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    PMCH में जरूरी दवाओं की किल्लत, पेरासिटामोल इंजेक्शन और सिरिंज के लिए भी बाहर पर निर्भर; HIV टेस्ट किट तक नहीं

    By Jitendra KumarEdited By: Aditi Choudhary
    Updated: Mon, 02 Jan 2023 12:24 PM (IST)

    बिहार का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल जरूरी दवाओं की किल्लत से जूझ रहा है। आलम यह है कि बेन हैमरेज जैसे इंमरजेंसी मामलों में मेनिटाल इंजेक्शन बाहर से लाना पड़ता है। सबसे खराब हाल शिशु रोग विभाग का है जहां आक्सीजन मास्क और नेबुलाइलेजशन की दवाएं तक नहीं हैं।

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    पीएमसीएच में ब्रेन हैमरेज और नेबुलाइजेशन तक की दवा नहीं

    पटना, जागरण संवाददाता। प्रदेश के सुदूर जिलों से उत्कृष्ट व निशुल्क उपचार के लिए राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच आने वाले मरीजों को लंबे समय से निर्धारित दवाएं नहीं मिल रही है। आलम यह है कि ठंड में जब ब्रेन हैमरेज रोगियों की संख्या बढ़ जाती है, उस समय अस्पताल में मस्तिष्क में जमा खून व अन्य फ्ल्यूड निकालने के काम आने वाला मेनिटाल इंजेक्शन तक रोगियों को बाहर से लाना पड़ रहा है। आइवी सेट है लेकिन नसों में इंजेक्शन देने या स्लाइन चढ़ाने के लिए आइवी कैनुला बाहर से लानी पड़ती है। इसके अलावा एचआइवी जांच किट लंबे समय से नहीं है।

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    सबसे खराब हाल शिशु रोग विभाग का है, जहां नवजात बच्चों के लिए जरूरी अधिकतर दवाएं गायब हैं। बच्चों के लिए आक्सीजन मास्क और नेबुलाइलेजशन की दवाएं तक नहीं हैं। वहीं एकमात्र रास्ता और उस पर भी जाम होने से कई बार दवा के अभाव में इलाज नहीं शुरू होने से रोगियों की जान पर बन आती है। पीएमसीएच प्रबंधन के अनुसार, बीएमएसआइसीएल से दवाओं की मांग की गई है लेकिन अभी तक मिली नहीं हैं। यह आलम तब है जब आपदा प्रबंधन विभाग ठंड को देखते हुए अस्पतालों को आवश्यक तैयारियां करने की गाइडलाइन 20 दिन पहले जारी कर चुका है।

    हाई डोज का इंजेक्शन देकर कम कर रहे इम्यून पावर 

    ठंडजनित रोगों के लिए एमाक्स क्लैव इंजेक्शन को सबसे बेहतर माना जाता है। इसके उपलब्ध नहीं होने पर आजकल कुछ डाक्टर मेरोपेनम जैसे हाई डोज के इंजेक्शन दे रहे हैं। इससे बच्चों व रोगियों में न केवल इस दवा के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है बल्कि उनके अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित होती है। इसके अलावा तेज बुखार होने पर पारासिटामोल इंजेक्शन भी नहीं है। ब्लाडर में पेशाब जमा होने पर निकालने के काम आने वाला राइस ब्रान भी कुछ ही साइज का उपलब्ध है। और तो और 20 और 50 एमएल की सिरिंज भी नहीं है अस्पताल में। इसके अलावा काटन को स्थानीय बाजार से खरीदा जा रहा है जबकि टिटबैक तो लंबे समय से नहीं है।

    दो से तीन बार बाजार जाने पर आती पूरी दवा 

    बक्सर, मोतिहारी, छपरा के भर्ती मरीजों के अनुसार, नर्सें फुटकर में दो-तीन दवाएं लिख कर देती हैं। ऐसे में दो से तीन बार में बाजार जाने पर पूरी दवाएं आ पाती हैं। इसमें भी कई बार किसी दवा-इंजेक्शन की पावर गलत लिख दी जाती है तो उसे जाकर बदलना पड़ता है। इसके बाद कहीं जाकर रोगी को दवा मिल पाती है।