शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी को लेकर लालू को दी बड़ी सलाह, पहले अनदेखी करने का नुकसान भी दिलाया याद
शिवानंद तिवारी ने लालू यादव को सलाह दी है कि वह तेजस्वी के हाथों में दल का संपूर्ण दायित्व सौंप दें। विधानपरिषद हो या राज्यसभा इन सदनों में कौन जाएगा यह तय करने की छूट भी तेजस्वी को दी जाए।
जागरण टीम, पटना। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने मंगलवार को बयान जारी कर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को सलाह दी है कि वह तेजस्वी यादव के हाथों में दल का संपूर्ण दायित्व सौंप दें। विधानपरिषद हो या राज्यसभा, इन सदनों में कौन जाएगा यह तय करने की छूट भी तेजस्वी को दी जाए। शिवानंद ने यह भी याद दिलाया कि पूर्व में अनेक अवसरों पर एक से अधिक बार उन्होंने सलाह दी थी लेकिन लालू ने उनकी बातों की अनदेखी की। उसके फलस्वरूप उनका तो नुकसान हुआ ही, सामाजिक न्याय आंदोलन को भी फायदा नहीं हुआ। शिवानंद ने कहा कि मैं उम्मीद करता हूं कि लालू मेरी सलाह का आदर करेंगे।
शिवानंद ने कहा कि जब लालू यादव ने अपने राजनीतिक वारिस के रूप में तेजस्वी यादव को चुना तो राष्ट्रीय जनता दल ने संपूर्ण हृदय से इसको स्वीकार किया। यह जरूरी भी था। इसलिए भी कि बिहार देश का सबसे युवा प्रदेश है। राज्य की पूरी आबादी में 58 फीसद लोग 25 बरस से नीचे वाले हैं। इस आबादी के सपनों और आकांक्षाओं को लालू सहित हम पुरानी पीढ़ी के लोग नहीं समझते हैं। वक्त बदला है। यह आबादी गांवों के उन पुराने मुहावरों और कहावतों को नहीं समझती है, जिसके महारथी लालू हैं। इस युवा आबादी ने तेजस्वी यादव को स्वीकार किया है। इसका आकलन दो चुनाव के परिणामों से समझा जा सकता है। 2010 का विधानसभा चुनाव राजद ने लालू के नेतृत्व में लड़ा था। उस चुनाव में राजद के महज 22 विधायक जीत पाये थे। उसके बाद विधानसभा का दूसरा चुनाव 2015 में हुआ। उस चुनाव में लालू और नीतीश कुमार एक साथ हो गए थे। महागठबंधन की सरकार बन गई थी। उस चुनाव नतीजे से लालू यादव और नीतीश कुमार के संयुक्त ताकत का आकलन किया जा सकता है। स्वतंत्र रूप से राजद की ताकत का आकलन का वह नतीजा आधार नहीं हो सकता है। इसलिए उस चुनाव के परिणाम को यहां नजीर के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
2020 विधानसभा चुनाव से नजर में आए तेजस्वी
2020 के चुनाव में गठबंधन बनाने से लेकर नेतृत्व तक शुद्ध रूप से तेजस्वी यादव ने किया था। उस चुनाव में राजद विधानसभा में न सिर्फ सबसे बड़े दल के रूप में उभरा बल्कि प्राप्त वोटों के प्रतिशत के हिसाब से भी सबसे बड़ा दल बना। वह चुनाव एक मामले में अनूठा था। देश के राजनीतिक क्षितिज पर नरेन्द्र मोदी के उभार के बाद बिहार के विधानसभा का 2020 का चुनाव ऐसा पहला चुनाव था जिस के चुनाव अभियान में भाजपा सांप्रदायिकता को मुद्दा नहीं बना पाई, बल्कि तेजस्वी यादव ने रोजगार के सवाल को 2020 के चुनाव अभियान का प्रमुख मुद्दा बना दिया और नरेंद्र मोदी सहित तमाम पार्टियों को उसी मुद्दे पर चुनाव लड़ने के लिए बाद्धय किया। युवा तेजस्वी की यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस प्रकार वे देश की नजर में आ गए।