सोनपुर मेला: कभी क्लाइव ने बनवाया था अस्तबल, रेसकोर्स में दौड़ते थे अंग्रेजों के घोड़े
बिहार के सोनपुर मेला की अपनी अलग पहचान है। यहां दो साल पहले तक घुड़दौड़ की परंपरा चली आ रही थी। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यहां लार्ड क्लाइव ने अस्तबल भी बनवाया था।
वैशाली [शैलेश कुमार]। हरिहर क्षेत्र मेले में घुड़दौड़ की परंपरा काफी पुरानी है। यहां सन् 1803 में लॉर्ड क्लाइव ने बड़ा अस्तबल भी बनवाया था। हाल-फिलहाल के वर्षों तक सोनपुर के डाकबंगला मैदान में इस परंपरा का निर्वहन हो रहा था। कई वर्ष पहले हाथियों की दौड़ बंद हो गई। दो वर्ष से घोड़ों की रेस भी ठप है।
1958 में प्रकाशित मुजफ्फरपुर गजेटियर में उल्लेख है कि सोनपुर मेले में 19वीं शताब्दी शुरू होने के बहुत पहले से घोड़ों की रेस होती थी। मेला अवधि में अंग्रेज यहां पोलो भी खेलते थे। तब मेला क्षेत्र का विस्तार हाजीपुर तक था।
अंग्रेज अफसर और निलहे घुड़दौड़ में होते थे शामिल
सन् 1803 में लॉर्ड क्लाइव ने हाजीपुर में बड़ा अस्तबल बनवाया था। उस समय नेपाल रेजिडेंट के रूप में तैनात नाक्स नामक अंग्रेज को उसका कैप्टन बनाया गया था। हाजीपुर में आज जहां किला मोहल्ला है, वहां उसने किले परिसर में एक रेसकोर्स का निर्माण करवाया था। सोनपुर मेले के दौरान जिन अंग्रेज अफसरों को यहां प्रतिनियुक्त किया जाता था या इस इलाके में जो निलहे होते थे, वे घुड़दौड़ में भाग लेते थे और पोलो खेलते थे।
बाढ़ में बह गया रेसकोर्स
गजेटियर कहता है कि अस्तबल के मैनेजर ने गंडक नदी के किनारे एक दूसरे रेसकोर्स का निर्माण कराया था। 1800 में लार्ड वेलेजली के शासन काल में पूसा में एक दूसरा रेसकोर्स शुरू किया गया, लेकिन हाजीपुर में गंडक के किनारे शुरू रेसकोर्स बंद नहीं हुआ। सन 1837 में गंडक में आई बाढ़ से हाजीपुर का रेसकोर्स नदी में विलीन हो गया। इसके बाद रेसकोर्स को सोनपुर में शिफ्ट कर दिया गया। धीरे-धीरे हाजीपुर में लगने वाला मेला भी सोनपुर में शिफ्ट होता गया।
किले के अंदर लगता था मीना बाजार
सोनपुर मेले के दौरान लगने वाला मीना बाजार 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध में हाजीपुर के किले के अंदर और रामभद्र मोहल्ले में लगा करता था। उस बाजार में सुरक्षा की जिम्मेदारी भी अंग्रेजों के जिम्मे थी। मीना बाजार में घरेलू उपयोग का हर सामान उपलब्ध रहता था। खरीद-बिक्री ज्यादातर वस्तु विनिमय प्रणाली से होती थी।
व्यापार के लिए बना बंगला बन गया था डांस क्लब
19वीं सदी में पटना काउंसिल के मेंबर वारवेल और नारटन के द्वारा व्यापार के लिए बनाए गए एक बंगले को बाद में डांस क्लब बन गया था। मेले में इस डांस क्लब के विशेष मायने होते थे। मेला अवधि में डांस क्लब यूरोपीय निलहों से पटा रहता था।