Bihar Politics: सीट शेयरिंग में 'गेम' कर भाजपा-राजद ने यूं बढ़ाया अपना कद, तो छुटभैये दलों का हाल हुआ बुरा
राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। दलों की हैसियत परिस्थितियों के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है। बिहार की राजनीति ने पिछले पांच सालाें में कई बदलाव देखे। गठबंधन टूटते-बनते रहे। दोस्त दुश्मन बने और दुश्मन दोस्त। इस बदलाव ने दलों की हैसियत भी बदली। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार सीटों पर छोटे दलों की हिस्सेदारी दस प्रतिशत तक घटी है।

कुमार रजत, पटना। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार सीटों पर छोटे दलों की हिस्सेदारी दस प्रतिशत तक घट गई है। बिहार के तीन प्रमुख दल राजद, भाजपा और जदयू ने लगभग तीन चौथाई सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं, बाकी के सात दलों के हिस्से में महज एक चौथाई सीटें आई हैं। इसमें कांग्रेस की नौ सीटें हटा दें, तो छोटे दलों की हिस्सेदारी और कम हो जाती है।
कुशवाहा, मांझी और मुकेश सहनी के दलों का हाल
छोटे दलों को होने वाले नुकसान की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा सबसे अधिक नुकसान में दिख रहे हैं। पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन के साथ थे। उस समय उनके दल का नाम राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) था जिसे लोकसभा की पांच सीटें मिली थीं।
इस बार उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) नाम से दल बनाकर राजग में हैं। उन्हें महज एक सीट काराकाट मिली है, जहां से वह खुद उम्मीदवार हैं।
इसी तरह हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी को भी महागठबंधन से पिछली दफे तीन सीटें मिली थीं मगर इस बार उन्हें महज गया की सीट मिली है, जहां से वह खुद उम्मीदवार हैं।
मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी तो इस बार सीन से ही गायब दिख रही है। पिछली बार महागठबंधन की ओर से तीन सीटें मिली थीं मगर इस बार सहनी किसी गठबंधन से खुद की सीट का इंतजाम भी नहीं कर पाए हैं।
चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के दलों को कुल दस सीटें मिली थीं, मगर एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो सकी।
कुशवाहा और सहनी तो विधानसभा में भी खाली हाथ हैं, इसलिए इनकी दावेदारी कमजोर हुई है। इसके अलावा एनडीए में जदयू और महागठबंधन में वामदलों की वापसी ने भी इनके मोल-भाव की ताकत कम कर दी है।
सीट बंटवारे में पहली बार भाजपा को अधिक सीटें
राजग में पहली बार ऐसा हो रहा है कि जदयू के रहते भाजपा को अधिक सीटें मिली हैं। पिछली बार दोनों दलों के बीच 17-17 सीटों का समान रूप से बंटवारा हुआ था जबकि छह सीटें लोजपा को मिली थीं। इस बार भाजपा ने तो अपनी 17 सीटें बरकरार रखीं मगर जदयू को एक सीट कम यानी 16 सीटें मिलीं।
चाचा-भतीजे की लड़ाई में लोजपा को भी एक सीट का नुकसान हुआ। पिछली बार की छह सीटों के बजाय इस बार पांच सीटें चिराग के दल को मिलीं। पारस के गुट को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
वामदलों को दो सीटों का नुकसान
पिछले लोकसभा चुनाव में वामदल थर्ड फ्रंट के तौर पर लड़े थे। उस समय भाकपा माले को चार, भाकपा को दो और माकपा को एक कुल सात सीटें मिली थीं। इस बार वाम दल महागठबंधन के साथ हैं और पांच सीटें मिली हैं। इनमें भाकपा माले को तीन जबकि भाकपा और माकपा को एक-एक सीट मिली है।
लोकसभा चुनाव 2019
| महागठबंधन | एनडीए | थर्ड फ्रंट |
| राजद - 19 | भाजपा - 17 | भाकपा (माले)- 4 |
| कांग्रेस - 9 | जदयू - 17 | भाकपा - 2 |
| रालोसपा - 5 | लोजपा - 6 | माकपा - 1 |
| हम - 3 | ||
| वीआईपी - 3 |
(नोट- वामदलों ने थर्ड फ्रंट के तौर पर दोनों गठबंधनों से अलग चुनाव लड़ा था।)
लोकसभा चुनाव 2024
| महागठबंधन | एनडीए |
| राजद - 26 | भाजपा - 17 |
| कांग्रेस - 9 | जदयू - 16 |
| भाकपा माले - 1 | लोजपा (आर) - 5 |
| भाकपा -1 | हम - 1 |
| माकपा - 1 | रालोमो - 1 |
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