बिहार कांग्रेस को क्या जल्द मिलेगा स्थाई अध्यक्ष? चर्चा में हैं ये नाम
बिहार में कांग्रेस काे जल्दी ही प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है। लालू के समर्थन व विरोध में बंटी इस पार्टी में अध्यक्ष के लिए कई नाम चर्चा में हैं। जानि ...और पढ़ें

पटना [अमित आलोक]। बिहार में लगातार करवट ले रही राजनीति में विपक्षी 'महागठबंधन' को बड़ा झटका लगा है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला में सजा के बाद राजद के साथ कांग्रेस भी सकते में है। बताया जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब बिहार में पार्टी के स्थाई अध्यक्ष के पक्ष में हैं। इसके लिए कई नाम चर्चा में हैं। बतौर अध्यक्ष राहुल के सामने निर्णायक फैसले लेने का समय है। बिहार में लालू के नाम पर दो-फाड़ कांग्रेस को एकजुट रखना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है।
बिहार को जल्द ही मिल सकता स्थाई अध्यक्ष
बिहार कांग्रेस बीते कुछ समय से स्थाई अध्यक्ष के बिना चल रही है। पार्टी की कमान कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी के हाथों में है। लेकिन, लगता है कि अब पार्टी को बिहार में स्थाई अध्यक्ष मिलने वाला है। सूत्र बताते हैं कि इस पद के लिए कई नाम चर्चा में हैं। बीते दिन राहुल गांधी ने कहा था कि जब तक संगठन चुनाव नहीं हो जाते, प्रदेश कमेटियां व प्रदेश अध्यक्ष बरकरार रहेंगे। लेकिन, कल ही पार्टी ने दिल्ली व त्रिपुरा में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर अपनी नीति स्पष्ट कर दी। बताया जा रहा है कि अब बिहार में भी ऐसा ही होगा।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में कई नाम
बताया जाता है कि कांग्रेस में कई नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में हैं। डॉ. अखिलेश सिंह, शकील अहमद, कौकब कादरी, मदन मोहन झा, रंजीता रंजन व प्रेमचंद मिश्र आदि कई नाम हैं। रविवार को रंजीत रंजन को राहुल गांधी ने जन्मदिन की बधाई दी है। इसे उनकी आलाकमान से करीबी से जोड़कर देखा जा रहा है।
चर्चाओं पर विश्वास करें तो कांग्रेस का एक गुट लालू के करीबी माने जाने वाले डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष बनाना चाहता है। बताया जा रहा है कि लालू कांग्रेस में भी अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाना चाह रहे हैं। यह सवाल मौजूं हो गया है कि क्या बिहार (और झारखंड) में कांग्रेस लालू के हवाले हो गई है? राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी को लालू प्रसाद ने हटवाया और आगे भी उनकी मर्जी से ही कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव तय है। इस कयास को इस बात से बल मिलता है कि झारखंड में लालू के करीबी रहे पूर्व आइपीएस अधिकारी डॉ. अजय कुमार को पार्टी ने अध्यक्ष बनाया है।
कांग्रेस नेता एचके वर्मा कांग्रेस में किसी ‘लालू फैक्टर’ से इन्कार करते हैं। लेकिन, कांग्रेस बिहार में राजद के साथ महागठबंधन को महत्वपूर्ण मानकर चल रही है। अधिक दिन नहीं हुए, जब कांग्रेस सुप्रीमो राहुल गांधी दिल्ली में लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव के साथ दिखे थे। ऐसे में सवाल यह किया जा रहा है कि क्या लालू के करीबी माने जाने वाले डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह बिहार कांग्रेस की कमान थामेंगे?
प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में लालू विरोधी गुट भी सक्रिय है। कांग्रेस में लालू की काट के लिए विरोधी गुट पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन को प्रदेश अध्यक्ष बनवाना चाहता है। उनके अध्यक्ष बनने से लालू को बेटों के नेतृत्व पर संकट खड़ा हो सकता है।
लालू समर्थन व विरोध पर बंटी पार्टी
दरअसल, बिहार में महागठबंधन की सरकार का जाना कांग्रेस के लिए बड़ा आघात रहा। इससे बिहार की राजनीतिक बिसात पर धीरे-धीरे मजबूत हो रही कांग्रेस अचानक बेपटरी हो गई। पार्टी में वर्चस्व का गुटीय संघर्ष आरंभ हो गया। आलाकमान ने बिहार में भाजपा विरोध की धुरी बनते राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साथ रहने का फैसला किया। लेकिन, पार्टी लालू के समर्थन व विरोध में बंटती दिखी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले अशोक चौधरी अब लालू के खिलाफ खड़े थे तो कांग्रेस का उनका विरोधी गुट लालू के साथ। बताया जाता है कि दूसरे गुट ने आलाकमान को विश्वास दिलाया कि अशोक चौधरी अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस को तोड़ जदयू में जा सकते हैं। दिल्ली में राहुल ने बिहार कांग्रेस के नेताओं की हाई लेवल बैठक की, जिसमें अशोक चौधरी को नहीं बुलाया गया। इसके बाद अचानक चौधरी को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
कांग्रेस नेता एचके वर्मा अशोक चौधरी के पद से हटने को ‘रूटीन मामला’ बताते हैं। कहते हैं कि उनका टर्म पूरा हो गया था, इसलिए तत्कालीन पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कौकब कादरी को सबों से मशविरा कर पार्टी की कमान दी। लेकिन, अशोक चौधरी ने पद से हटाए जाने को दलित अपमान से जोड़ा। उन्होंने राहुल में आस्था व्यक्त की। उनके निशाने पर 'आलाकमान को बरगलाने वाले' नेता रहे। चौधरी को इसका मलाल जरूर रहा कि उन्हें सम्मानजनक एग्जिट नहीं दी गई।
पार्टी की एकजुटता व सीटें बचाने की चुनौती
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान लालू की शिकायत पर भले ही किसी को हटा दे, लेकिन उनके कहने से अध्यक्ष नहीं बनाएगा। राहुल के लिए लालू को साथ रखते हुए अपनी मर्जी का ऐसा अध्यक्ष बनाना, जो पार्टी को एकजुट रख सके, राहुल के लिए बिहार में सबसे बड़ी चुनौती होगी।
दरअसल, बिहार में राहुल के समाने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। बिहार की राजनीति में कांग्रेस का कद बीते विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत के बाद बढ़ा था। लेकिन, महागठबंधन की सरकार गिरने के बाद न केवल पार्टी कमजोर हुई है, बल्कि प्रदेश नेतृत्व पर भी संकट खड़ा हो गया है। गुटों में बंटी बिहार कांग्रेस के लिए सीटों को बचाए रखने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। हालांकि चुनाव में अभी विलंब है, लेकिन पार्टी इस कवायद में जुट गई है।
बदले राजनीतिक हालात पर नजर
कांग्रेस के अंदरखाने के सूत्र बताते हैं कि संगठन बिहार के बदले हुए राजनीतिक हालात को देख रहा है। उसे इल्म है कि अगली लड़ाई भाजपा के साथ-साथ महागठबंधन में साथी रहे जदयू से भी होगी। इसके लिए पार्टी जमीनी स्तर पर मजबूत होने को लेकर गंभीर है। प्रदेश नेतृत्व को लेकर फैसला इसकी की एक कड़ी है। अब आगे-आगे देखिए, क्या होता है।

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