श्री रंग रामानुजाचार्य जी महाराज का पटना में निधन, 15 की उम्र में बन गए थे संन्यासी
हुलासगंज स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर के मठाधीश श्री रंग रामानुजाचार्य जी महाराज का गुरुवार की दोपहर निधन हो गया। पटना के एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। अस्वस्थ होने पर उन्हें राजधानी के एक हास्पिटल में भर्ती कराया गया था।

संवाद सहयोगी, हुलासगंज, जहानाबाद: हुलासगंज स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर के मठाधीश श्री रंग रामानुजाचार्य जी महाराज का गुरुवार को पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। स्वामी जी पिछले दस से बारह दिनों से हास्पिटल में इलाजरत थे। सांस लेने में तकलीफ होने पर कंकड़बाग स्थित अस्पताल में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। गुरुवार की शाम पांच बजे के आसपास उन्होंने अंतिम सांस ली। निधन की खबर मिलते ही मगध क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। श्री रंग रामानुजाचार्य जी महाराज के लाखों अनुयायी अंतिम दर्शन के लिए पहुंचने लगे। बता दें कि स्वामी रंग रामानुजाचार्य जी महाराज वैष्णव संप्रदाय के वे बड़े संत थे। लक्ष्मी नारायण मंदिर हुलासगंज के मठाधीश स्वामी जी की ख्याति दूर-दूर तक फैली है।
सरौती आश्रम में ली दीक्षा
जासं, जहानाबाद : हुलासगंज स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर के मठाधीश महान संत श्री रंग रामानुजाचार्य जी महाराज जन्म 10 अक्टूबर 1932 को धनिष्ठा नक्षत्र में जहानाबाद के मिर्जापुर गांव में हुआ था। दीक्षा लेने के पूर्व इनके बचपन का नाम श्री रूपदेव था। इनके पिता श्रीरामसेवक शर्मा जी के दो पुत्र हैं। श्री विशुनदेव शर्मा एवं श्री रूपदेव जी। गांव में तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई के बाद पारिवारिक परिस्थितिवश ये खेती एवं गोपालन में पिताजी की सहायता करने में लग गए थे। दिन में विश्राम की अवधि में गांव में ही स्थापित स्वामी श्री प्रांगकुशाचार्य पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर पढ़ते रहते थे। पढ़ाई लिखाई के प्रति अभिरुचि देखकर पिताजी ने इन्हें शकुराबाद के उच्च विद्यालय में भेज दिया। वहां के प्रधानाध्यापक उदित नारायण शर्मा एवं संस्कृत शिक्षक गिरिराज शर्मा की इनपर विशेष कृपा रहती थी। एक बार छुट्टी के दिनों में जब ये शकुराबाद से गांव मिर्जापुर आये हुए थे तब गांव में स्वामी श्री प्रांगकुशाचार्य की कथा चल रही थी। नित्य कथा सुनने में इनकी अभिरुचि देखकर गांव वालों ने स्वामी श्री प्रांगकुशाचार्य जी से इन्हें शिक्षा प्राप्ति हेतु सरौती ले जाने के लिए प्रार्थना की। करीब 15 वर्ष की अवस्था में ये सरौती आश्रम में आ गए। यहां के 82 वर्षीय स्वामी श्री प्रांगकुशाचार्य जी से दीक्षित होकर श्री रंग रामानुजाचार्य नाम प्राप्त किए।
पटना और वाराणसी जाकर ज्योतिष एवं मीमांसा की प्राप्त की शिक्षा
सरौती संस्कृत विद्यालय के छात्र के रूप में प्रथमा, मध्यमा, उपशास्त्री, शास्त्री के उपरान्त व्याकरण एवं न्याय में आचार्य की शिक्षा पूरी की। अलौकिक मेधा के कारण ये व्याकरण एवं न्याय में स्वर्णपदक से सम्मानित हुए। श्री मधुकांत जी से न्याय पढऩे हेतु दरभंगा जाना पड़ता था। कुछ काल वहां रहकर पुन: सरौती आ जाते थे। शिक्षा प्राप्त करने हेतु अन्य विद्वान से कालक्षेप करने के निमित्त श्रीवैष्णवों की सेवा के लिए प्रसिद्ध श्रीकिशोरी जी के पीरमुहानी पटना स्थित आश्रम में भी कुछ काल के लिए ठहरा करते थे। तरेत स्थान के यशस्वी एवं न्याय के ख्यातिलब्ध ज्ञाता श्री प्रसिद्धनारायण शर्मा से भी इन्होंने तरेत में ही रहकर न्याय के गूढ़ तत्वों को समझा था। इस तरह से न्याय में आचार्य की पढ़ाई पूरी हुई थी। सरौती स्वामी जी की चरण सेवा में रहते हुए श्रीमुख से वेदान्त की महत्ता के बारे सुनकर इन्होंने भी श्रीस्वामी जी से वेदान्त अध्ययन की जिज्ञासा प्रकट की। इनकी अभिरुचि से प्रसन्न होकर स्वामी जी ने इनको उच्च शिक्षा हेतु वाराणसी भेज दिया। वाराणसी में श्री नीलमेघाचार्य से वेदान्त की तथा अन्य गुरुओं से ज्योतिष एवं मीमांसा की शिक्षा प्राप्त की।
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