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पिता चलाते हैं मिठाई की दुकान, बच्‍चों को ट्यूशन पढ़ा बेटी बनी IAS

पिता मिठाई की दुकान चलाते हैं। घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्‍छी नहीं थी। आइएएस बनने की ललक थी। इस‍लिए ज्‍योति ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर की पॉकेट मनी की व्यवस्था की और आइएएस बन गई।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sat, 28 Apr 2018 03:37 PM (IST)Updated: Sat, 28 Apr 2018 10:46 PM (IST)
पिता चलाते हैं मिठाई की दुकान, बच्‍चों को ट्यूशन पढ़ा बेटी बनी IAS

पटना [नलिनी रंजन]। ज्योति वाकई कुल-दीपक बन गईं। बिहार के भागलपुर के कहलगांव में मिठाई की दुकान चलाने वाले जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता की बेटी ज्योति कुमारी ने सिविल सेवा परीक्षा, 2017 में 53वीं रैंक हासिल की है।

ज्योति बताती हैं कि बचपन से डॉक्टर बनने की इच्छा थी, लेकिन कहलगांव से मैट्रिक करने के बाद उसके मन में आइएएस बनने का ख्याल आया। लक्ष्य बनाकर तैयारी आरंभ की। फिर रांची के जवाहर विद्या मंदिर से इंटर करने के बाद तैयारी करने के उद्देश्य से दिल्ली पहुंची। वहां दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया। इस दौरान पॉकेट खर्च निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का भी कार्य किया। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखीं। आखिरकार ज्योति ने अपने लक्ष्य को पा ही लिया।

यह पूछने पर कि यूपीएससी तैयारी के लिए आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगी। ज्योति ने कहा कि यह अत्यंत कठिन परीक्षा है,  जिसमें कठोर परिश्रम की आवश्यकता है। दो बार असफल रहने के बाद वर्ष 2014-15 में ज्योति ने यूपीएससी की परीक्षा में 524वां रैंक प्राप्त किया था। इसके बाद ज्योति की पदस्थापना दिल्ली में दूरसंचार विभाग में एडीजी के पद पर हुई लेकिन वह लक्ष्य पर टिकी रही। पुन: दो प्रयासों में उन्हें असफलता मिली।

ज्योति के पिता जगन्नाथ प्रसाद साह बताते हैं कि ज्योति का चयन मेडिकल के लिए भी हुआ था लेकिन वह दिल्ली के हंसराज कॉलेज में इतिहास पढऩे चली गई। ज्योति अपने माता शोभा देवी और पिता जगन्नाथ प्रसाद साह की दूसरी संतान है। ज्योति तीन बहन और एक भाई है। बड़ी बहन राधा कुमारी और छोटी बहन पूजा कुमारी है। भाई आनंद कुमार सबसे छोटा है।

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कुछ और करने के दम ने दियाया रैंक

ज्‍योति ने कहा कि कहा कि वर्ष 2014 में परीक्षा में 524 वीं रैंक आई। रैंक ने थोड़ी मायूसी दिलाई। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। मन में ख्याल आया कि कुछ रह गया है। इसे मेहनत के बल पर पूरा किया जा सकता है। मेहनत के साथ फिर जुट गई। आर्थिक कारण बाधा न बने, इसके लिए संचार भवन में सहायक निदेशक के पद पर योगदान दिया। नौकरी के साथ-साथ तैयारी जारी रखी। अभिलाषा अपनी सफलता का श्रेय मां-पिता को देती हैं। ज्योति की मां शोभा देवी पिता के साथ दुकान चलाने में सहयोग करती हैं।


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