बिहार के इस पेड़ पर पत्ते और फल से ज्यादा दिखते हैं स्त्री-पुरुषों के कपड़े, कारण जानकर होगी हैरानी
बिहार के सारण जिले के मढ़ौरा प्रखंड क्षेत्र में बेर का एक पेड़ राहगीरों को अचरज में डाल देता है। देखकर अंजान लोग एकबारगी ठहर जाते हैं क्योंकि पेड़ पर टहनी पत्ते और फल से ज्यादा कपड़े नजर आते हैं।

बिपिन कुमार मिश्रा, (मढ़ाैरा) सारण। बेर का पेड़ आमतौर पर हर जगह दिख जाता है। लेकिन बिहार के सारण जिले में बेर का ये पेड़ खास है। यहां फल और पत्ते से अधिक कपड़े दिखते हैं। साड़ी, शर्ट, पैंट, गमछा, मवेशियों की रस्सी आदि से यह पेड़ लदा हुआ है। सैकड़ों की संख्या में कपड़े टंगे हुए हैं। मान्यता है कि बेर का यह पेड़ बिछड़ों को अपनों से मिलाता है। यहां न केवल इंसान बल्कि पशुओं के गुम होने पर भी लोग पहुंचते हैं। हर धर्म-समुदाय के लोग यहां आते हैं। वे मन्नत मांगते हैं। लोगों का कहना है कि मन्नतें पूर्ण होने की वजह से इस पेड़ के प्रति काफी आस्था है। यही कारण है कि बिहार के कई जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के लोग भी यहां आते हैं।
कब्रिस्तान परिसर में है बेर का पेड़
सारण जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मढ़ौरा प्रखंड के ओलहनपुर पंचायत में बेर का ये पेड़ है। बेर के पेड़ की वजह से इस स्थान का नाम बैरिया बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। सिर्फ छपरा ही नहीं बल्कि कई राज्यो से लोग यहां पहुचते हैं। वे इस पेड़ पर बिछड़े लोगों के कपड़े टांग देते हैं। कोई मवेशी गुम हो गया तो उसकी रस्सी लोग टांग जाते हैं। यहां कपड़े और रस्सी टांगने वालों को गुमशुदा या बिछड़े मिल गए इस कारण इसके प्रति विश्वास दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
(पेड़ को देखते लोग। जागरण)
गुजरात से लेकर यूपी तक के लोग आते हैं कपड़े टांगने
स्थानीय लोगों की माने तो यहां बिहार के कई जिलों के अलावा गुजरात, असम, यूपी तक के लोग दशकों से आते रहे हैं। जिनके अपने बिछड़े होते है वो उनके बदन से उतरे पुराने कपड़े डाल जाते हैं। जिनके अपने बिछड़े या गुमशुदा लोग मिल जाते हैं तो मिठाइ चढ़ाई जाती है। स्थानीय कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि उनके देखते-देखते कई पेड़ पौधे खत्म हो गए। कई आंधी-तूफानाें में धराशायी हो गए लेकिन बेर का यह पेड़ जस का तस है। ओलहनपुर में कब्रिस्तान की चारदीवारी के अंदर इस बेर के पेड़ के नीचे तत्कालीन विधायक लालबाबू राय ने चबूतरा का निर्माण कराया था, जिस पर स्पष्ट शब्दों में बैरिया बाबा स्थान लिखा हुआ है।
आज भी हजारों कपड़े से लदा है यह बेर का पेड़
ऐसा नही है कि यह कोई पुरानी कहानियां है, बल्कि पेड़ो पर टंगे न जाने कितने कपड़े आंधियों में उड़ गए, बावजूद आज भी इस पेड़ पर महिलाओंं-पुरुषों व बच्चों के सैकड़ों कपड़े टंगे हुए है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्थान पर जाति और मजहब का कोई भेदभाव नहीं है। सभी जाति और धर्मो के लोगों के लिये यह पेड़ आस्था का केंद्र है ।
गुम हुए मवेशी भी मिल जाते हैं
यहां पुराने कपड़े टांगने पर सिर्फ जीवित इंसान ही वापस आते है, जबकि यदि कोई आपका पालतू जानवर गुम हो जाये तो उसके लगाम, नाथ, पगहा या खूंटा इस जगह फेंकने के बाद वो भी वापस आ जाता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।