Move to Jagran APP

सोनपुर मेला: पटना से मात्र 25 किलोमीटर, मुंबई और दिल्ली का मीना बाजार

पटना से 25 किलोमीटर की दूरी पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगा है। यहां केवल जानवर ही नहीं लजीज व्यंजन भी हैं और तरह-तरह के सामान आपका इंतजार कर रहे हैंं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 01:05 PM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 01:05 PM (IST)
सोनपुर मेला: पटना से मात्र 25 किलोमीटर, मुंबई और दिल्ली का मीना बाजार
सोनपुर मेला: पटना से मात्र 25 किलोमीटर, मुंबई और दिल्ली का मीना बाजार

रवि शंकर शुक्ला, पटना। सोनपुर में केवल एशिया के सबसे बड़े पशुओं का ही मेला नहीं लगता एक महीने तक ये भगवान की आराधना के साथ  घूमने-फिरने का बेहतरीन स्थल भी है। तरह-तरह के जानवरों के दीदार के साथ यहां लजीज व्यंजनों का भी लुत्फ उठाया जा सकता है। एक माह तक चलने वाले मेले का शुभारंभ हो चुका है। देश-विदेश के सैलानी यहां पहुंच रहे हैं। मेले में गांव से शहर तक के विविध संस्कृति का आप सहज दर्शन कर सकते हैं। आपके स्वागत को यहां पर्यटन विभाग एवं सारण जिला प्रशासन ने पूरी तैयारी कर रखी है। अगर ऐसे माहौल का आप भी साक्षी बनना चाहते हैं तो एशिया प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले में आपका स्वागत है।

loksabha election banner

सोनपुर मेला का नाम सुनते ही मेला घूमने को मन मचलने लगता है। मन मचले भी क्यूं नहीं, एशिया में सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जो इसे ख्याति मिली है। मेले में सुई से लेकर हाथी तक। हरि (भगवान विष्णु) व हर (भगवान शंकर) की पावन भूमि पर लगने वाला यह मेला पूरी दुनिया में अपने आप में अनूठा है। मेले के कई रंग हैं। एक आस्था का रंग। मेले के दर्शन की शुरुआत लोग यहां आस्था के रंग में पवित्र डुबकी लगाकर करते हैं। इसके बाद मेले में समृद्ध गांव व शहर के रंग को देखते हैं। हाथी-घोड़े, गाय, बैल, बकरी के साथ और भी कई पशु। अंत में बारी आती है, जायके की। मेले में लोग लजीज व्यंजनों का आनंद उठाते हैं। इतना ही नहीं, यहां बच्चों से लेकर युवा एवं बड़े-बूढ़ों सभी के मनोरंजन की व्यवस्था है। सरकारी स्तर पर जनसंपर्क विभाग के पंडाल में दिन एवं रात में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति राज्य एवं देश के जाने-माने कलाकार करते हैं। इस मेले का अतीत जितना समृद्ध था, वर्तमान भी उतना ही समृद्ध।

सड़क एवं रेलमार्ग से पहुंचे सोनपुर

सड़क मार्ग से

- महात्मा गांधी सेतु होकर हाजीपुर से सोनपुर मेला

दूरी - 25 किलोमीटर

- दीघा से जेपी सेतु होकर सोनपुर

- दूरी - 17 किलोमीटर

रेलमार्ग से

पटना, पाटलिपुत्र एवं दीघा ब्रिज हॉल्ट से

पटना जंक्शन से

- मेमू सुबह - 8.10

- जयनगर इंटरसिटी - दोपहर 3.30

- मेमू - रात्रि 8.05

पाटलिपुत्र जंक्शन

मेमू - सुबह 8.42

मेमू - सुबह 11.15

जयनगर इंटरसिटी - शाम 4.10

रक्सौल इंटरसिटी - शाम 4.40

मेमू - शाम 5.05

मेमू - शाम 6.15

मेमू - रात्रि 8.50

ट्रेन से आधे घंटे का सफर

एतिहासिक बाबा हरिहरनाथ मंदिर

सोनपुर मेला का धार्मिक पक्ष बाबा हरिहरनाथ से जुड़ा है। हरिहरक्षेत्र का धार्मिक आख्यान है कि यहां गंगा-गंडक संगम में गज और ग्राह के बीच युद्ध हुआ था। काफी बलवान होने के बावजूद पानी में गज कमजोर पड़ गया। तभी नदी में उसे एक कमल का फूल दिखाई पड़ा। गज ने अपने सूंढ़ में कमल का फूल और गंगाजल लेकर हरि की आराधना की। भक्त की पुकार पर स्वयं हरि पधारें और ग्राह का वध कर गज की प्राणरक्षा की। प्रभु के हाथों मरकर जहां ग्राह को मोक्ष की प्राप्ति हो गई वहीं गज को नया जीवन मिला। मोक्ष एवं नये जीवन की प्राप्ति की कामना को लेकर हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों की संख्या में लोग हरिहरक्षेत्र के सोनपुर व हाजीपुर के तमाम घाटों पर स्नान करते हैं।

श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम (नौलखा मंदिर) 

श्रीगजेन्द्र मोक्ष मंदिर की बिहार के तिरुपति के रुप में मान्यता है। यह मंदिर मेला में आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है। इस मंदिर का राजगोपुरम (मुख्य द्वार) तो साक्षात देवलोक का द्वार नजर आता है। त्रिदंडी स्वामी के मंगलानुशासन में जगद्गुरु लक्ष्मणाचार्य ने मंदिर का निर्माण 1999 में कराया था। अंदर प्रवेश करते ही गरुड़देव की भव्य प्रतिमा व गरुड़ स्तंभ है। वहीं केंद्रीय गर्भगृह में बालाजी वेंकटेश (भगवान विष्णु) श्रीदेवी व भूदेवी के साथ विराजमान हैं।

कालीघाट स्थित प्राचीन काली मंदिर

 नदी किनारे प्राचीन काली मंदिर अवस्थित है। यहां काली जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा स्थापित है। इनके मुख की दिशा में ठीक सामने 27 हाथ की दूरी पर महाकालेश्वर शिवलिंग स्थापित है। काली जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा एवं शिवलिंग को पुराविदों ने पालकालीन और मंदिर की बनावट एवं शैली को बंगला आर्ट का उत्कृष्ट नमूना बताया है।

प्रसिद्ध गौरी-शंकर मंदिर

काली मंदिर से कुछ ही दूरी पर सटे उत्तर च्यवन तालाब के दक्षिण गौरी-शंकर मंदिर अवस्थित है। इस परिसर में दो मंदिर है। पूर्वाभिमुख लघु मंदिर में गरुड़ पर सवार भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति उत्तर गुप्तकालीन है। इस मूर्ति के बांए देवी काली या पार्वती की मूर्ति है। जिनके हाथ में शिवलिंग है।

मुंबई व दिल्ली के मीना बाजार में हर सामान एक दाम में

सोनपुर मेला में मुंबई, दिल्ली एवं कोलकाता का मीना बाजार लगा है। यहां हर सामान की कीमत 15 रुपये। बच्चों के खिलौने से लेकर घर के उपयोग में आने सामान एवं श्रृंगार के सामान बिक रहे हैं। यहां लोगों की काफी भीड़ देखी जा रही है। यह बाजार खासकर महिलाओं एवं बच्चों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

यूपी एवं कश्मीर के कारोबारी पहुंचे मेले में

सोनपुर मेले में उत्तर प्रदेश, काश्मीर, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश समेत कई प्रदेशों के कारोबारी पहुंचे हैं। इन प्रदेशों के अधिकांश कारोबारी ऊलेन कपड़ा, कंबल एवं अन्य कपड़े लेकर पहुंचे हैं। मेला घूमने आने वाले लोग यहां से ऊलेन कपड़ों की जमकर खरीदारी कर रहे हैं। लोगों को हर वर्ष मेले का इंतजार रहता है और लोग खरीदारी करते हैं। हर वर्ष यहां करोड़ों रुपये के कपड़ों का कारोबार होता है। नखास से ड्रोलिया चौक एवं हरिहरनाथ मंदिर जाने वाले मार्ग पर बड़ी संख्या में कपड़ों की दुकानें सजीं हैं।

गुड़ की जलेबी से लेकर एक से बढ़कर एक व्यंजन

सोनपुर मेले में आने वाले लोगों के लिए एक से बढ़कर एक लाजवाब व्यंजन की दुकानें सजीं हैं। ग्रामीण एवं शहरी परिवेश में लगने वाले वाले इस मेले में आने वाले लोग हर तरह के व्यंजन का स्वाद चख रहे हैं। गुड़ की जलेबी लोगों को काफी भा रही है। अन्य दिनों में यह जलेबी लोगों को नहीं मिल पाती। अन्य व्यंजनों की भी दुकानें सजीं हैं। खाना में लिट्टी-चोखा लोगों को काफी भा रहा है। रेलग्राम परिसर में रेस्तरां अभी नहीं खुला है, जल्द ही खुल जाने की उम्मीद है। तैयारी चल रही है। आंवले का मुरब्बा भी लोगों को काफी भा रहा है। सनपापड़ी एवं नमकीन की भी कई वेरायटी की दुकानें यहां सजीं हैं।

लाठी से लेकर तलवार तक की बिक्री

सोनपुर मेला के नखास चौक से चिडिय़ा बाजार को जाने वाले मार्ग पर लाठी से लेकर तलवार एवं अन्य सामानों की बड़ी संख्या में दुकानें सजीं हैं। हर बार की तरह इस बार भी लोग लाठी एवं तलवार की जमकर खरीदारी कर रहे हैं। लाठी 70 रुपये की बिक रही है जबकि तलवार दो सौ लेकर पांच सौ रुपये तक की बिक रही है। बड़ी संख्या में लोग लाठी एवं तलवार मेले से खरीदकर ले जा रहे हैं। 

हर उम्र के लोगों के मनोरंजन की व्यवस्था

सोनपुर मेले में हर उम्र के लोगों के लिए मनोरंजन की खास व्यवस्था हर बार की तरह इस बार भी है। बच्चों के लिए कई तरह के झुले लगे हैं तो वहीं बड़ों के लिए भी झुले हैं। मौत का कुंआ एवं सर्कस भी लगा है। मेले में इस बार छह थियेटर लगे हैं।

समृद्ध अतीत रहा है हाथी-घोड़े के बाजार का

सोनपुर मेले में हाथी-घोड़े के बाजार का काफी समृद्ध अतीत रहा है। मुगल बादशाह औरंगजेब के जमाने में सोनपुर में मेला लगना शुरू हुआ था। एक जमाने में यह मेला जंगी हाथियों का सबसें बड़ा मेला था। मेले में मध्य एशिया के कारोबारी आते थे। यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला था। मौर्यवंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर, 1857 के गदर के नायक बाबू वीर कुंवर ङ्क्षसह यहां से हाथियों एवं घोड़े की खरीद की थी। 1803 में लार्ड क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े का बड़ा अस्तबल बनवाया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.