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    अकबर से पहले ही भारत से उखड़ गई थी मुगल सल्‍तनत, मुश्‍क‍िल से बची थी हुमायूं की जान; चौसा के युद्ध में मरे थे आठ हजार सैनिक

    By Shubh Narayan PathakEdited By:
    Updated: Sun, 26 Jun 2022 03:15 PM (IST)

    26 मई 1539 के दिन हुआ था चौसा का युद्ध बदल गई थी दिल्ली की सल्तनत अकबर से पहले ही उखड़ गई भारत में मुगल सल्‍तनत चौसा के ऐतिहासिक युद्ध में शेरशाह ने अफगान शासक हुमायूं को दी थी मात

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    बक्‍सर के चौसा में हुई थी हुमायूं और शेरशाह की लड़ाई। फाइल फोटो

    चौसा (बक्सर), मो. मोइन। हिंदुस्तान को गौरव की अनुभूति कराने वाला बक्सर के चौसा का ऐतिहासिक युद्ध आज ही के दिन 26 जून 1539 को चौसा के मैदान में हुआ था। मुगल बादशाह हुमायूं व अफगानी शासक शेरशाह के बीच हुए उस युद्ध ने हिंदुस्तान की नई तारीख लिखी थी। इस युद्ध में अफगान शासक शेरशाह ने मुगलों को जबरदस्त मात दी थी। हुमायूं ने गंगा में कूदकर किसी तरह अपनी जान बचाई थी। चौसा के युद्ध ने तब अपराजित कहे जाने वाले मुगलिया सल्तनत को गहरी चोट पहुंचाई थी। हिंदुस्तान की तारीख में यह भी दर्ज है कि यहां से जीत मिलने के बाद 1555 तक दिल्ली पर शेरशाह के लोगों की हुकूमत रही और मुगल बादशाह को यह सरजमीन छोड़कर भागना पड़ा था। 

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    मारे गए थे आठ हजार मुगल सैनिक

    बाद में शेरशाह की बीमारी से मौत के बाद दोबारा यहां मुगल राज कायम हुआ। बताया जाता है कि अफगान शासक शेरशाह ने बादशाह हुमायूं को गोरिल्ला युद्ध के तहत मात दी थी। इसमें 8000 मुगल सैनिकों की मौत हो गई थी। हुमायूं गंगा नदी में कूदकर जान बचाने के प्रयास में डूबने लगा था, तब स्थानीय भिस्ती निजामुद्दीन ने मशक के सहारे बादशाह की जान बचाई थी। जिसके एवज में वह एक दिन का बादशाह बना और अपने शासन काल में चमड़े का सिक्का चलाया।

    स्थल की खोदाई में मिले हैं पांच हजार वर्ष पुराने अवशेष व मूर्तियां

    चौसा की पहचान शेरशाह-हुमायूं के बीच हुए युद्ध से रही है, लेकिन वर्ष 2011 में जब पुरातत्व विभाग ने यहां खेदाई कराई तो 5000 वर्ष से भी पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले। खुदाई के दौरान मिले मृदुभाड़, मूर्तियों के अवशेष, जिसके शोध से पता चला कि ये अवशेष जैन धर्म, पालवंश से लेकर गुप्तवंश समय काल के हैं। चौसा के सामाजिक कार्यकर्ता मनोज यादव ने बताया कि खोदाई में निकले अवशेषों को मैदान में बने एक भवन में रखा गया। बाद में वह भवन टूट गया और पुरातत्व विभाग के लोग अवशेषों को लेकर यहां से चले गए। बताया जाता है कि यहां म्यूजियम का निर्माण होने के बाद उन्हें लाकर रखा जाएगा। 

    चौसा के इस ऐतिहासिक मैदान को संवारने के लिए प्रशासन ने पुरजोर कोशिश की। मनरेगा के अंतर्गत इसके सौंदर्यीकरण का कार्य भी किया गया लेकिन, अब इसके नगर पंचायत में शामिल हो जाने के बाद वे सपने सूखने लगे हैं।  वर्ष 2021 में वर्तमान जिला पदाधिकारी अमन समीर ने इस विरासत को संवारने के लिए पहल की। जिला प्रशासन द्वारा पर्यटकों को लुभाने के लिए मनरेगा योजना के तहत 37 लाख की लागत से सौंदर्यीकरण की गई योजनाओं पर काम किया गया।

    वहां मुगल गार्डन की तर्ज पर शेरशाह गार्डन में कई प्रकार के गुलाबों के पौधे लगाए गए लेकिन, अफसोस कि ऐतिहासिक विरासत पर सौंदर्यीकरण के सपने सूखने लगे हैं। मनरेगा के पीओ अजय सहाय कहते हैं, चौसा के नगर पंचायत बनने के बाद ऐतिहासिक स्थल पर अब मनरेगा के अंतर्गत नया काम नहीं कराया जा सकेगा। इस स्थल को संवारने की जिम्मेवारी नगर पंचायत को दे दी जाएगी।