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    बेटे के ऑटिज्म का निदान सीख 40 विशेष बच्चों के लिए बनीं उम्मीद, रंग ला रही डॉ. मनीषा की मेहनत

    Updated: Mon, 18 Aug 2025 06:26 PM (IST)

    पटना की डॉ. मनीषा कृष्णा 40 विशेष बच्चों की उम्मीद हैं। अपने बेटे के ऑटिज्म से पीड़ित होने के बाद उन्होंने उत्कर्ष सेवा संस्थान की स्थापना की। यह संस्थान बौद्धिक रूप से अक्षम और ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को चिकित्सा और व्यवहारिक सहायता प्रदान करता है साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण भी देता है। संस्थान योग संगीत थेरेपी और कंप्यूटर संचालन जैसे कौशल सिखाता है।

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    बेटे के ऑटिज्म का निदान सीख 40 विशेष बच्चों के लिए बनीं उम्मीद, रंग ला रही डॉ. मनीषा की मेहनत

    नलिनी रंजन, पटना। बहुत कम लोग होते हैं, जो अपनी चुनौतियां पार कर वैसी ही स्थिति से जूझ रहे लोगों का मार्गदर्शन ही नहीं व्यावहारिक निदान भी करते हैं। पटना के बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी की डॉ. मनीषा कृष्णा ऐसी ही मां हैं। वह आज 40 विशेष बच्चों व युवाओं की उम्मीद हैं।

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    बताती हैं, जब बड़ा बेटा ऑटिज्म से पीड़ित हुआ तो उसके पुनर्वास के लिए यूके, यूएस, दिल्ली और बेंगलुरु तक जाना पड़ा। उन जगहों पर तरह-तरह के प्रशिक्षण व थेरैपी देखी, तब समझ आया कि यह केवल मेरी नहीं, पूरे राज्य के विशेष समुदाय की जरूरत है। यही सोचकर स्वयं इस क्षेत्र में प्रशिक्षण लिया और वर्ष 2014 में उत्कर्ष सेवा संस्थान स्थापित किया, ताकि बिहार के अन्य अभिभावकों को वह संघर्ष न झेलना पड़े, जो मैंने झेला।

    बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी में खुला उत्कर्ष सेवा संस्थान आज उन परिवारों के लिए आशा की किरण बन गया है, जिनके कोई सदस्य बौद्धिक रूप से असक्षम या ऑटिज्म से पीड़ित हैं। दो वर्ष से 40 वर्ष की आयु के ऐसे बच्चों और युवाओं को यहां न केवल चिकित्सा व व्यवहारिक सहयोग दिया जाता है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने की दिशा में प्रशिक्षण भी दिया जाता है। डॉ. मनीषा कहती हैं, ऐसे बच्चों को लंबे समय तक विशेष प्रशिक्षण और देखभाल की आवश्यकता होती है।

    आत्मनिर्भर व गुणी बनाना उद्देश्य:

    विशेष बच्चों को मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर मजबूत करने के लिए कई स्तरों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इनमें योग, संगीत थेरैपी, स्पीच थेरैपी और आक्यूपेशनल थेरैपी, विशेष ओलिंपिक प्रशिक्षण, कंप्यूटर संचालन, ज्वेलरी मेकिंग, आर्ट एंड क्राफ्ट के गुर सिखाने के साथ एनआईओएस (मुक्त विद्यालय) के माध्यम से शिक्षा भी दिलाई जा रही है। इसका उद्देश्य है कि मानसिक रूप से असक्षम व्यक्ति समाज में सम्मानजनक जीवन जी सकें और रोज़मर्रा के कार्यों में आत्मनिर्भर बनें।

    रंग ला रही मेहनत, सफलता की कहानियां भी जुड़ीं:

    संस्थान की मेहनत का असर अब स्पष्ट दिखने लगा है। कई विशेष बच्चों का सामान्य विद्यालयों में पुनर्वास हो चुका है। कुछ बच्चे अब अपने माता-पिता के कारोबार में सहयोग कर रहे हैं। संस्थान के हर्ष, तारा और आयुष जैसे बच्चों ने स्पेशल ओलिंपिक में पदक जीत राज्य का नाम रोशन किया है और उन्हें बिहार सरकार की ओर से खेल सम्मान भी मिल चुका है।

    अभिभावकों की भूमिका अहम

    डॉ. मनीषा कहती हैं, विशेष बच्चों के सामान्यीकरण में अभिभावकों की भूमिका भी अहम है। वे न केवल बच्चों के साथ नियमित रूप से जुड़े रहते हैं, बल्कि हर स्तर पर सहयोग करते हैं। वर्तमान में यहां बिहार के 40 विशेष बच्चों व युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है और उनके लिए एक समर्पित पुनर्वास योजना चलाई जा रही है।

    अब तक 50 बच्चे पुनर्वासित हुए:

    डॉ. मनीषा के प्रयास से अबतक 50 से ज्यादा बच्चे ऑटिज्म से काफी हद तक उबर चुके हैं। उनका नामांकन सामान्य विद्यालय में नामांकन हो चुका है।

    ये है सामान्यीकरण की प्रक्रिया:

    डॉ. मनीषा बताती हैं कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चों का दो से पांच वर्ष तक अर्ली इंटरवेंशन स्टेज होता है, फिर स्पेशल स्कूल एवं 14 वर्ष के बाद प्री वोकेशनल एवं वोकेशनल प्रशिक्षण दिया जाता है। विशेष बच्चों को आक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी, व्यवहार परिवर्तन थेरेपी एवं विशेष शिक्षा दी जाती है।

    बेंगलुरु से अमेरिका तक लिया प्रशिक्षण:

    डॉ. मनीषा ने सबसे पहले बेंगलुरु में रिहैबिलिटेशन काउंसिल आफ इंडिया की ओर से संचालित विशेष शिक्षा के लिए डीएलएड की पढ़ाई की। इसके बाद गुड़गांव के एक स्कूल में नौकरी करते हुए प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर इंग्लैंड व अमेरिका में विशेष शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इससे पहले उन्होंने 2003 में दर्शनशास्त्र में 'सत्य की अवधारणा, भारतीय एवं पश्चिमी दर्शनशास्त्र के परिपेक्ष्य में' विषय पर पीएचडी की थी। इसके बाद बेटे के ऑटिज्म का पता चला तो रिहैबिलिटेशन के क्षेत्र में डिग्री व प्रशिक्षण लिया।

    स्वेच्छा से किए गए अंशदान से चल रहा संस्थान:

    संस्थान के भवन, बिजली, मेंटनेंस व बेसिक संसाधन का खर्च स्वयं वहन करती हैं। संस्थान के शिक्षकों का वेतन भुगतान विशेष बच्चों के अभिभावकों के स्वेच्छा से किए गए अंशदान से हो जाता है। डॉ. मनीषा ने विशेष बच्चों के शिक्षण प्रशिक्षण की कोई फीस निर्धारित नहीं की है।

    पारिवारिक पृष्ठभूमि :

    डॉ. मनीषा की मां दिल्ली विश्वविद्यालय के सिद्धार्थ महिला कालेज में प्राध्यापक थीं, अभी सेवानिवृत्त होकर पटना में रही हैं। जबकि पिता पीडब्ल्यूडी के अधीक्षण अभियंता पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। भाई एम्स पटना में प्रोफेसर हैं वहीं पति मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हैं। इस सदकार्य में पति भरपूर सहयोग करते हैं।