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    युवाओं में बढ़ रहे सुसाइड अटेम्प्ट के मामले, सोशल मीडिया बना बड़ा कारण; इन संकेतों को न करें इग्नोर

    Updated: Wed, 26 Nov 2025 08:07 AM (IST)

    आजकल युवाओं में आत्महत्या के प्रयास बढ़ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण सोशल मीडिया का प्रभाव है। सोशल मीडिया पर अपनी तुलना दूसरों से करने के कारण युवा निराश और तनावग्रस्त हो जाते हैं। लगातार सोशल मीडिया का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। युवाओं को मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए और सोशल मीडिया का उपयोग कम करना चाहिए।

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    युवाओं में बढ़ रहे सुसाइड अटेम्प्ट के मामले। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, पटना। आत्महत्या का प्रयास करने वाले युवाओं और किशोरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पीएमसीएच, आइजीआइएमएस और एम्स पटना के मानसिक रोग विभागों की ओपीडी में रोजाना 9–10 ऐसे रोगी पहुंच रहे हैं, जिनके मन में आत्महत्या के विचार आते हैं।

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    बीते एक वर्ष में तीनों संस्थानों में कुल 1619 मरीज भर्ती किए गए। इनमें अधिसंख्य युवा, किशोर और महिलाएं शामिल हैं। इसे देखते हुए चिकित्सकों ने अभिभावकों को सर्तक रहने की सलाह दी है।

    IGIMS के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. मनीष मंडल ने कहा कि गलत सूचना, अवास्तविक तुलना और लगातार दबाव युवाओं को मानसिक रूप से कमजोर कर रहा है।

    उन्होंने सुझाव दिया कि युवा सकारात्मक सोच विकसित करें और योग–व्यायाम जैसी गतिविधियों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें, जबकि परिवार और समाज को भी संवेदनशीलता के साथ उनका समर्थन करना चाहिए।

    PMCH में भर्ती हुए सर्वाधिक रोगी

    सबसे अधिक 1009 मरीज पीएमसीएच में, जबकि लगभग 610 मरीज आइजीआइएमएस में भर्ती किए गए। समय पर पहुंचने के कारण 85 प्रतिशत मरीजों की जान बचा ली गई। बाद में इन सभी की मानसिक रोग विभागों में काउंसलिंग की गई।

    मरीजों की उम्र के विश्लेषण के अनुसार दो-तिहाई मरीज 30 वर्ष से कम थे। इसमें 289 मरीज 20 वर्ष से कम और 390 मरीज 20–30 आयु वर्ग के थे। PMCH मानसिक रोग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. एनपी सिंह के अनुसार, युवा पढ़ाई, करियर और भविष्य की चिंता में डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं।

    आइजीआइएमएस के वरीय मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. केके सिंह ने बताया कि इंटरनेट मीडिया पर बढ़ती निर्भरता और नकारात्मक सामग्री के कारण युवाओं में गलत भावनाएं और आत्मघाती विचार बढ़ रहे हैं। उन्होंने स्कूल–कालेजों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और नियमित काउंसलिंग की आवश्यकता पर जोर दिया।

    इन लक्षणों पर रखें नजर

    • व्यवहार में अचानक बदलाव
    • सामान्य से अलग, बहुत चुप या बहुत उत्तेजित होना
    • लोगों से बातचीत कम करना, कमरे में अकेले रहना
    • परिवार और दोस्तों से दूरी बनाना
    • पहले की पसंदीदा गतिविधियों में रुचि खत्म हो जाना
    • पढ़ाई या काम में गिरावट, अंक अचानक गिरना
    • क्लास या कोचिंग जाने से बचना, ध्यान न लगना, गलतियां होना

    भावनात्मक संकेत

    • लगातार उदासी, रोना, चिड़चिड़ापन
    • “मैं बेकार हूं”, “मुझे किसी की जरूरत नहीं” जैसी नकारात्मक बातें
    • अत्यधिक अपराधबोध या असफलता का डर
    • बहुत कम आत्मविश्वास
    • नींद और खान-पान में गड़बड़ी
    • बहुत अधिक या बहुत कम सोना
    • भूख कम होना या अत्यधिक खाना
    • आत्महत्या से जुड़े वाक्य बोलना
    • अपने सामान अचानक दोस्तों को देना
    • मोबाइल/इंटरनेट मीडिया पर खतरनाक कंटेंट देखना
    • आत्महत्या के तरीकों की खोज करना
    • नकारात्मक या डिप्रेशन से जुड़े पोस्ट
    • बार-बार स्टेटस डालकर भावनात्मक मदद मांगना
    • शराब, ड्रग्स या तंबाकू का उपयोग बढ़ना
    • खुद को नुकसान पहुंचाना (हाथ काटना, जलाना आदि)