Bihar News: SC ने वोटर लिस्ट से हटाए गए वोटरों की मांगी डिटेल, कहा- हम हर मतदाता से संपर्क करेंगे
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं का विवरण 9 अगस्त तक देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने आयोग से कहा है कि हटाए गए मतदाताओं का विवरण राजनीतिक दलों और एनजीओ को भी उपलब्ध कराया जाए। एनजीओ ने मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।

एजेंसी, पटना/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग से कहा कि वह चुनावी राज्य बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर रह गए लगभग 65 लाख मतदाताओं का विवरण 9 अगस्त तक उपलब्ध कराए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि वे हटाए गए मतदाताओं का विवरण प्रस्तुत करें, जो डेटा पहले ही राजनीतिक दलों के साथ साझा किया जा चुका है, और इसकी एक प्रति गैर-सरकारी संगठन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) को दें।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के निर्देश देने वाले चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती देने वाले एनजीओ ने एक नया आवेदन दायर किया है, जिसमें चुनाव आयोग को लगभग 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की है, जिसमें यह भी उल्लेख हो कि वे मृत हैं, स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं या किसी अन्य कारण से उनके नाम पर विचार नहीं किया जा रहा है।
पीठ ने NGO की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण से कहा कि नाम हटाने का कारण बाद में पता चलेगा, क्योंकि अभी यह केवल एक मसौदा सूची है। हालांकि, भूषण ने तर्क दिया कि कुछ राजनीतिक दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उक्त मतदाता की मृत्यु हो गई है या वह कहीं और चला गया है।
पीठ ने चुनाव आयोग के वकील से कहा, "हम प्रभावित होने वाले हर मतदाता से संपर्क करेंगे और आवश्यक जानकारी प्राप्त करेंगे। आप (चुनाव आयोग) शनिवार तक जवाब दाखिल करें और श्री भूषण को उस पर गौर करने दें, फिर हम देख पाएंगे कि क्या खुलासा हुआ है और क्या नहीं।"
भूषण ने आरोप लगाया कि गणना फॉर्म भरने वाले 75 प्रतिशत मतदाताओं ने 11 दस्तावेजों की सूची में उल्लिखित कोई भी सहायक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं और उनके नाम चुनाव आयोग के बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) की सिफारिश पर शामिल किए गए थे।
पीठ ने कहा कि वह 12 अगस्त को चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर रही है और एनजीओ उसी दिन ये दावे कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को चुनाव आयोग को कानून के अनुसार कार्य करने वाला एक संवैधानिक प्राधिकारी बताया और कहा कि अगर बिहार में मतदाता सूची के SIR में "बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए" हैं, तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगी। उसने बिहार में चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर विचार करने के लिए समय-सीमा तय की थी और कहा था कि इस मुद्दे पर सुनवाई 12 और 13 अगस्त को होगी।
इससे पहले, यह देखते हुए कि चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूची के चल रहे एसआईआर प्रक्रिया में "सामूहिक रूप से नाम हटाने" के बजाय "सामूहिक रूप से नाम शामिल करने" की प्रक्रिया होनी चाहिए, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से आधार और मतदाता पहचान पत्र दस्तावेज़ स्वीकार करना जारी रखने को कहा था।
दोनों दस्तावेज़ों की "वास्तविकता की धारणा" पर ज़ोर देते हुए, शीर्ष अदालत ने बिहार में मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।
मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी, जबकि विपक्ष का दावा था कि यह प्रक्रिया करोड़ों पात्र नागरिकों को उनके मताधिकार से वंचित कर देगी।
1 अगस्त को, चुनाव आयोग ने बिहार में बहुप्रतीक्षित 'ड्राफ्ट मतदाता सूची' जारी की, जिसमें 7.24 करोड़ मतदाताओं के नाम शामिल थे, लेकिन 65 लाख से ज़्यादा नामों को यह दावा करते हुए हटा दिया गया कि ज़्यादातर संबंधित व्यक्ति मर चुके हैं या पलायन कर चुके हैं।
SIR के तहत तैयार की गई ड्राफ्ट मतदाता सूची, मतदाताओं के लिए ऑनलाइन उपलब्ध है। चुनाव आयोग ने कहा है कि वह राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को ज़िलेवार प्रिंटेड कॉपी उपलब्ध करा रहा है, ताकि अगर कोई विसंगति हो, तो उसे 'दावों और आपत्तियों' के चरण के दौरान चिह्नित किया जा सके, जो 'अंतिम सूची' प्रकाशित होने से पहले 1 सितंबर तक जारी रहेगा।
ड्राफ्ट सूची में पहले से पंजीकृत मतदाताओं को शामिल न करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा बताए गए कारणों में मृत्यु (22.34 लाख), स्थायी रूप से स्थानांतरित/अनुपस्थित (36.28 लाख) और पहले से ही नामांकित (एक से ज़्यादा स्थानों पर) (7.01 लाख) शामिल हैं।
शीर्ष अदालत में चुनाव आयोग के हलफनामे में बिहार में मतदाता सूचियों की चल रही SIR को उचित ठहराते हुए कहा गया है कि इससे मतदाता सूचियों से "अयोग्य व्यक्तियों को बाहर" करके चुनाव की शुद्धता बढ़ती है।
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