सोनपुर मेला: जब स्टेज पर आती थीं गुलाब बाई तो थम जाती थीं सांसे
बिहार के सोनपुर मेले में पशुओं के आलावा भी बहुत कुछ है। एक बड़ा बाजार सजा है तो बहुत सारी यादें में। मेले में पहुंचे लोग आज भी गुलाब बाई को नहीं भूल पाए हैं।
पटना, जेएनएन। एक दौर वह भी था जब सोनपुर मेले में नौटंकी की मल्लिका गुलाब बाई का जलवा दिखता था। जब वह स्टेज पर होती थीं तो लोगों की सांसें थम जाती थीं। प्रख्यात फिल्मकार व अभिनेता राजकपूर की फिल्म तीसरी कसम के लोकप्रिय गीत पान खाए सैंया हमारो को शोहरत की बुलंदियों पर चढ़ाने वाली गुलाब बाई की नौटंकी ही थी। यह गीत ग्राम्य अंचलों में लोगों के सिर चढ़कर बोलता था।
1920 तक ङ्क्षहदी पट्टी में नौटंकी ही मनोरंजन का सबसे प्रमुख साधन थी। खासकर अवसर जब सोनपुर मेले का हो। इसे देखने वालों में आम और खास दोनों हुआ करते थे। नौटंकी में मेलोड्रामा था, डॉयलाग बोले जाते थे। हास्य-व्यंग का भरपूर पुट हुआ करता था। दर्शकों को बांधे रखने के लिए गीत-संगीत होता था, पर उस समय महिलाओं की भूमिका पुरुष ही निभाते थे। सोनपुर मेले में नौटंकी का शो शाम को शुरू होता था और सुबह होने तक चलता था।
नौटंकी में कुरीतियों पर होता था प्रहार
1930 के दशक में महिलाओं ने नौटंकी में प्रवेश किया। यह वह दौर था जब ङ्क्षहदी पट्टी में एक नए मध्यम वर्ग का उदय हो रहा था। यह नया वर्ग सिनेमा और यूरोपीय थियेटर से ज्यादा लगाव महसूस करता था। लेकिन, जैसे ही नौटंकी में महिलाओं ने काम करना शुरू किया, हालात बदल गए। गुलाब बाई पहली महिला थीं जिसने नौटंकी में हीरोइन के रूप में नृत्य-गीत पेश करना शुरू किया। उस समय नौटंकी में गीतों के माध्यम से दहेज प्रथा, महिला प्रताडऩा के खिलाफ आवाज उठाई जाती थी। बाद में गुलाब बाई ने अपनी थियेटर कंपनी खोल ली। 1990 में गुलाब बाई को पद्मश्री से नवाजा गया, पर आगे महिलाओं की परफार्मेंस नौटंकी के गिरते स्तर को नहीं रोक सकी। जगह-जगह सिनेमा हॉल खुलने और टीवी के आने से लोगों का नौटंकी के प्रति रुझान इस कदर कम हुआ कि दर्शक मिलने बंद हो गए।
नौटंकी की विधा को पहुंचाया बुलंदियों तक
हर साल सोनपुर मेले में गुलाब बाई के नाम से कई थियेटर खुलते हैं। यह इसलिए कि आज भी लोग उस महान अदाकारा की याद को ङ्क्षजदा रखना चाहते हैं, जिसने नौटंकी की विधा को बुलंदियों तक पहुंचाया था। पुराने लोग गुलाब बाई की चर्चा चलते ही पुरानी स्मृतियों में खो जाते हैं। कहते हैं कि शाम ढलते ही पेट्रोमैक्स जल उठते थे और स्टेज सज जाता था। मेले में आए लोग बोरा-चट्टी या पुआल बिछाकर नौटंकी शुरू होने की प्रतीक्षा करते थे। गुलाब बाई के स्टेज पर आते ही पूरी रात कैसे बीत जाती थी, पता ही नहीं चलता था। लैला-मंजनू, राजा हरिश्चंद्र आदि नाटकों में गुलाब बाई ने जो अदाकारी पेश की वह अब यादों में है। अब सोनपुर मेले में हर साल थियेटर लगाए जाते हैं पर उसमें केवल फिल्मी गीतों की धुन पर भोंडे नृत्य होते हैं।