Bihar Politics: तू-तड़ाक से माई-बाप तक... वीडियो और पोस्टर वॉर, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासत तेज
Bihar Politics बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सियासी बिसात अभी से बिछाई जाने लगी है। दो बड़े गठबंधन वाले दल एक-दूसरे के खिलाफ जुबानी जंग छेड़े हुए हैं। यह जंग सोशल मीडिया पर आ गई है। सभी दलों में सबसे मुखर राजद को बताया जा रहा है। सियासी जानकार भी इसे चुनाव से पहले की तैयारी की तरह देख रहे हैं।

राज्य ब्यूरो, पटना। Bihar Assembly Eelction 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे निकट आ रहा, राजनीतिक दलों की ओर से एक-दूसरे के विरुद्ध कटाक्ष व प्रहार और तीखे होते जा रहे। आमने-सामने के दोनों गठबंधनों (राजग और महागठबंधन) के बीच शब्द-प्रहार के बीच वीडियो और पोस्टर-वार की होड़-सी लगी है।
पिछले एक सप्ताह में दोनों ओर से एक्स हैंडल पर ऐसे दर्जन भर वीडियो और संदेश जारी हुए हैं, जिसमें दबे-दबाए पुराने मुद्दों को भी हवा दिए जाने की चेष्टा हुई है। कई बार तो यह आक्षेप व्यक्तिगत भी हो जा रहा, जो प्रचार की स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा तो कतई नहीं कही जा सकती।
आक्षेप की इस होड़ में महागठबंधन की ओर से सर्वाधिक मुखर राजद है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में कुछ यही भूमिका भाजपा की है।
राजद विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर आक्रामक है। उसके वीडियो व संदेश में विरोधी पक्ष की नकारात्मक बातों को विशेष प्राथमिकता दी गई है।
वीडियो बनाने में एआइ का भरपूर सहयोग लिया गया है, लेकिन कई बार पैरोडी बिखर जा रही है। हास्य-रस में डूबी लालू प्रसाद की राजनीतिक व्यंग्योक्तियों का वीडियो भी राजद एक्स पर पोस्ट किए हुए है। उसमें आक्षेप नीतीश कुमार पर है।
महंगाई और बेरोजगारी के उल्लेख के साथ प्रधानमंत्री को जुमलेबाज बताया गया है। दावा यह कि नरेन्द्र-नीतीश को बिहार बर्दाश्त नहीं करेगा। एक पोस्ट में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय की खिंचाई की जा रही। उसका आधार दुष्कर्म पीड़िता किशोरी की पीएमसीएच में मृत्यु है।
प्रश्न की शैली में राजद का पोस्ट है
और कितनी बलि लोगे अमंगल पांडे? आत्मा धिक्कारती नहीं है? राजद की तुलना में भाजपा के पोस्ट अपेक्षाकृत संयमित और कुछ कम नकारात्मक हैं।
उसका जोर विकास कार्यों को गिनाने-भुनाने पर अधिक है। हालांकि, राहुल गांधी पर प्रहार करते समय राजनीतिक मर्यादा का वह भी उल्लंघन कर जाती है।
उदाहरण शनिवार का एक पोस्ट है। उसमें लिखा है कि शहजादे न भरोसे के काबिल हैं, न इज्जत के हकदार। फिर भी विरोधियों पर आक्षेप करते समय उसका फोकस व्यक्तित्व के बजाय कृतित्व पर अधिक है।
लालू के शासन-काल और राजग के शासन-काल की तुलनात्मक अध्ययन के लिए उसने पटना से गयाजी तक के राष्ट्रीय राजमार्ग को आधार बनाया है।
सड़क के स्केच के साथ पोस्ट में लिखा है कि मजबूत नेतृत्व का फर्क साफ है। दूरी 102 किलोमीटर है, जिसे तय करने में लालू शासन-काल में 6:43 घंटे लगते थे, जो घटकर अब 1:50 घंटे हो गए हैं। नकारात्मक प्रचार दोधारी तलवार की तरह होता है।
संभवत: भाजपा इस तथ्य को राजद की अपेक्षा कुछ अधिक समझ रही। फालोअर्स व व्यूअर्स की प्रतिक्रियाओं में इसका उसे लाभ भी मिल रहा।
राजद के वीडियो-पोस्ट पर वाहवाही करने वाले समाज विशेष के लोग हैं और खिंचाई करने वाले तो तू-तड़ाक और माई-बाप तक उतर जा रहे।
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