'क्राइम कैपिटल' के चुनावी मुद्दे पर फिर छिड़ेगा सियासी संग्राम? नीतीश सरकार आंकड़ों से दे रही माकूल जवाब
बिहार में अपराध और कानून-व्यवस्था हमेशा से एक अहम मुद्दा रहा है। नीतीश सरकार के शासन में सुधार हुआ है लेकिन जमीन शराब और बालू माफिया चुनौती देते रहे हैं। हत्या के मामलों में कमी आई है पर आपराधिक कांडों की संख्या बढ़ी है। पुलिस अपराधियों को गिरफ्तार कर रही है लेकिन लंबित मामलों की संख्या अभी भी एक चुनौती है।

राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार में अपराध और कानून-व्यवस्था का मुद्दा दशकों से राजनीति की धुरी रहा है। कानून-व्यवस्था में सुधार के नाम पर ही करीब बीस वर्ष पहले नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए को सत्ता मिली। एनडीए सरकार ने कानून-व्यवस्था में सुधार को ही अपना सबसे प्रमुख चेहरा बनाया।
अब यह सरकार का आईना बन चुका है, जिसपर थोड़ी सी भी धूल किसी को बर्दाश्त नहीं। विपक्ष हो या जनता, सरकार का रिपोर्ट कार्ड देखते समय सबसे बारीक नजर कानून-व्यवस्था पर ही जाती है।
पिछले पांच सालों में विपक्ष में राजद रहा हो या कुछ समय के लिए भाजपा, जब भी सरकार को घेरना होता है तो अपराध के मुद्दे को ही उछाला जाता है।
चूंकि अब मौका चुनावी महासमर का है, तो इसपर बात होगी ही। ऐसे में प्रदेश में अपराध और कानून-व्यवस्था की पड़ताल करती कुमार रजत की रिपोर्ट।
अपराध और कानून-व्यवस्था आंकड़ों से ज्यादा महसूस करने का विषय है। नीतीश सरकार के शासन में कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ है, यह सर्वविदित है मगर जमीन, शराब और बालू माफिया इसे समय-समय पर चुनौती देते रहे हैं।
आंकड़ों की बात करें तो पिछले पांच सालों में वर्ष 2024 को छोड़कर हर साल आपराधिक कांडों की संख्या में वृद्धि हुई है, मगर हत्या के मामलों में कमी आई है।
पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में 3149 हत्याकांड दर्ज किए गए जबकि 2024 में इनकी संख्या घटकर 2789 हो गई।
इस साल 2025 की पहली छमाही तक एक लाख 90 हजार आपराधिक कांड दर्ज किए गए हैं, जिनमें 1379 हत्या के मामले हैं।
इस साल जुलाई में महज एक पखवारे के दौरान 51 हत्याओं का हवाला देते हुए विपक्ष ने विधि-व्यवस्था को कठघरे में खड़ा किया था।
खासकर गांधी मैदान के पास उद्योगपति गोपाल खेमका और पारस अस्पताल में घुसकर दिनदहाड़े कुख्यात चंदन मिश्रा की हत्या ने पुलिस-प्रशासन पर सवाल उठाए। इसपर पुलिस मुख्यालय ने आंकड़ों के हवाले से तर्क दिया कि हत्या या अन्य अपराध में वृद्धि नहीं हुई है।
जो घटनाएं हो भी रहीं हैं, उनमें पुलिस की तत्परता से अपराधियों को गिरफ्तार किया जा रहा है। गोपाल खेमका व चंदन मिश्रा हत्याकांड में पुलिस ने एक सप्ताह के अंदर अपराधियों की पहचान कर गिरफ्तारी भी की।
आंकड़ों के साथ एक तर्क यह भी दिया गया कि मानसून से पहले हर साल अप्रैल से जून-जुलाई तक आपराधिक घटनाओं में वृद्धि होती है।
जमीन और पारिवारिक विवाद में सबसे अधिक हत्याएं
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में जमीन और पारिवारिक विवाद में सबसे अधिक हत्याएं बिहार में होती हैं।
वर्ष 2021 में देशभर में जमीन विवाद के कारण झगड़े-फसाद के कुल 8848 मामले दर्ज किए गए, जिनमें सबसे अधिक 3336 मामले बिहार में दर्ज हुए। महाराष्ट्र 1259 मामलों के साथ दूसरे तो 1227 मामलों के साथ कनार्टक तीसरे स्थान पर रहा।
भूमि विवाद को रोकने के लिए सरकार की ओर से कई पहल भी की गई। भूमि विवाद से जुड़े मामलों के लिए अलग पोर्टल बनाया गया है। इसके अलावा लैंड रिकार्ड अपडेट करने के लिए जमीन सर्वेक्षण का काम भी किया जा रहा।
जुलाई तक 54 हजार गिरफ्तारी, 3905 हत्याकांड में पकड़े गए
पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जुलाई तक आपराधिक घटनाओं में कार्रवाई करते हुए 54 हजार से अधिक गिरफ्तारी की गई है। इनमें हत्या के मामलों में जुलाई तक 3905 आरोपितों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, वहीं पुलिस पर हमला करने वाले 4031 लोगों को पुलिस ने पकड़ा है।
सभी जिलों में थानास्तर पर जनवरी से जुलाई के बीच छह लाख 85 हजार से अधिक लोगों के विरुद्ध निरोधात्मक कार्रवाई की गई है। इनमें एक लाख 46 हजार 898 के विरुद्ध बांड पत्र की कार्रवाई की गई है।
जुलाई तक 1662 व्यक्तियों के विरुद्ध सीसीए (क्राइम कंट्रोल एक्ट) के तहत कार्रवाई का प्रस्ताव डीएम को भेजा गया है, जिसमें 339 के विरुद्ध आदेश पारित हुआ है।
लंबित कांड चुनौती, जून तक 64 हजार को मिली सजा
बिहार पुलिस के लिए लंबित कांड भी बड़ी चुनौती हैं। इसके लिए अपराधियों को गिरफ्तार कर जल्द सजा दिलाने का अभियान शुरू किया गया है। इस साल जून 2025 तक 46 हजार कांडों का निष्पादन कराया है, इनमें 64 हजार से अधिक अभियुक्तों को सजा सुनाई गई है।
इनमें तीन को फांसी जबकि 601 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। लंबित कांडों के निष्पादन और सजा दर बढ़ाने के लिए पुलिस पदाधिकारी से लेकर डाक्टरों तक की गवाही दिलाने पर फोकस किया जा रहा है। इसके लिए आनलाइन माध्यम भी अपनाए जा रहे हैं।
बिहार में अपराध और कानून-व्यवस्था का मुद्दा दशकों से राजनीति की धुरी रहा है। कानून-व्यवस्था में सुधार के नाम पर ही करीब बीस वर्ष पहले नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए को सत्ता मिली।
एनडीए सरकार ने कानून-व्यवस्था में सुधार को ही अपना सबसे प्रमुख चेहरा बनाया। अब यह सरकार का आईना बन चुका है, जिसपर थोड़ी सी भी धूल किसी को बर्दाश्त नहीं। विपक्ष हो या जनता, सरकार का रिपोर्ट कार्ड देखते समय सबसे बारीक नजर कानून-व्यवस्था पर ही जाती है।
पिछले पांच सालों में विपक्ष में राजद रहा हो या कुछ समय के लिए भाजपा, जब भी सरकार को घेरना होता है तो अपराध के मुद्दे को ही उछाला जाता है। चूंकि अब मौका चुनावी महासमर का है, तो इसपर बात होगी ही।
प्रदेश में अपराध रोकने को हाल के दिनों में हुई पहल
- अपराध पर नियंत्रण के लिए पूरे राज्य में 100 फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का प्रस्ताव तैयार।
- शूटरों की गिरफ्तारी और नजर रखने के लिए एसटीएफ के अंतर्गत बनाया गया शूटर सेल।
- हथियार तस्करी के विरुद्ध अभियान। आर्म्स एक्ट में त्वरित सजा के लिए विशेष कोर्ट की पहल।
- सभी अनुसंधान पदाधिकारियों को दिए गए मोबाइल और लैपटाप। जांच के लिए समय सीमा तय।
- पुलिसकर्मियों की हो रही बंपर बहाली। पिछले 20 सालों में तिगुनी हुई पुलिसकर्मियों की संख्या।
- 300 से अधिक नए थाने बनाए गए। ओपी को किया गया अपग्रेड। महिलाओं के लिए अलग हेल्प डेस्क।
डायल-112 से 15 मिनट के अंदर पहुंच रही पुलिस
राज्य में विधि-व्यवस्था की बड़ी जिम्मेदारी अब डायल-112 की टीम ने संभाल ली है। डायल-112 हर दिन 6500 लोगों तक मदद पहुंचा रहा है। पिछले तीन सालों में 43 लाख से अधिक जबकि इस साल अब तक आठ लाख नागरिकों को सेवा पहुंचाई गई है। पुलिस मुख्यालय का दावा है कि किसी भी आपात सूचना पर डायल-112 की टीम 15 मिनट के अंदर घटनास्थल पर मदद के लिए पहुंच जा रही।
डायल-112 की सुविधा शुरू होने के बाद तीन साल में राज्य में दंगा-फसाद के मामले 14 हजार से घटकर तीन हजार रह गए हैं। डायल-112 पर सर्वाधिक मामले मारपीट, भूमि विवाद और झड़प के आ रहे हैं। इसके बाद घरेलू हिंसा, महिला अपराध और बच्चों से जुड़ी शिकायतें आ रहीं।
1300 अपराधियों की संपत्ति जब्ती का प्रस्ताव राज्य में अपराधियों की अवैध संपत्ति जब्ती की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। बिहार पुलिस ने सभी जिलों से ऐसे 1300 अपराधियों को चिह्नित कर सूची तैयार की है, जिनमें सर्वाधिक 82 प्रस्ताव पटना पुलिस ने भेजे हैं। इनमें से 279 का प्रस्ताव कोर्ट को भेजा गया है। पुलिस मुख्यालय को विश्वास है कि इससे संगठित अपराध में कमी दर्ज की जाएगी।
पिछले पांच सालों में अपराध का ग्राफ
वर्ष | आपराधिक कांड | हत्याकांड |
2020 | 2.57 लाख | 3149 |
2021 | 2.82 लाख | 2799 |
2022 | 3.47 लाख | 2929 |
2023 | 3.53 लाख | 2863 |
2024 | 3.52 लाख | 2786 |
2025 (जून) | 1.90 लाख | 1379 |
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