‘मिज़ाज लहरा दिया’ से ‘ए मरदे’ तक, जानिए बिहारियों की ये मस्त भदेस भाषा
बिहारियों की ठेठ बोलचाल हमेशा चर्चा में रही है। देश के अन्य भागों में इसकी कॉपी कर मनोरंजन भी खूब किया जाता है, लेकिन बिहार वासी इसका बुरा नहीं मानते। आप भी जानिए।
पटना [अमित आलोक]। बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन में मची खींचतान के बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इन दिनों सुर्खियों में हैं। उनकी चर्चा के साथ ही जेहन में आ जाता है उनका अंदाज-ए-बयां। दरअसल, सीधे दिल तक पहुंचती भाषा का ठेठ अंदाज बिहार की बोलचाल में है।
फेसबुक व व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बिहारियों की बोलचाल के अंदाज पर कमेंट्स भरे पड़े हैं। उनका यह ठेठ अंदाज भोजपुरी फिल्मों के नाम में भी दिखता है। आइए नजर डालते हैं बिहारियों के ऐसे ही कुछ मनोरंजक अंदाज-ए-बयां पर...
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- गइल भंइसिया पानी में।
- बलवा काहे नहीं कटवाते हो बे।
- मिज़ाज लहरा दिया।
- तनी-मनी तरकारी दे दो।
- बड़ी भारी है- दिमाग में कुछो नहीं ढ़ूंक रहा है।
- बदमाशी करबे त नाली में गोत देबौ।
- सत्तू घोर के पी लो।
- तखनिए से ई माथा खराब कैले है।
- अभरी गेंद ऐने आया तो ओने बीग देंगे।
- बिस्कुटिया चाय में बोर-बोर के खाओ जी।
- छुच्छे काहे खाना खा रहे हो।
- काम लटपटा गया है।
- अऊर सुनिये...
- बरसतवा में छतवा चुवे लगता है मरदे!
- नरभसाइये मत।
- मार मार के भुरकुस छोड़ा देंगें।
- कपड़वा पसार दो।
- ए मरदे, ई का कह रहे है?
- जादे बोलियेगा तो मुंहवे नोच लेंगें।
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सोशल मीडिया पर ऐसी और भी कई भावाभियक्तियां हैं, जिनके लिए बिहार में 'खास' शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं। बिहार के लोगों की भाषा में कहें तो...
- हमलोग के यहां idiot नहीं, "बकलोल"होता है।
- यहां पत्नी नहीं ''मेहरारू'' होती है।
- हमलोग कटने पे बोरोलीन लगाते हैं, क्यूंकि dettol से "परपराने" लगता है।
- हमलोग जान से नहीं ना मारते हैं, "मार के मुआ'' देते हैं।
- हमलोग गला दबाते नहीं "नट्टी टीप'' देते हैं।
- हमलोग awsome काम नहीं करते, "गर्दा उड़ा'' देते हैं।
- हमलोग tension में नहीं आते, बस "हदस" जाते हैं।
- हमलोग का bad day नहीं होता, बस "जत्रा खराब'' होता है।
- हमलोग का कपड़ा धोया नही, "फिंचा" जाता है।
- हमलोग ताकत नहीं, "बरियारी" दिखाते हैं।
- हमारे लिए train चलती नहीं, "खुल" जाती है।
- हमारे यहां बच्चा नहीं, "बुतरू" होता है।
- हमलोग show off नहीं, "सुखल फुटानी" करते हैं।
- हमारे यहां कोई uncivilized नहीं होता, बस "चुहाड़" कहलाता है।
- बिहार का कुतवा काटता नहीं, ''हबक'' लेता है।
- बिहार का मच्छर काटता नहीं, ''भम्होर'' लेता है।
...और अंत में बिहारवासियों का आत्मविश्वास देखिए। बिहार व यहां के लोगों का कोई कितना भी मजाक उड़ा ले, वे आत्मविश्वास नहीं खोते। कहते हैं कि वे प्रतियोगिता में विश्वास नहीं रखते, ''काहे कि कोई सकेगा नहीं।''
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