पटना हाईकोर्ट में जजों की कमी और मुकदमों का अंबार, न्याय की राह होती जा रही है लंबी
पटना उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की कमी और लंबित मामलों के भारी बोझ से जूझ रहा है। 2.15 लाख से अधिक मामले लंबित हैं जिनमें से कई एक साल से भी पुराने हैं। न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों में से 18 खाली हैं और सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशें केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना अटकी हुई हैं।

प्रत्युष प्रताप सिंह, पटना। बिहार की न्यायपालिका इन दिनों दोहरी चुनौती से जूझ रही है, एक ओर न्यायाधीशों की भारी कमी, दूसरी ओर मुकदमों का बेतहाशा बोझ। पटना हाईकोर्ट की स्थिति इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। नेशनल जुडिशियल डेटा ग्रिड के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि पटना हाईकोर्ट में फिलहाल करीब 2.15 लाख मामले लंबित हैं। इनमें से दीवानी मामले लगभग 1.10 लाख हैं, जबकि फौजदारी मामले करीब 1.04 लाख। और चिंताजनक तथ्य यह है कि दीवानी मामलों में लगभग 68 प्रतिशत तथा फौजदारी मामलों में 60 प्रतिशत से अधिक एक साल से पुराने हैं। यानी न्याय का इंतजार महीनों नहीं, बल्कि वर्षों तक खिंचता चला जा रहा है।
न्यायधीशों की रिक्तियां
पटना हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के कुल 53 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में सिर्फ 35 जज कार्यरत हैं। यानी 18 कुर्सियां खाली हैं। हाल ही में सरकारी अधिवक्ता अजीत कुमार को न्यायाधीश नियुक्त किया गया है, पर यह नियुक्तियां समुद्र में बूंद के समान ही हैं।
सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम की सिफारिशें अटकी
सबसे हैरानी की बात यह है कि इस गंभीर स्थिति के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट कोलिजियम ने वरीय अधिवक्ता अंशुल, अधिवक्ता प्रवीण कुमार और अधिवक्ता रितेश कुमार के नामों की सिफारिश पहले ही कर दी थी। लेकिन केंद्र सरकार की मंजूरी न मिलने के कारण ये नियुक्तियां अब तक अधर में लटकी हुई हैं। यदि इन नामों पर शीघ्र निर्णय लिया जाता, तो हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली को निश्चित ही गति मिलती और लंबित मामलों के निस्तारण में कुछ तेजी आती।
न्याय की देरी और जनता का भरोसा
जजों की कमी के कारण हर न्यायाधीश पर मामलों का औसत बोझ कई गुना बढ़ गया है। नतीजतन, मुकदमों की सुनवाई अक्सर टलती है और फैसला आने में वर्षों लग जाते हैं। न्याय में यह देरी आम जनता के विश्वास को कमजोर कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल एक-दो नियुक्तियों से समस्या का हल नहीं निकलेगा।
जरूरत निर्णायक कदमों की
वरीय अधिवक्ता चितरंजन सिन्हा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार इस मसले पर संवेदनशीलता दिखाते हुए शीघ्र निर्णय लें। न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया तेज हो, और तकनीकी सुधार जैसे ई-कोर्ट्स और केस मैनेजमेंट को भी मजबूती दी जाए। वरीय अधिवक्ता जितेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया जब तक रिक्त पदों को भरा नहीं जाता और संस्थागत सुधार लागू नहीं होते, तब तक न्याय की गाड़ी भारी बोझ तले धीमी ही चलती रहेगी।
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