JDU से दूर और BJP के करीब होते दिख रहे उपेंद्र कुशवाहा, दही-चूड़ा की दावत से मिल सकता है अगले कदम का संकेत
बिहार की राजनीति में नेता किस करवट पलट जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता। राजद विधायक सुधाकर सिंह की टिप्पणी के जवाब में जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की प्रतिक्रिया को सामान्य बयान की तरह नहीं लिया जा सकता। उसके गहरे अर्थ हैं।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली/पटना। बिहार में बारह मास राजनीति होती है। राजद के चर्चित विधायक सुधाकर सिंह की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अशोभनीय टिप्पणी के जवाब में जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की प्रतिक्रिया को सामान्य बयान की तरह नहीं लिया जा सकता। उसके गहरे अर्थ हैं, जो बिहार में महागठबंधन की राजनीति में बड़े उथल-पुथल के संकेत दे रहे हैं, क्योंकि इसी की ओट में उन्होंने लालू-राबड़ी राज को कठघरे में खड़ा किया है।
कुशवाहा 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा की दावत देने वाले हैं। सबको इसकी प्रतीक्षा है। जदयू के सभी सांसदों-विधायकों को आमंत्रित तो किया है, बड़े नेताओं की मौजूदगी बहुत हद तक साफ कर देगी कि कुशवाहा अपने दल में कितने सुकून से हैं। प्रतीक्षा इसलिए भी है कि वे यह दावत जदयू नहीं, बल्कि अपने संगठन महात्मा फुले समता परिषद की ओर से देने वाले हैं।
अपने राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए कुशवाहा संकेत देने में कोताही नहीं कर रहे। उन्होंने अपने पुराने दल राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के पिछले वर्ष जदयू में विलय के बाद भी अपने संगठन महात्मा फुले समता परिषद को बचाकर रखा है, ताकि विपरीत स्थिति में काम आए। पिछले एक महीने के उनके बयानों का अगर विश्लेषण किया जाए तो वह हर कदम पर जदयू को आईना दिखाते नजर आते हैं।
ताजा बयान सुधाकर सिंह पर कार्रवाई की मांग के बहाने लालू-राबड़ी राज की चर्चा से जुड़ा है। अपनी ही सरकार के विरुद्ध बयान देकर चर्चा में आए सुधाकर पर भड़के कुशवाहा ने राजद के साथ जदयू की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। सुधाकर पर कार्रवाई की मांग और लालू राज की याद दिलाते हुए कुशवाहा ने तेजस्वी यादव को भी आईना दिखाया है। उन्होंने कहा कि नीतीश ने कैसे उस खौफनाक मंजर से बिहार को बाहर निकाला है, इसपर भी विचार करना चाहिए।
इसके पहले कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव में जदयू प्रत्याशी की हार पर कुशवाहा ने अपने ही दल की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। राजद के साथ जदयू के गठबंधन के बारे में कहा था कि ऊपर से दोनों एक हो गए, लेकिन कार्यकर्ताओं की मनोदशा को नहीं समझा गया। कुशवाहा ने एक और बड़ा बयान तब दिया जब राजद-जदयू के विलय की खबरें आने लगीं। उन्होंने इसे जदयू के लिए आत्मघाती बताकर नीतीश कुमार को सचेत किया। हालांकि नीतीश ने अगले दिन साफ कर दिया कि दोनों दलों के विलय जैसी कोई बात नहीं है।
भाजपा की जरूरत बन सकते हैं कुशवाहा
कुशवाहा का अगला कदम भाजपा से भी जुड़ा हो सकता है। नीतीश कुमार की सरकार से भाजपा के बाहर होने के बाद एनडीए को बिहार में नए सहयोगियों की जरूरत है। इसी सिलसिले में चिराग पासवान को भाजपा ने एक अंतराल के बाद दोबारा अपनाया है। जदयू से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह भी भाजपा की लाइन पर ही चलते दिख रहे हैं। इसके अलावा भी भाजपा को कुछ अन्य सहयोगियों की तलाश है। ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियों पर नजर है। बिहार में कोईरी वोटरों की संख्या को देखते हुए कुशवाहा भाजपा की जरूरत बन सकते हैं।
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