विधानसभा उपचुनाव के परिणाम से तय होगा तेजस्वी का भविष्य, बिहार की सरकार के लिए भी यह अहम
Bihar Assembly By-Election 2021 दो सीटों (कुशेश्वरस्थान और तारापुर) पर महज कहने के लिए उपचुनाव हो रहा है। लेकिन दलों की तैयारी पूरी तरह आम चुनाव जैसी है। सत्तारूढ़ जदयू और मुख्य विपक्षी राजद इतने गंभीर हैं मानों महज दो सीटों की हार जीत से सरकार की तकदीर तय होगी।
अरुण अशेष, पटना। By-Election in Bihar: बिहार विधानसभा की दो सीटों (कुशेश्वरस्थान और तारापुर)पर महज कहने के लिए उप चुनाव हो रहा है। लेकिन, दलों की तैयारी पूरी तरह आम चुनाव जैसी है। सत्तारूढ़ जदयू (JDU) और मुख्य विपक्षी राजद (RJD) इतने गंभीर हैं, मानों महज दो सीटों की हार जीत से सरकार की तकदीर तय होगी। जदयू प्रत्यक्ष में इस भाव को छिपा रहा है। राजद इसे उभार रहा है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव रोड शो में कहते हैं-दो सीटों पर जीत हुई तो हम सरकार बना लेंगे। यह अपील राजद कार्यकर्ताओं को उत्साहित करती है। जदयू इसमें मुद्दा निकाल रहा है। वह राजद शासन के दिनों की याद दिला रहा है-जंगलराज। यह 2005 से ही जदयू या समग्रता में एनडीए का मुद्दा रहा है।
विधानसभा चुनाव के समय उठाए गए मुद्दे ही भुना रहा जदयू
बेशक, जदयू कथित जंगलराज के साथ-साथ 16 वर्षों के शासन में हुए न्याय के साथ विकास का भी जिक्र कर रहा है। सड़क, बिजली, शिक्षा, कृषि के क्षेत्र में हुए विकास और आखिरी कतार में बैठे लोगों के कल्याण के अलावा उन योजनाओं की भी चर्चा, जिसका लाभ बिना जाति, धर्म, लिंग और माली हैसियत में फर्क किए हर किसी को मिल रहा है। कुल मिलाकर वे मुद्दे जो साल भर पहले विधानसभा के आम चुनाव में उठाए गए थे, उप चुनाव में भी यथावत हैं। आम चुनाव की तरह इसमें भी हेलीकाप्टर का इस्तेमाल होने जा रहा है।
पंचायत स्तर पर हर दल ने किया प्रबंधन
जदयू, राजद के अलावा कांग्रेस ने भी उप चुनाव में पंचायत स्तर पर प्रबंधन किया है। विधायकों और पूर्व विधायकों के अलावा दलों और प्रकोष्ठों के पदधारकों को पंचायतों की जवाबदेही दी गई है। संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को भी जिम्मेवारी दी गई है। केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह (Union Minister RCP Singh) कुशेश्वरस्थान के गांवों में वोट मांग रहे हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह तारापुर में कैंप कर रहे हैं। पंचायत प्रबंधन में जुटे नेताओं को यह हिदायत दी गई है कि वोटों का हिसाब होगा। वोटों की संख्या पर ही उनका भविष्य तय होगा। इवीएम से वोटिंग होने पर यह पता चल जाता है कि किस पंचायत में किस उम्मीदवार को कितने वोट मिले। बैलेट वाले चुनाव में यह नहीं होता था।
उपचुनाव को लेकर क्यों है यह गंभीरता
उप चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष की गंभीरता का कारण है। 2009 में सर्वाधिक 18 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुआ था। लेकिन, इस उपचुनाव जैसी गहमागहमी नहीं थी। क्योंकि भाजपा-जदयू की सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल था। मुख्य विपक्षी दल राजद के विधायकों की संख्या दो दर्जन से भी कम थी। उस उप चुनाव में राजद सभी सीटें जीत लेता, फिर भी सरकार बनाने का ख्वाब नहीं देख पाता। मगर, इस समय हो रहे उप चुनाव में दो सीटों की हार-जीत का महत्व है। अगर परिणाम राजद के पक्ष में जाता है तो 243 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष की ताकत 117 विधायकों की हो जाएगी। उधर सत्तारूढ़ गठबंधन को 126 विधायकों का साथ रह जाएगा। यह साधारण बहुमत से चार अधिक है। संख्या बल को लेकर सरकार की सेहत पर तत्काल कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन उसके कुछ सहयोगी दबाव बढ़ाने की हैसियत तो हासिल कर ही लेंगे। यही वजह है कि मुकाबले की पार्टियां हर हाल में उप चुनाव जीतना चाह रही हैं।
अस्तित्व बचाने के उद्देश्य से चुनाव लड़ रही कांग्रेस
उप चुनाव में कांग्रेस की हिस्सेदारी दिलचस्प है। वह दोनों सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कुशेश्वरस्थान को वह परम्परागत सीट मानती है। क्योंकि पूर्ववर्ती सिंघिया में उसकी जीत होती थी। कांग्रेस सरकार बनाने के इरादे से नहीं अस्तित्व बचाने के इरादे से वह गंभीरता से लड़ रही है। भविष्य की राजनीति के लिए कुशेश्वरस्थान में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना कांग्रेस के लिए जरूरी है।