह्य कष्ट। बरसात में उफनाती नदियों के कारण मां के दरबार में हाजिरी लगाने से श्रद्धालु वंचित हो रहे थे। नदी पर पुल का निर्माण ग्रामीणों के बूते से बाहर था। लेकिन ग्रामीणों ने माउंटेन मैन दशरथ मांझी से प्रेरणा लेकर पहाड़ का सीना चीरकर आस्था की राह निकाल दी। पहाड़ काटकर बनाई गई ढाई किमी लंबी इस सड़क से न केवल दूरी कम हुई है, बल्कि श्रद्धालु वाहनों से मां के दरबार तक आसानी से पहुंच रहे हैं।
पहाड़ी पर सजा तुतलेश्वरी भवानी का दरबार
सासाराम से लगभग 35 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर तुतलेश्वरी भवानी का दरबार सजा है। ग्रामीणों की बोलचाल में उसे 'तुतला भवानी' कही जाती हैं। तिलौथू प्रखंड में अवस्थित मंदिर के आसपास की प्राकृतिक छटा मनोरम है। महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा तुतराही जलप्रपात के मध्य में स्थापित है।
ग्रामीणों ने खुद श्रमदान कर बना दी सड़क
मंदिर तक सुगम मार्ग के लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसरों तक गुहार लगाकर ग्रामीण थक गए थे। अंतत: माउंटेन मैन दशरथ मांझी से प्रेरणा लेकर वे जुट गए। चार दर्जन से अधिक ग्रामीण श्रमदान करने लगे। दिन-रात के परिश्रम के बाद दो साल में ढाई किलोमीटर सड़क बनकर तैयार हो गई। अब ग्रामीणों की इस आस्था को सांसद छेदी पासवान नमनीय बता रहे हैं। वे आश्वासन दे रहे हैं कि पक्की सड़क के निर्माण में हर संभव सहायता करेंगे।
कमेटी बना कर किया कार्य
ग्रामीणों ने तुतलाधाम विकास समिति का गठन कर मंदिर के विकास की योजना बनाई। अधिक से अधिक श्रद्धालु पहुंचें, इसके लिए सुगम रास्ता बनाने पर बल दिया। कमेटी के अध्यक्ष गुरुचरण यादव, डॉ. उपेंद्र सिंह, वसंत सिंह, पिंटू सिंह, अनिल सिंह समेत अन्य ने कहा कि सड़क निर्माण में कई बाधाएं आई, लेकिन सदस्य विचलित नहीं हुए।
शाहाबाद गजेटियर में है वर्णन
शाहाबाद गजेटियर के अनुसार मां तुतला का मंदिर प्राचीन समय में भी ख्यातिप्राप्त था। खरवार राजा प्रताप धवल देव ने लगभग नौ सौ वर्ष पूर्व यहां मां की प्रतिमा का जीर्णोद्धार कराया था। उससे संबंधित दो शिलालेख यहां आज भी मौजूद हैं। पहले शिलालेख में 19 अप्रैल, 1158 (1254 संवत शनि वासरे) को महिषासुर मर्दिनी अष्टभुजाओं वाली मां दुर्गा की नई प्रतिमा स्थापित करने का वर्णन है। दूसरे शिलालेख में राजा की पत्नी सुल्ही, भाई त्रिभुवन धवल देव, पुत्र बिक्रमधवल देव, साहसधवल देव तथा पांच पुत्रियों के साथ पूजा-अर्चना करने का जिक्र है।
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