बिहार में गजब है गाड़ियों का फिटनेस टेस्ट करने की व्यवस्था, यहां फेल होने की गुंजाइश नहीं के बराबर
Bihar Vehicle Testing Process बिहार में इस साल महज 43 तीनपहिया गाड़ियों व 35 बसों को फिटनेस में फेल किया गया है। इसी तरह ट्रैक्टर का व्यावसायिक उपयोग करने वाले 49 व ट्रेलर का व्यावसायिक उपयोग करने वाले 25 को फिटनेस में फेल किया गया है।

पटना, राज्य ब्यूरो। बिहार में गाड़ियों की फिटनेस जांच की व्यवस्था सवालों के घेरे में है। राज्य में फिटनेस जांच के लिए उपकरणों की व्यवस्था नहीं है, बावजूद 97 प्रतिशत व्यावसायिक गाड़ियां फिट बताकर चलाई जा रही हैं। एक प्रतिशत से भी कम गाड़ियों को ही फिटनेस में फेल किया जा रहा है, जबकि दो फीसदी गाड़ियों को फिटनेस देने का मामला लंबित है। फिटनेस जांच के लिए सरकार की ओर से कई मानक तय किए गए हैं। परिवहन विभाग के अधिकारियों को फिटनेस प्रमाण पत्र देने के लिए पहले उन मानकों की जांच करना है, लेकिन अधिकारियों के पास जांच के लिए एक भी मशीन नहीं है। बिना गाड़ी की जांच किए सिर्फ कागजात देखकर फिटनेस प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है।
इस साल महज 43 तीनपहिया गाड़ियों व 35 बसों को फिटनेस में फेल किया गया है। इसी तरह ट्रैक्टर का व्यावसायिक उपयोग करने वाले 49 व ट्रेलर का व्यावसायिक उपयोग करने वाले 25 को फिटनेस में फेल किया गया है। सामान ढोने वाले 64 तो कैब में लगी 12 गाड़ियों को ही फिटनेस में फेल बताया गया है।
नियमानुसार नई कामर्शियल गाड़ियां को आठ सालों तक हर दो साल साल पर फिटनेस प्रमाण पत्र लेना होता है। आठ साल से पुरानी गाड़ी होने पर प्रत्येक साल फिटनेस जांच की जरूरत होती है। वहीं,निजी गाडिय़ों को 15 वर्षों के बाद फिटनेस प्रमाण पत्र की जरूरत होती है। नई पालिसी के तहत इसमें भी बदलाव की तैयारी है।
फिटनेस टेस्ट में इनकी होती है जांच
प्रमाण पत्र जारी करने के पहले गाड़ी का इंजन, उसकी फ्रंट और बैक लाइट की जांच की जाती है। साथ ही, इंडिकेटर, हार्न, फाग लाइट, फस्र्ट एड बॉक्स, रिफ्लेक्टर, डेंट-पेंट और नंबर प्लेट आदि की जांच भी करनी है। सब कुछ सही होने के बाद ही गाडिय़ों को फिटनेस प्रमाण पत्र दिए जाने का प्रविधान है।

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