इस गुमनाम संग्रहालय में संरक्षित है मुगलों का इतिहास, तालपत्र पर लिखा महाभारत
बिहार के इस गुमनाम संग्रहालय में मुगलकालीन पेंटिंग, फिरदौसी कृत शाहनामा, निजामी गाजा लिखित सिकंदरनामा, सलामत अली अकबर कृत मुता-उल-हिंद तथा वैसलिस की पांडुलिपियां मौजूद हैं।
पटना [अमित कुमार]। ताल पत्र (ताड़ के पत्ते) पर ईसा से 780 वर्ष पूर्व लिखे महाभारत का भला कौन दीदार करना नहीं चाहेगा। भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर वेद, पुराण, मुगलकालीन सिक्के और 5,000 से अधिक पांडुलिपियों का विशाल संग्रह आपके इंतजार कर रहा है। हम बात कर रहे हैं, दुल्हिन बाजार प्रखंड मुख्यालय से
छह किलोमीटर दूर स्थित भरतपुरा के गोपाल नारायण पब्लिक लाइब्रेरी सह संग्रहालय की।
यहां करीब एक हजार मुगलकालीन पेंटिंग, फिरदौसी कृत शाहनामा, निजामी गाजा लिखित सिकंदरनामा, सलामत अली अकबर कृत मुता-उल-हिंद तथा वैसलिस की पांडुलिपियां मौजूद हैं। इस पुस्तकालय की स्थापना सम्राट गोपाल नारायण सिंह के सिंघासन पर बैठने के उपलक्ष्य में 12 दिसंबर 1912 में भरतपुरा गांव के लाल वाटिका में तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर सी. ओल्डहम ने की थी।
गोपाल नारायण सिंह को पुरातत्व सामग्रियों एवं पुस्तकों का संकलन का शौक था। बाद में इसके संचालन के लिए 1956 में एक ट्रस्ट बनाया गया। ट्रस्ट के विधान में 15 सदस्यीय कार्यकारिणी सदस्य और संरक्षक के रूप में परिवार के एक सदस्य का शामिल होना तय हुआ। तत्कालीन दानापुर के अनुमंडल पदाधिकारी को पदेन सभापति की जिम्मेदारी दी गई। विशेष परिषद की अध्यक्षता प्रमंडलीय आयुक्त अथवा जिलाधिकारी द्वारा किए जाने का प्रावधान किया गया।
विशिष्ट पुस्तकालय घोषित
शिक्षा विभाग ने 15 नवंबर 1980 को भरतपुरा को बिहार का विशिष्ट पुस्तकालय घोषित किया। पुस्तकालय के ट्रस्टी रघुराज नारायण सिंह द्वारा घोषित सार्वजनिक पुस्तकालय के संचालन के लिए समिति बनाई गई। 1988 में इस पुस्तकालय की जयंती मनाई गई तब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही भरतपुरा आए थे।
देश में चौथा प्राचीन संग्रहालय
ब्रिटिश हाई कमीशन ने 30 जून 1981 में गोपाल नारायण पब्लिक लाइब्रेरी की तुलना नेशनल लाइब्रेरी कोलकाता, नेशनल म्यूजियम दिल्ली और पटना के खुदाबख्स खां लाइब्रेरी से की। इसे मुगल कालीन पेंटिंग का एशिया में सबसे बड़ा संग्रहालय माना गया। अकबर द्वारा चलाई गई मुद्रा दीन इलाही और गुप्तकाल के सिक्के के साथ वातानुकूलित घड़ी और अन्य दुर्लभ संग्रह यहां उपलब्ध हैं।
तस्करी का शिकार हुआ
बात 1973 की है। 8 जनवरी की सर्द रात में सुरक्षा प्रहरी पर हमला करके तस्करों ने बहुमूल्य चित्रित पांडुलिपियां, शाहनामा, सिकंदरनामा, वैसलिस, मुता-उल-हिंद एवं अकबर के समकालीन चित्रकार की पेंटिंग उड़ा ले गए। असाम के सांसद एमएस गुहा ने संसद में आवाज उठाई तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि तक बात पहुंची।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1974 में पांडुलिपियों की चोरी की जांच का जिम्मा सीबीआइ को सौंपा। सीबीआई ने तीन पांडुलिपियों को बरामद किया लेकिन मुता-उल-हिंद जो अकबर के समकालीन सलामत अली द्वारा लिखित था वह कैलिफोर्निया पहुंच चुका था। जिसको इंटरपोल के माध्यम से लाने का प्रयास किया जा रहा है। अन्य कॉपिया भारत के अन्य भागो से जब्त कर ली गई थी।
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