बिहार के योजना एवं विकास विभाग का हाल- दो साल में सात-सात रिमाइंडर, फिर भी नहीं आ रहा है जवाब
बिहार सरकार के योजना एवं विकास विभाग की लापरवाही देखिए कि इसने महालेखाकार की ऑडिट टीम की आपत्तियों पर लंबे समय से अपना पक्ष नहीं रखा है। हालांकि इसके लिए सात-सात रिमाइंडर भेजे जा चुके हैं। आपत्तियों का जवाब नहीं देने के कारण सरकार की फजीहत हो सकती है।

पटना, राज्य ब्यूरो। यह राज्य सरकार का योजना एवं विकास विभाग है। विधायकों-सांसदों की सिफारिश की योजनाएं इसी विभाग से संचालित होती हैं। इस महत्वपूर्ण विभाग का हाल यह है कि एक अदद जानकारी के लिए क्षेत्रीय अधिकारियों और इंजीनियरों को को सात-सात बार रिमाइंडर भेजा जाता है। फिर भी जवाब देने की कोशिश नहीं होती है। सिलसिला 18 जनवरी 2019 से शुरू है। इस साल जनवरी के तीसरे सप्ताह में सातवां रिमाइंडर भेजा गया। संभव है कि जवाब न मिलने पर फिर रिमाइंडर भेजा जाए।
महालेखाकार की ऑडिट टीम खर्च की करती है जांच
महालेखाकार की ऑडिट टीम हरेक वित्तीय वर्ष में खर्च की जांच करती है। देखती है कि जिस मद में आवंटन किया गया है, उसमें ठीक ढंग से खर्च हुआ है या नहीं। इस दौरान वित्तीय एवं अन्य तरह की गड़बड़ी पकड़ में आती है तो उसे संबंधित विभाग को भेज दिया जाता है। इरादा यह है कि विभाग को अगर ऑडिट टीम की आपत्तियों पर अपना पक्ष रखना है तो समय सीमा के भीतर रखे। यही मामला है।
आडिट टीम की आपत्तियों पर जवाब के लिए रिमाइंडर
आडिट टीम की आपत्तियों पर जवाब देने के लिए योजना एवं विकास विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों को रिमाइंडर पर रिमाइंडर दिए जा रहे हैं। क्षेत्रीय योजना अधिकारी के अधीन एक प्रमंडल के सभी जिला योजना पदाधिकारी आते हैं। रिमाइंडर के ये पत्र आठ क्षेत्रीय योजना पदाधिकारियोंको भेजे गए हैं।
अभी तक भेजे सात रिमाइंडर, नहीं मिला जवाब
ऐसे ही रिमाइंडर स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन प्रमंडलीय अधीक्षण अभियंताओं को भी भेजे गए हैं। 18 जनवरी 2019 से जनवरी 2021 के बीच भेजे गए रिमाइंडर की संख्या सात है। हरेक पत्र में अधीक्षण अभियंताओं को जवाब देने के लिए सप्ताह भर का समय दिया जाता है। लगे हाथ यह फरियाद भी की जाती है कि कृपया इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
समय पर जवाब नहीं दिए गए तो होगी सरकार की फजीहत
अगर समय पर महालेखाकार को आपित्तयों के बारे में तर्कपूर्ण जवाब नहीं दिए गए तो सरकार की फजीहत होगी। महालेखाकार की रिपोर्ट विधान मंडल के दोनों सदनों में रखी जाती है। आपत्तियों को सही मानकर विपक्ष की ओर से सत्तारूढ़ दल पर घोटाले का आरोप लगाया जाता है।
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