Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पटना में सड़कों पर बढ़ी महिलाओं की रफ्तार, बिन घबराहट संभाल रहीं वाहनों की कमान

    Updated: Thu, 03 Jul 2025 01:42 PM (IST)

    पटना में कालेज की छात्राएं स्कूटी पर दिखती हैं तो कहीं महिलाएं सब्जी लाने बच्चों को स्कूल छोड़ने या दफ्तर जाने के लिए खुद गाड़ी ड्राइव कर रही हैं। आठ साल में पटना में 29417 महिलाओं ने ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया है। ये आंकड़ा बताता है कि महिलाएं अब सफर के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहीं।

    Hero Image
    पटना में सड़कों पर बढ़ी महिलाओं की रफ्तार। जागरण।

    सोनाली दुबे, पटना। पटना जंक्शन के पास सुबह-सुबह का वक्त। यातायात का शोर, हार्न की आवाजें, सड़क पर गाड़ियों की कतार, लेकिन इस भीड़ में एक आटो अचानक रुकती है। स्टेयरिंग पर कोई आम पुरुष ड्राइवर नहीं, चेहरे पर आत्मविश्वास और माथे पर छोटी सी बिंदी लगाए सुलेखा देवी हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सड़क पर चलने के नियमों को पूरी समझदारी से निभाते हुए वो ट्रैफिक सिग्नल पर रुकती हैं, सवारी बैठाती हैं, और पीछे देखते हुए मोड़ लेती हैं। कोई जल्दबाजी नहीं, कोई हिचकिचाहट नहीं। बस पूरा आत्मविश्वास। दूसरी ओर कार की खिड़की से झांकती हैं प्रिया मनीष कुमार जो खुद कार ड्राइव करते हुए कालेज जा रही हैं। सीट बेल्ट बांधती हैं, गियर बदलती हैं और साइड मिरर चेक कर सफर शुरू करती हैं। अब ये नजारे पटना में आम होते जा रहे हैं।

    कहीं कालेज की छात्राएं स्कूटी पर दिखती हैं, तो कहीं महिलाएं सब्जी लाने, बच्चों को स्कूल छोड़ने, या दफ्तर जाने के लिए खुद गाड़ी ड्राइव कर रही हैं। परिवहन विभाग के आंकड़े भी इस बदलाव की गवाही देते हैं। बीते आठ साल में पटना में 29,417 महिलाओं ने ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया है। ये आंकड़ा बताता है कि महिलाएं अब सफर के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहीं। अपनी जिंदगी की रफ्तार भी खुद तय कर रही हैं। ये बदलाव समाज में सोच के बदलाव की भी तस्वीर है, जो अब हर गली, हर मोड़ पर दिख रही है।

    सड़कों पर आत्मनिर्भरता की कहानी

    मैंने 2016 में पहली बार अपना आटो शुरू किया था। शुरू में लोग मुझे ताना मारते थे, लेकिन आज मेरा आटो ही मेरा सम्मान है। मैं अपने बच्चों की पढ़ाई, घर का खर्च सब कुछ संभाल रही हूँ। अगर महिलाएं चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं, बस हिम्मत की जरूरत है।

    सुलेखा

    मैं हर रोज अपने स्कूटी से कालेज जाती हूं। अब लड़कियां हवाई जहाज भी उड़ा रही हैं। महिलाएं हर जगह हैं, बस उन्हें आत्मविश्वास की जरूरत है।

    अंजलि सोनी

    मैं सालों से खुद गाड़ी चलाकर कालेज जाती रही हूं। मुझे अपने बच्चों को कहीं छोड़ना होता है तो मैं उन्हें आराम से छोड़ देती हूं। गाड़ी चलाना सुविधा के साथ आज के समय में आजादी का दूसरा नाम है।

    प्रिया मनीष कुमार, सहायक प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, जेवियर यूनिवर्सिटी

    अब सब्जी लानी हो, बच्चों को स्कूल छोड़ना हो, मुझे किसी पर निर्भर रहना अच्छा नहीं लगता। गाड़ी चलानी आती है तो सब आसान है।

    अंशी कुमारी

    पहले आफिस के लिए आटो का इंतजार करना पड़ता था। अब खुद गाड़ी स्टार्ट करती हूं, टाइम पर आफिस भी पहुंचती हूं और मन में डर भी नहीं रहता।

    आभा आनंद

    महिलाओं की स्थिति में जो परिवर्तन बीते कुछ दशकों में देखने को मिला है, वह समाज की सोच और ढांचे दोनों में आई क्रांति का संकेत है। 20वीं सदी में महिलाओं को चारदीवारी तक सीमित रखा जाता था। लेकिन 21वीं सदी में महिलाएं आत्मविश्वास के साथ घरेलू जिम्मेदारियों, पेशेवर जीवन और अब सड़कों पर भी अपनी जगह बना रही हैं। चिकित्सा आपात स्थितियों में कई बार महिलाओं ने ड्राइविंग कौशल से समय पर अस्पताल पहुंचने में मदद की हैं। महिलाओं के अनुकूल और अधिक वाहन लाने की जरूरत है। ऐसे वाहन जो हल्के, सुरक्षित और उन्नत तकनीक से लैस हों, ताकि महिलाएं बिना किसी झिझक या डर के सड़कों पर निकल सकें।

    डा दीक्षा सिंह, विभागाध्यक्ष,समाजशास्त्र विभाग, गंगा देवी महिला कालेज