Anand Mohan की रिहाई पर टला फैसला, अब सितंबर में होगी सुनवाई
बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। कोर्ट में दिवंगत आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी द्वारा रिहाई के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। पहले इस मामले में सुनवाई 8 अगस्त को होने वाली थी। जिसे 11 अगस्त के लिए टाल दिया गया था। अब सुनवाई 26 सितंबर को होगी।

पटना, जागरण डिजिटल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिका को 26 सितंबर तक टाल दिया है।
शीर्ष अदालत की बेंच ने कहा कि हम इसे सितंबर में किसी भी गैर-विविध दिन देखेंगे। बता दें कि न्यायमूर्ति कांत इस वक्त उन पांच जजों की पीठ का हिस्सा हैं, जो 2 अगस्त से लगातार सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील की दलील
आज आनंद मोहन के मामले में सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने पीठ को अवगत कराया कि राज्य सरकार ने एक ही दिन में 97 दोषी व्यक्तियों की सजा में छूट पर विचार किया, उसने केवल गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन की सजा में छूट नहीं दी है।
इस पर, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने कहा, "क्या इन सभी 97 लोगों पर एक लोक सेवक की हत्या का आरोप लगाया गया था?" क्योंकि मामला यह है कि उन्हें (आनंद मोहन) रिहा करने के लिए नीति बदल दी गई। इसके जवाब में, कुमार ने कहा कि वह उन दोषियों को वर्गीकृत करते हुए एक विस्तृत प्रतिक्रिया दाखिल करेंगे, जिन्हें उनके अपराध के आधार पर छूट दी गई है।
जवाबी हलफनामा दायर करने की अनुमति
शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार को दो सप्ताह की अवधि के भीतर एक अतिरिक्त जवाबी हलफनामा दायर करने की अनुमति दी है। वहीं, मारे गए आईएएस अफसर की पत्नी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने उन्हें इस मामले से संबंधित आधिकारिक फाइलों की प्रति नहीं दी है।
गौरतलब है कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूर्व सांसद को मिली सजा में छूट के संबंध में मूल रिकॉर्ड अदालत के समक्ष पेश किया है।
बता दें कि यह याचिका अदालत में दिवंगत आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी द्वारा दायर की गई थी। सुनवाई पहले 8 अगस्त को होने वाली थी, लेकिन हो नहीं पाई। फिर सुनवाई को 11 अगस्त के लिए टाल दिया गया था।
राज्य सरकार ने कहा, हत्या की सजा सभी के लिए बराबर
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपने जवाबी हलफनामे में बिहार सरकार ने कहा था कि चाहे आम जनता हो या लोक सेवक, हत्या की सजा सभी के लिए बराबर है।
एक तरफ, आम जनता की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए पात्र माना जाता है।
वहीं, दूसरी ओर, किसी लोक सेवक की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए पात्र नहीं माना जाता है। ऐसे में पीड़ित की स्थिति के आधार पर संशाेधन के तहत भेदभाव को दूर करने की मांग की गई।
रिहाई के संबंध में रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था। इसके साथ, बिहार सरकार को पूर्व सांसद को दी गई रिहाई के संबंध में मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया था।
बता दें कि बिहार के जेल नियमों में संशोधन के बाद आनंद मोहन सिंह को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया।
याचिका में आरोप लगाया गया कि बिहार सरकार ने 10 अप्रैल, 2023 को संशोधन के जरिए बिहार जेल मैनुअल, 2012 में इसलिए संशोधन किया, ताकि दोषी आनंद मोहन को रिहा किया जा सके।
बता दें कि साल 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कृष्णैया को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था, जब उनके वाहन ने गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस से आगे निकलने की कोशिश की थी। भीड़ को आनंद मोहन सिंह ने उकसाया था।
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