आंख ठीक रखने के लिए स्क्रीन की दूरी के साथ लंबाई भी रखती है मायने, यहां जानें क्या कहते हैं डॉक्टर
राजधानी के आइजीआइएमएस में पटना आप्थलमोलाजी सोसायटी के 10वें वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान आंख के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि आखों के सूखेपन से केवल नेत्र संबंधी समस्याएं ही नहीं नींद पर भी प्रभाव पड़ने की बात कही। इसके साथ ही जागरूकता पर जोर दिया।

जागरण संवाददाता, पटना। आइजीआइएमएस स्थित क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के सभागार में आयोजित पटना आप्थलमोलाजी सोसायटी के 10वें वार्षिक सम्मेलन पासकान-2025 का रविवार को समापन हुआ। इसमें नेत्र विशेषज्ञों ने प्रदूषण, लैपटाप, मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी के अधिक प्रयोग से आंखों में जलन, दर्द, पानी आना, लालिमा व सूखेपन की बढ़ती समस्या पर चिंता जताई।
इलाज तक नहीं रहना है सीमित
आंखों में सूखेपन से सिर्फ नेत्र संबंधी समस्याएं ही नहीं होती है, बल्कि नींद पर भी असर होता है। ऐसे में डाक्टरों को सिर्फ इलाज तक नहीं सीमित रहना है बल्कि आमजन को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत है। प्रख्यात नेत्र विशेषज्ञों ने दो दिनी कार्यक्रम में युवा डाक्टरों की शंकाओं का समाधान करने के साथ जटिल सर्जरी की बारीकियां भी साझा कीं।
नए रोगों और निदान पर की गई चर्चा
डा. सुनील कुमार सिंह व आइजीआइएमएस में नेत्र रोग के विभागाध्क्ष डा. विभूति पी सिंह ने कहा कि सम्मेलन में शोध व आंखों के नए रोगों के निदान का चर्चा की गई। वहीं, मुख्य वक्ता डा. पार्थ बिश्वास ने युवाओं में बढ़ रहे सफेद मोतिया पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आंखें शरीर की सबसे अनमोल रत्न हैं। ये अंधेरा दूर कर रोशनी का अनुभव कराती हैं। युवाओं में सफेद मोतिया तो मधुमेह रोगी विभिन्न प्रकार के नेत्र रोगों की चपेट में आ रहे हैं।
काला मोतिया खतरनाक
डा. विजय शर्मा ने बताया कि ग्लूकोमा को आमभाषा में काला मोतिया कहते हैं। यह आप्टिक तंत्रिका को निरंतर क्षतिग्रस्त करते हुए दृष्टि को समाप्त कर देता है। यदि इसका उपचार नहीं किया जाए तो व्यक्ति अंधा हो सकता है। मौके पर आई बैंक प्रभारी प्रोफेसर डा. नीलेश मोहन, डा. सत्यजीत सिन्हा, डा. ज्ञान भास्कर, डा. सुधीर कुमार, डा. नागेन्द्र प्रसाद, डा. सुभाष प्रसाद, डा. अजय सिन्हा, डा. जेजी अग्रवाल,डा. सुजीत मिश्रा, डा. अभिषेक आनंद, राजेंद्र नगर अतिविशिष्ट अस्पताल के निदेशक डा. अजीत कुमार द्विवेदी, डा. एसके रूंगटा, डा. प्रणव रंजन , डा. विजय शर्मा, डा. अंशुमन सिंह समेत 200 से अधिक नेत्र रोग विशेषज्ञ उपस्थित थे।
आंखों से स्क्रीन की दूरी
50 से 70 सेंटीमीटर (लगभग 20 से 28 इंच)
यानी आपकी एक बांह की लंबाई के बराबर।
यह दूरी आंखों पर कम तनाव डालती है और पढ़ने या देखने में सहूलियत होती है।
स्क्रीन की ऊंचाई
स्क्रीन का ऊपरी किनारा आपकी आंखों के बराबर या थोड़ा नीचे होना चाहिए।
(लगभग 10 से 15 डिग्री नीचे)
इससे गर्दन को झुकाने की जरूरत नहीं पड़ती और रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है।
अन्य सुझाव
- स्क्रीन का झुकाव हल्का पीछे की ओर (10-20 डिग्री) होना चाहिए।
- हर 20 मिनट पर 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें (20-20-20 नियम)।
- रोशनी का प्रतिबिंब कम करने के लिए स्क्रीन पर एंटी-ग्लेयर फिल्टर का प्रयोग करें।
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