जीतनराम मांझी ने NDA को कहा अलविदा, 'महागठबंधन' में शामिल
राजग में नाराज चल रहे 'हम' सुप्रीमो जीतनराम मांझी महागठबंधन के साथ चले गए हैं। इसके पहले उनसे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुलाकात की।
पटना [राज्य ब्यूरो]। उपचुनाव से पहले बिहार की सियासत ने बड़ी करवट ली है। करीब तीन वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाले राजग के सहयोगी रहे पूर्व मुख्यमंत्री एवं हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने पाला बदल लिया है। अब वह राजद-कांग्रेस गठबंधन को मजबूत करेंगे।
विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता हासिल न करने के बाद से ही मांझी राजग से नाराज चल रहे थे। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव एवं तेज प्रताप यादव ने बुधवार को उनके घर जाकर राजद खेमे में आने का न्योता दिया। मांझी से मुलाकात के बाद तेजस्वी ने उन्हें अपने माता-पिता का पुराना दोस्त बताया और कहा कि हम दोनों का एक मकसद है गरीबों और दलितों का कल्याण।
तेजस्वी ने कहा कि राजग में मांझी घुटन महसूस कर रहे थे। वहां दलितों की आवाज दबाई जाती है। मांझी के साथ उचित व्यवहार भी नहीं किया जा रहा था। मुख्यमंत्री रहते हुए मांझी ने जो नीतियां बनाई थी, उसपर काम नहीं हो रहा था।
तेजस्वी ने राजद में टूट के दावे को खारिज करते हुए कहा कि राजद-कांग्रेस में तोड़-फोड़ का दावा करने वाले राजग नेताओं को यह पहला झटका है। आगे और झटके मिलेंगे। तेजस्वी का संकेत राजग के एक और अहम सहयोगी एवं केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की ओर था। शिक्षा में सुधार के मुद्दे पर उनकी पार्टी रालोसपा द्वारा इसी साल 30 जनवरी को आयोजित मानव शृंखला में राजद के वरिष्ठ नेताओं ने शिरकत की थी, जिसके बाद से कुशवाहा की निष्ठा भी संशय के घेरे में है।
तेजस्वी ने दावा किया कि लोकसभा चुनाव के पहले ही राजग बिखर जाएगा। जदयू में लगातार टूट हो रही है। हाल ही में विधायक सरफराज आलम ने नीतीश का साथ छोड़कर लालू की विचारधारा को चुना है। आगे और लोग शामिल होंगे।
अनदेखी से खफा थे मांझी
राजग में अपनी लगातार उपेक्षा से मांझी काफी दिनों से खफा थे। विधानसभा चुनाव में राजग ने उन्हें 20 सीटें दी थी, जिनमें सिर्फ एक पर जीत नसीब हुई थी। वह अपनी पार्टी के एकलौते विधायक हैं। दो जगहों से चुनाव लड़कर एक जगह से जीते थे। इस शिकस्त के बाद से ही मांझी की सियासत राजग में संतुलित नहीं हो पा रही थी।
तीन सीटों पर उपचुनाव की घोषणा के बाद मांझी की नजर जहानाबाद विधानसभा सीट पर थी। इसके लिए उन्होंने राजग नेतृत्व पर दबाव भी बनाया, लेकिन आखिर में यह सीट जदयू के हिस्से में आ गई। सहयोगी दल के इस निर्णय से मांझी विचलित नजर आए। उन्होंने जब-तब इसका इजहार भी किया। दो दिन पहले तो मांझी ने एलान कर दिया कि वह राजग के पक्ष में चुनाव प्रचार नहीं करने जाएंगे।